IBN7 के आशुतोष और प्रभात शुंगलू की पहेली बूझो तो जाने !

ashutosh-prabhat-warCNN-IBN और IBN7 में छंटनी के बाद मीडिया इंडस्ट्री में तूफ़ान आया हुआ है. फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर आलोचना – प्रत्यालोचना का दौर शुरू है. कुछ खुलकर लिख रहे हैं तो कुछ तुकबंदी शैली का सहारा लेकर निशाना साध रहे हैं. मजेदार है कि इस तुकबंदी का जवाब भी तुकबंदी शैली में ही दिया जा रहा है. IBN7 के पूर्व पत्रकार और न्यूज़रूम लाइव के लेखक प्रभात शुंगलू भी आजकल इसी तुकबंदी के सहारे एफबी पर लिख रहे हैं. उनकी इस तुकबंदी को समझने वाले समझ भी रहे हैं और लाइक व कमेंट भी कर रहे हैं. उधर अचानक IBN7 के मैनेजिंग एडिटर आशुतोष भी ट्विटर पर तुकबंदी शैली में लिखने लग. पढ़ने पर कुछ समझ में नहीं आ रहा है. पेश है दोनों तुकबन्दियाँ. शायद आप कुछ समझ सके.

प्रभात शुंगलू
एक टॉप टेन में आने वाले हिंदी चैनल में छंटनी होने वाली है। लिस्ट बनाने का काम उन संपादक टाइप लोगों को सौंपा गया है जिनकी वजह से चैनल की पिछले सात सालों में ये गत हुई है। यानि कि गुनहगार बच जाएंगे। जो वाकई सक्षम हैं और संपादक टाइप लोगों की चाकरी नहीं करते वो जल्द चैनल से बाहर होंगे।
किंतु एक आदमी ऐसा होने से रोक सकता है। लेकिन वो चुप रहेगा। जैसा कि वो पिछले सात सालों में चैनल की छीछालेदर होते देखता रहा मगर चुप रहा। वो बहुत ही भला मानूस है।

एक बड़बोले टाइप के पत्रकार हैं जिनकी हाल ही में एक बड़े न्यूज़ चैनल से छुट्टी हो गई। सुना है कुछ संदेहास्पद हरकतों से आज़िज़ आकर उनकी रवानगी के बंदोबस्त किये गये। चिंता की बात ये भी है कि ऐसे लोगों को मीडिया जगत में नौकरी की कमी भी नहीं। मेरे उपन्यास Newsroom Live में भी ऐसे ही कुछ काल्पनिक पात्र हैं। मगर इन दिनों मीडिया जगत में जो कुछ घट रहा उसने हकीकत और कल्पना की उस दीवार को ढहा दिया है। बचा है तो बस अनैतिकता का बदबूदार मलबा।

जिन्होने ये लिस्ट बनाई है अंदरखाने उनकी भी लिस्ट बन रही है। वो भी नपेंगे। पता है न।
उनके साथ भी इंसाफ होगा। बकरीद दूर नहीं। इसलिए अगले दो-ढाई महीने उन्हे खूब खिलाया पिलाया जाएगा। सदियों से ऐसा ही होता आया है। पता है न।

उसे पालतू कुत्तों से बहुत प्यार है। शुक्र मनाओ तुम नहीं थे।

वो बोले कल जो हुआ उससे वो बहुत दुखी हूं। उनकी पीड़ा को वो ही समझ सकते हैं।
हद है, कुछ लोगों को नौकरी में बने रहने का भी दुख होता है।
मैं तो ऊपर वाले से ये ही दुआ करूंगा कि वो उनके सारे दुख हर ले।

करीब सवा सौ लोगों को नौकरी से बेदखल करने के बाद उसने कल ऐलान किया कि अब कोई नहीं जाएगा।
बाहर नंदू चायवाले के हाथ से चाय का गिलास छूटते छूटते रह गया। क्या??…क्या?? क्या, वो भी नहीं जाएंगे?

उसने ऐलान किया कि नौकरी में बने रहने की केवल एक शर्त है – मल्टीटास्किंग।
उसने खुद ‘सफाई’ अभियान छेड़ा हुआ है।

इस बार ‘भाई’ को राखी बांधना मत भूलना। क्या पता तुम्हारी नौकरी की सुपारी भी ले रखी हो उसने।
#HappyRakshabandhan

पत्रकारों और सहकर्मियों की नौकरी खाने वाले ऐसे सो कॉल़्ड संपादकों का हर फोरम पर बहिष्कार हो। उनको किसी फोरम पर बोलने या पैनल में शरीक होने का न्योता ही क्यों दिया जाए। जहां जहां इनके कॉलम चल रहे हों वहां उन संपादकों से अपील की जाए कि वो इनके कॉलम को बंद करें। इनका सोशन बॉयकॉट ज़रूरी है। और हां, सभी संपादकों के लिए अपना और अपने परिवार का Asset declaration अनिवार्य करना इसको लेकर चैनलों, प्रेस काउंसिल, एडिटर्स गिल्ड और BEA (Broadcast Editors Association ) पर दबाव बनाया जाए। सभी चैनल के संपादक या न्यूज़रूम का हर वो व्यकित् जिसकी तन्ख्वाह एक लाख से ऊपर हो इसके दायरे में लाए जाएं।

आशुतोष,मैनेजिंग एडिटर,IBN7

सच क्या है ? सबका अपना अपना वर्जन है !

धर्म क्या है ? सबकी अपनी अपनी व्याख्या है ।

तेरे और मेरे नज़रिये में फ़र्क क्यों है ? क्योंकि तेरी दुनिया और मेरी दुनिया अलग अलग है ।

तू मुझसे क्यों जलता है ? मैं तुमसे क्यों जलता हूँ ? तू अपनी दुनिया में मस्त रह,मुझे अपनी दुनिया में मस्त रहने दे । तू भी जी,मुझे भी जीने दे

तू क्रांतिकारी है , तुझको तेरी क्रांति मुबारक । मैं सरकारी हूँ , मुझको मेरी सरकार मुबारक । न तेरी क्रांति सच्ची है , न मेरी सरकार पक्की है ।

फ़र्क तेरे नज़रिये में नहीं , तेरे ओढ़े हुये ईमान में है । तू मुझको धोखा दे तो दे , ख़ुद को धोखा तो न दे ।

तू मेरी गर्दन का जिक्र न कर , मेरा खुदा मेरे साथ है । तू अपनी गर्दन की फ़िक्र कर , तेरा तो खुदा भी तुझसे रूठा है ।

तू मेरा बुरा चाहता है , जा तुझे माफ़ किया ।

मुझे मालूम है तू मेरी मौत पे कहकहे लगायेंगा , आज ज़िंदगी पे आँसू बहा ले !

I always believed in market economy with human face,was never attracted to Marxism as that idea outlived and socialism a confused bunch.

In India there is a false consciousness about market economy and there are fake intellectuals who are Marxists without knowing marxism.

I tell such friends please update yourself, world has moved , Marx is dead and gone so dont pretend and fake .
Ideology lives in a time and space,as time and space passes,ideology gets redundant,new tools have to be discovered for new time and space.

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