5 राज्यों के विधान सभा चुनावों के बीच ऐसा लगा की पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर को छोड़ हर जगह चुनाव हो रहे है।हर राज्य के एग्जिट पोल किये गए लेकिन मणिपुर को नजरअंदाज किया गया।हालांकि जी न्यूज़ पर मणिपुर चुनाव की कवरेज सराहनीय है लेकिन अन्य मीडिया समूहों को इससे कोई मतलब नहीं है।
आज पूरे देश का मीडिया यूपी चुनाव की कवरेज में दिन रात एक किये हुए है वहीँ दूसरी ओर मणिपुर में चुनाव की सुध लेने वाला कोई मीडिया चैनल,अखबार नहीं है।
मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए चार और आठ मार्च को दो चरणों में चुनाव होना है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 42 सीटों पर जीत हासिल की थी और ओ इबोबी सिंह एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने थे.
मणिपुर विधानसभा की 38 सीटों पर चार मार्च को होने वाले पहले चरण के मतदान के लिए कुल 168 उम्मीदवार मैदान में हैं. भारतीय जनता पार्टी ने सभी 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस के 37 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. साथ ही 14 निर्दलीय उम्मीदवार विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
बीजेपी की कोशिश है कि वो कांग्रेस के खिलाफ पैदा हुए एंटी इंकंबेंसी का फायदा उठाए. मणिपुर में कुल 60 विधानसभा सीटों में से 40 सीटें घाटी में हैं. जबकि पहाड़ पर विधानसभा की 20 सीटें हैं. बीजेपी भ्रष्टाचार मुक्त और सुशासन के वादे के साथ इस बार मणिपुर में एक पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का दावा कर रही हैं.
प्रदेश की राजनीति में हमेशा मेतई समुदाय का ही दबदबा रहा है. मणिपुर की क़रीब 31 लाख जनसंख्या में 63 प्रतिशत मेतई है. मुख्यमंत्री इबोबी सिंह भी मेतई समुदाय से हैं.
भारतीय मीडिया शायद टीआरपी के पीछे की भागदौड़ में लगा है ।दिल्ली के ड्रामेबाज नेताओ की नौटंकी उन्हें कम लागत में बढ़िया टीआरपी दे देती है।
शायद भाषा,दिल्ली से दूरी,असुरक्षा एवं आर्थिक कारणों की वजह से मीडिया मणिपुर में चुनाव की कवरेज करने से कतरा रहा है।लेकिन क्या मणिपुर भारत का अभिन्न अंग नहीं है । यही तो सर्वोत्तम समय है देश की मीडिया का पूर्वोत्तर से और प्रगाढ़ सम्बन्ध स्थापित करने ,एवं उनकी तकलीफो,सहूलियतों का जानने समझने का।
मणिपुर मूलतः ईसाई एवं हिन्दू(41-41%) बहुल राज्य है जहाँ मुस्लिमो के आबादी 8%के करीब है।लेकिन आज अशांति के दौर से गुजर रहा है इसी दौरान विधानसभा चुनाव होना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।
इरोम शर्मिला के संघर्षो की कहानी देश भर में गूंजती है लेकिन मीडिया का कोई पत्रकार यहाँ आने की जहमत नहीं उठाना चाहता।बेहतर तो यही होगा की भारतीय मीडिया कश्मीर की तरह देश के हर राज्य को पर्याप्त महत्व दे खासतौर पर पूर्वोत्तर जहाँ पर्यटन की असीम सम्भावना छिपी हुई है। (अभय सिंह राजनीतिक विश्लेषक हैं)