समस्तीपुर से शालीन की रिपोर्ट
बिहार के मुजफ्फरपुर यूनिट से सम्बद्ध एचएमवीएल (दैनिक हिन्दुस्तान) का समस्तीपुर कार्यालय प्रबंधन की अनदेखी के कारण अन्य प्रतिस्पर्धी अखबारों की तुलना में पाठकों को निम्न गुणवत्ता की खबरें परोस रहा है। ‘हिन्दुस्तान’ प्रबंधन की सोच है कि हिन्दुस्तान में चाहे जो कुछ भी जिस तरीके से लगा दिया जाय पाठकों के लिये वहीं सबसे उम्दा क्वायलिटी की खबर होती है! लेकिन ये अब पुरानी बातें हो चुकी है। अखबारों के बीच बढ़े प्रतिस्पद्र्धा में पाठक अब बासी, तथ्यहीन और निम्न गुणवत्ता के अखबारी भाषा को खूब समझने लगे हैं जिसे देखते हुए हिन्दुस्तान प्रबंधन को भी सजग और जागरूक बनना चाहिये।
समस्तीपुर ‘हिन्दुस्तान’ के साथ-साथ बिहार में फल-फूल रहे प्रायः सभी मीडिया हाउस के लिये काफी ‘उर्वर’ जिला है जहां हिन्दुस्तान कई दशक से ‘बादशाह’ की हैसियत रखता है। लेकिन पिछले एक डेढ़ वषों में हिन्दुस्तान के समस्तीपुर आॅफिस में व्याप्त गुटबाजी एवं जातीवाद के कारण यहां की स्थिति काफी शर्मनाक हो चली है जिसका एहसास प्रबंधन को नहीं है या उन्हें अंधेरे में रखा जा रहा है। स्थिति इतनी बदतर हो चली है कि मुख्यालय द्वारा नेतृत्व परिवत्र्तन हेतु जब भी कोई निर्णय लिया जाता है तो यहां जमे एक जाति विशेष की लाॅबी एकजुट होकर यूनियन बना लेते है और नये नेतृत्व में काम करने से इनकार करने की धमकी देने लगते हैं जिससे कि प्रबंधन को यहां के कनीय कर्मियों के समक्ष मजबूर होकर घुटने टेकने पड़ते हैं।
समस्तीपुर में हिन्दुस्तान की ऐसी स्थिति पिछले एक डेढ़ वर्षों से बनी है और संपादकीय टीम द्वारा यहां प्रयोग पर प्रयोग किये जा रहे हैं। लेकिन अब तक के प्रदर्शन के मुताबिक आदरणीय संपादक संजय कटियार जी द्वारा अब तक किये गये प्रयोगों से कुछ सुधार नहीं दिख रहा है बावजूद इसके वे इस जिले की व्यवस्था को गंभीरतापूर्वक नहीं ले रहे हैं। कहने-सुनने के लिये तो बहुत सारी बातें समस्तीपुर के सड़कों पर सुनने को मिलती है और ‘कानाफूसी’ की तथ्यपरक बातों में दम भी नजर आता है लेकिन पता नहीं किसकी नियत में खोट है कि समस्तीपुर कार्यालय को एक कुशल टीम लीडर उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। पूर्व के दिनों में जब तक प्रियरंजन जी (अब पटना मुख्यालय में) के हाथों यहां की बागडोर थी तब तक यहां सब कुछ ठीक-ठाक दिखता था लेकिन उनके जाने के बाद जिन्हें भी यहां का नेतृत्व सौंपा गया वे सभी निजी स्वार्थ की सिद्धि और जातीयता की राजनीति के चक्कर में ‘हिन्दुस्तान’ के लिये भष्मासुर साबित हुए। मौजूदा ब्यूरो प्रभारी ब्रजमोहन मिश्रा की इस जिले में यह दूसरी पारी है। अपनी पहली पारी के दौरान ब्रजमोहन मिश्रा निष्पक्ष छवि वाले कर्मठ युवा पत्रकार के रूप में जाने जाते थे लेकिन दूसरी पारी में वे यहां काफी बदनामी बटोर रहे हैं और हिन्दुस्तान को भी उनसे सिवाय बदनामी के कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है। उनकी बदनामी फैलाने में उनके कुछ तथाकथित सहयोगी ही साजिश और अफवाहों को हवा देने में लगे रहते हैं।
