मनोज बाजपेयी की है तेवर, बाकी के तेवर ढीले
मनीष झा, फिल्म समीक्षक और पूर्व निदेशक, मौर्य टीवी
बचपन से सुनते आ रहे हैं कि नकल के लिए भी अकल चाहिए, लोग उपदेश भी देते हैं लेकिन उसपर अमल नहीं हो पाता। यही हाल हुआ है अमित रविंद्रनाथ शर्मा की पहली फिल्म के साथ। तेवर एक सफल तेलुगू फिल्म ओकाडू की रीमेक है। दरअसल फिल्म बनाते समय फिल्म की पृष्ठभूमि के साथ दर्शकों की पृष्ठभूमि भी ध्यान में रखना जरुरी होता है। यह फिल्म यहीं फेल हो गई है। एक्शन पैक्ड इस फिल्म को अब भी साउथ के दर्शक बड़े चाव से देखेंगे लेकिन हिंदी फिल्म के लिए यह कथानक २५ साल पुरानी फिल्मों का है। फिल्म की कहानी उस दौर की फिल्मों से मिलती है जहां सिर्फ टाइप्ड फिल्में बनती थीं और दर्शक उन्हें बार-बार देखने जाते थे। एक नायक, एक नायिका और एक विलेन… नायिका की पसंद नायक और विलेन की पसंद नायिका और बीच में सुपरमैन – नायक। नायिका के हिस्से नाचने, पेड़ों के इर्द-गिर्द घूमने और चंद चूमा-चाटी के अलावा कुछ नहीं, विलेन और नायक में जो कलाकार मजे दे गया वो बाजी मार ले गया।
बहुत पहले सदी के महान अभिनेताओं में से एक राजेंद्र कुमार ने अपने बेटे को स्थापित करने के लिए एक फिल्म बनाई थी नाम और उसमें बेहतर अभिनेता के तौर पर उभरे संजय दत्त। इस फिल्म के साथ भी कुछ- कुछ वैसा ही हुआ है। अर्जुन कपूर को यह रिस्क नहीं लेना चाहिए था। अर्जुन के करियर ग्राफ को ऊंचाई देने के लिए बनी इस फिल्म को देखकर लगता है कि यह फिल्म मनोज बाजपेयी के लिए बनाई गई है। जाहिर है मनोज इस सदी के महानतम अभिनेताओ में से एक हैं उनके सामने अर्जुन हल्के हो गए हैं। मनोज लगातार अपने आपको एक्सप्लोर कर रहे हैं। कई सीन तो मनोज बाजपेयी के लिए बार-बार देखने को मन करता है (पूरी फिल्म नहीं)। सोनाक्षी अपनी बाकी फिल्मों की तरह इसमें भी प्रधान अतिथि नायिका ही हैं जिनका करियर अगले २-३ साल तक ठीक चलेगा और अगर उन्होंने अपने आपको एक्सप्लोर नहीं किया तो …. फिर जल्द ही भाभी के किरदार से संतोष करना पड़ सकता है। राज बब्बर बेहतरीन हैं, मैं कई बार सोचता हूं उनको राजनीति नहीं करनी चाहिए थी। हमारे जैसे दर्शकों के लिए ऐसा अभिनेता लंबे समय बाद पर्दे पर दिखता है तो लगता है कि कुछ मिसिंग है बॉलीवुड में। दीप्ति नवल के हिस्से भी ज्यादा कुछ नहीं है लेकिन जो भी है अच्छा निभाया है। सुब्रत धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं, इस फिल्म से सुब्रत को लाभ होना चाहिए आखिर २० सालों से संघर्षरत भी तो हैं।
निर्देशक चूंकि एक ऐड फिल्म मेकर हैं इसलिए कुछ बेहतरीन शाट्स की उम्मीद थी, कुछ हैं भी लेकिन इतना तो कोई भी निर्देशक करता। अर्जुन कपूर ने सलमान के प्रति अपनी श्रद्धा, मैं हूं सुपरमैन… सलमान का फैन से जाहिर की है लेकिन काफी दिनों बाद श्रुति दिखीं, एक आइटम नंबर में और वो भी जुबान पर नहीं चढ़ता ..वेस्ट हो गया
तेवर बिल्कुल नब्बे के दशक की मसाला फिल्म है। विलेन से बचाने के लिए हीरो का यहां-वहां भागना, माता-पिता की जानकारी के बिना घर में छुपाना, इस किस्से में बहन का राजदार होना, जाने-अनजाने पिता का भी लव-ट्रायंगल में अहम किरदार हो जाना सब कुछ मसाला। टू स्टेट्स और फाइंडिंग फेनी के बाद अर्जुन से कुछ और उम्मीद थी। मनोज बाजपेयी जब संघर्ष कर रहे थे तो ऐसी ही फिल्में बनती थी, लिहाजा उन्होंने भी सोचा होगा चलो एक मसाला फिल्म का भी आनंद लिया जाए। कुल मिलाकर यह फिल्म सिर्फ मसाला फिल्मों के लिए ही देखी जा सकती है । किसी संदेश या पूर्ण मनोरंजन के लिए बिल्कुल नहीं।
*फिल्म को हमारी तरफ से दो स्टार और मनोज बाजपेयी के लिए अलग से आधा स्टार
कुल ढाई स्टार
(मनीष झा, फिल्म समीक्षक और पूर्व निदेशक, मौर्य टीवी)
(साभार – जिया इंडिया)