रजत शर्मा का दक्षिणपंथी राजनीति और भाजपा से किस स्तर की नजदीकी है, ये जग-जाहिर है. लिखित तौर पर आधे दर्जन से ज्यादा लिखित सामग्री है जो रजत शर्मा और बीजेपी कार्यकर्ता को एक-दूसरे का पर्याय बताते हैं..और ये कोई एक दिन की नहीं, छात्र जीवन से जुड़ी कहानी है. साल २०१४ में बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए चैनल ने किस स्तर तक सक्रियता दिखाई, इन सबसे हम अवगत हैं. आप की अदालत के जरिए खुद रजत शर्मा ने एक जमीन तैयार की.
लेकिन इन सबके बावजूद वो जी न्यूज से कई गुना बेहतर है. चैनल और रजत शर्मा में इस स्तर की समझदारी अभी बची हुई है कि सरकारें स्थायी नहीं है लेकिन मीडिया का हमारा कारोबार स्थायी है और ये कारोबार पत्रकारिता का दो फीसद ही सही, बचाकर संभव है. यही कारण है कि वो आमतौर पर अपने दर्शकों को भड़काने, देशद्रोही करार देने या सीधे-सीधे सरकार के आगे लोटने का काम नहीं करता. ये लिखते मेरे ध्यान में जी न्यूज की वायनरी मौजूद है.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी विधायक का महिला आइपीएस अधिकारी के आगे जिस अंदाज में भड़कने, अपमानित करने और उसके रो पड़ने का मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, रजत शर्मा ने इस पूरे मामले को न केवल संतुलित ढंग से पेश किया बल्कि विधायक के इस पूरे रवैये की निंदा की. स्पष्ट रुप से दोहराया कि सार्वजनिक तौर पर विधायक का इस तरह करना किसी भी स्तर पर शोभनीय नहीं है. ये कहते हुए उन्होंने जरुर जोड़ा कि इससे योगी सरकार की छवि खराब होगी.
ऐसे दौर में जब चैनलों ने किसी भी स्तर पर सत्ताधारी दल से जुड़े लोगों की गड़बड़ियों की वाजिब आलोचना करना बंद कर दिया है, इंडिया टीवी और रजत शर्मा का ये अंदाज थोड़े वक्त के लिए ही सही, ये समझ कायम रखता है कि मीडिया का धंधा पूरी तरह रीढ़ गंवा देने से नहीं, बचाए रखने पर ही संभव है. पूरी तरह रीढ़विहीन होने का मतलब है साख के साथ-साथ सत्ताधारियों के आगे खुद को चारा के तौर पर पेश कर देना.
रजत शर्मा के एक तरह से चैनल के सर्वेसर्वा हैं, मालिक हैं लेकिन उन्होंने इस स्तर की प्रोफेशनलिज्म की बेसिक समझ है. दूसरी तरफ जी न्यूज के संपादक नए-नए राष्ट्रभक्त हुए हैं, उन्हें इस बात का रत्तीभर भी अंदाजा नहीं कि वो पत्रकारिता के नाम पर जो कर रहे हैं, वो साख तो छोड़िए, आगे चलकर धंधे के स्तर पर भी मालिक को नुकसान पहुंचाएगा.