सर्जिकल स्ट्राइक के कई दिनों बाद भी साधन संपन्न हिंदी मीडिया ने खुद के स्रोतों से सबूत जुटाने जहमत नहीं की बस सरकार का मुँह ताकते रहे। तभी एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार ने अपनी खोजी पत्रकारिता के जरिये सबूत सार्वजनिक कर दिए हिंदी चैनलों को सांप सूंघ गया और अपनी नाकामी छुपाने के लिए अख़बार का हवाला देने लगे ।
हिंदी मीडिया चाहे वो चैनल हो या अखबार इनमे गंभीरता एवं परिपक्वता,जिम्मेदारी का अभाव सहज देखने को मिलता है। टीआरपी की होड़ में रचनात्मकता,खोजी पत्रकारिता से कोसों दूर है हिंदी मीडिया।
विज्ञापनों के लदे अखबारो में खबरें ढूंढनी पड़ती है। चैनलों में ब्रेक पे ब्रेक देखकर दर्शक ऊब चुका है। अनेक चैनल मुर्ख नेताओं की बदजुबानी पर बहस करके कई दिन खपा देते है। हाल ही में केजरीवाल, संजय निरुपम ,ओम पुरी की नापाक बदजुबानी का फायदा पाकिस्तान ने भरपूर उठाया क्या मीडिया इसका दोषी नहीं है।
कुछ चैनल एबीपी न्यूज़ (भारत वर्ष,राम लीला),न्यूज़ नेशन ,एनडीटीवी (सामाजिक मुद्दे) के रचनात्मक प्रयास सराहनीय है।
लेकिन देश के शीर्ष चैनलों में ग्लैमर का तड़का,चमचमाती स्क्रीन,घिसेपिटे कार्यक्रम,कार्टून,बहस,शोरगुल के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला । बेहतर होगा की हिंदी मीडिया अंग्रेजी मीडिया की बेहतर कार्यप्रणाली से कुछ सीखे।