वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने पत्रकारिता के संदर्भ में एफबी पर आज कुछ जरूरी सवाल उठाए हैं. सवाल इस तरह से हैं –
1-क्या युवा पत्रकारों को न्यूजरूमों में मजबूत, रीढ़वान संपादक, शिक्षक-प्रशिक्षक, उनकी दक्षताओं, विकास पर ध्यान देने वाले वरिष्ठ मिल रहे हैं?
2-क्या युवा पत्रकार भी सीखने, जानने,सुधरने, निखरने, रगड़ने को उत्सुक हैं? क्या वे अपनी कमियों, कमज़ोरियों को जानने-मानने की जिज्ञासा रखते हैं?
3-क्या अखबार/चैनल प्रबंधन युवा पत्रकारों में जिज्ञासा, उत्कृष्टता, सीखने, निखरने को प्रोत्साहित, प्रेरित करने वाला माहौल, मौका,संसाधन देते है?
युवा पत्रकार निमिष कुमार ने राहुल देव के इन्हीं सवालों के संदर्भ में कुछ जरूरी बातें साझा की है. उन्होंने लिखा है –
क्योंकि सवाल राहुल देव सर ने उठाया, तो विमर्श जरुरी है। अभी कुछ प्रादेशिक चैनल्स पर क्रिकेट वर्ल्ड कप का कवरेज देख रहा था। ज्यादा नहीं देख सका, तो चैनल बदलते गया। बेहद घटिया। भौंडा। और दुख की बात है कि ये प्रादेशिक न्यूज़ चैनल्स देश के बड़े मीडिया घरानों के हैं।
जिस तेजी से प्रादेशिक स्तर पर रीजनल न्यूज़ चैनल प्रभावशाली हो रहे है, उससे तो और चिंता होती है। क्योंकि प्रादेशिक स्तर पर हर स्तर पर घटिया ही घटिया। ईमानदार साथी पत्रकार भूखो मर रहे हैं, और दलाल पत्रकार रंडीबाज हो चले हैं। अकूत दौलत के मालिक। लेकिन ना तो मालिकों को चिंता ना संपादकों को खबर।
एक सवाल, देश के हर न्यूज़ चैनल में ब्यूरों पर क्या कोई अपना रुक्का लिखाकर आता है, कि जब तक वो मरेगा नही, ब्यूरों का बाप बनकर रहेगा। वहां बदलाव क्यों नहीं होते। वो ही चेहरे बरसों से हैं। फिर हम मीडिया वाले दिल्ली में बैठकर किस मुंह से बदलाव की बात करते हैं।
दर्द इसीलिए है कि अब ये गंदगी देखी नहीं जाती। और कोई सफाई करने को तैयार नहीं।
जो करना चाहते है, उन्हें दलालों की फौज जीने नहीं देती। मेरे कई दोस्त इसके शिकार हुए हैं। (@FB)