ब्रजमोहन मिश्रा से जुड़ी नई ‘कानाफूसी’ के मुताबिक दूसरी पाली में उनका कद प्रेस (हिन्दुस्तान) से भी बड़ा हो गया है और वे शहर के सबसे महंगे होटल जिसमें हिन्दुस्तान का कार्यालय भी अवस्थित है के एक महंगे टाईप वाले कमरे के परमानेंट किरायेदार हैं। होटल के जिस रूम में ब्यूरो प्रभारी का ठिकाना है आम लोगों को वह कमरा कम से कम 500 रूपये प्रतिदिन की दर पर मिलता है। इस मुद्दे पर उनके बवाच में कार्यरत लाॅबी की दलील है कि होटल के मालिक ने उनके पद का सम्मान करते हुए उन्हें रियायती दर पर कमरा दिया हुआ है। लाख टके का सवाल है कि होटल प्रबंधन यदि रूतबे और रूआब को देखकर अगर रियायत करता तो एचएमवीएल से भारी भरकम किराये के बदले मामूली रकम ही लेकर अखबार को उपकृत करता क्योंकि हिन्दुस्तान इस जिले में लीडिंग अखबार की हैसियत रखता है लेकिन एचएमवीएल के बदले उसके इम्लाई को बड़ी छूट देने का मतलब यह निकलता है कि ब्यूरो प्रभारी का कद बैनर (हिन्दुस्तान) से भी बड़ा बन गया है। खैर मशहूर और कद का बड़ा होना अच्छी बात है लेकिन उसका आंशिक फायदा भी हिन्दुस्तान को जरूर मिलना चाहिये जो नहीं मिल पा रहा है।
अंदरखाने की खबर है कि अपनी दूसरी पाली में ब्यूरो प्रभारी आॅफिस के विधि-व्यवस्था के बदले ‘टूर एण्ड ट्रेवल्स’ पर ज्यादा ध्यान देते हैं जिससे कार्यालय में अराजकता की स्थिति बनी रहती है। वे बराबर मुख्यालय से गायब रहकर कार्यालय को संचालित किया करते हैं जिसका नतीजा है कि भाई-भतीजावाद और जातीयता की प्रवृति वाले ‘हिन्दुस्तानियों की पौ बारह’ हो जाती है और अच्छे रिर्पोटरों के दमदार समाचारों का कत्ल कर दिया जाता है या उसे बासी बनाकर प्रकाशित किया जाता है। और अगर ब्यूरो प्रभारी मुख्यालय में रहते भी हैं तो पत्रकारिता की आड़ में ‘धनबली’ बनने की ख्वाहिश पाल रखे तथाकथित ‘हिन्दुस्तानी’ उनकी जरूरत से ज्यादा मक्खनबाजी कर उन्हें अंधेरे में रखकर अपनी स्वार्थ सिद्धि करते हैं जिससे बिहार के नंबर वन अखबार की प्रतिष्ठा धूमिल होती है। कुल मिलाकर ब्रजमोहन मिश्रा समस्तीपुर कार्यालय के विधि व्यवस्था संधारण में अक्षम साबित हो रहे हैं।
हिन्दुस्तान प्रबंधन को समस्तीपुर कार्यालय की गरिमा को बरकरार रखने और आंतरिक विधि-व्यवस्था को दुरूस्त रखने के लिये ‘ढ़ुलमुल नीति’ के बजाये ‘ठोस रणनीति’ बनानी होगी साथ ही आॅफिस में व्याप्त गुटबाजी और यूनियनबाजी को समाप्त करने हेतु नये सिरे से टीम का गठन करना होगा। नये सिरे से टीम गठन के लिये अन्य प्रतिस्पद्र्धी अखबारों में से अच्छे और स्वच्छ छवि के कर्मियों को अपने से जोड़ना चाहिये या फिर कार्यालय कर्मियों का सामूहिक स्थानान्तरण और दूसरे जिले की टीम को यहां उताड़कर जातिवाद के बुलंद ईमारत को ध्वस्त किया जा सकता है। हिन्दुस्तान प्रबंधन को इस जिले में अपनी बादशाहत कायम रखने के लिये इस समाचार में दिये गये तथ्यों की जांच-पड़ताल करनी चाहिये और आरोप सत्य साबित होने पर अविलंब सख्त कदम उठाना चाहिये। आरोपों की जांच करने के लिये आदरणीय संपादक जी लगातार दस दिनों तक प्रतिस्पद्र्धी प्रभात खबर एवं दैनिक जागरण के समस्तीपुर संस्करण के साथ अपने अखबार का तुलनात्मक अध्ययन करें, सबकुछ आईना की तरह दिखने लगेगा। अगर संपादक जी द्वारा इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो समझा जायेगा कि वे भी मुजफ्फरपुर यूनिट में पत्रकारिता के बदले पेटकारिता को बढ़ावा दे रहे हैं और स्वंय अपनी कुर्सी की सुरक्षा कर रहे हैं।