सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों से निपटने को संसदीय पैनल की सख्त सिफारिशें

नई दिल्ली: संसदीय स्थायी समिति ने फर्जी खबरों को लोकतंत्र और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए “गंभीर खतरा” बताते हुए इसके खिलाफ कड़े उपाय अपनाने की सिफारिश की है। समिति ने रिपोर्ट में ऐसे कदम सुझाए हैं जिनका उद्देश्य सूचना की विश्वसनीयता बढ़ाना और गलत सूचनाओं के फैलाव को रोका जाना है।

मुख्य सिफारिशें

  • कठोर दंडात्मक प्रावधान: रिपोर्ट में कहा गया है कि फर्जी खबरें फैलाने वालों के खिलाफ मौजूदा कानूनों को और मजबूत किया जाए तथा दंड सख्त किए जाएं।
  • जवाबदेही तय करना: प्रकाशक, संपादक, और कंटेंट हेड्स को सामग्री की सत्यता के लिए जवाबदेह बनाया जाए ताकि प्रकाशित खबरें अधिक जिम्मेदार हों।
  • अनिवार्य फैक्ट-चेक मिक्सन: प्रिंट, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक सभी प्रकार के मीडिया में तथ्य जांच का तंत्र लागू करने का सुझाव दिया गया है।
  • स्वतंत्र फैक्ट-चेकर्स का समन्वय: सरकारी निकायों के साथ-साथ स्वतंत्र और निजी तथ्य-जांच संस्थाओं को भी प्रक्रिया में शामिल करने की सिफारिश की गई है।
  • एआई और संवेदनशील मुद्दे: रिपोर्ट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुरुपयोग और महिलाओं/बच्चों से जुड़े झूठे दावों को रोकने पर भी जोर दिया गया है।

आगे की प्रक्रिया

समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए तैयार कर दी है और इसे आधिकारिक रूप से आगे के सत्र में उठाया जा सकता है। यदि प्रस्ताव पारित होता है तो इससे जुड़ी नियमावली और प्रवर्तन के तरीकों पर आधिकारिक चर्चा शुरू हो जाएगी।

विश्लेषण

फर्जी खबरों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मंशा सकारात्मक कदम है—पर चुनौती यह है कि दंड और जवाबदेही के संतुलन के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे। साथ ही, तथ्य-जांच को मजबूत करने के लिए मीडिया संगठनों, टेक प्लेटफॉर्म और नागरिक समाज के बीच पारदर्शी समन्वय आवश्यक होगा।

नोट: यह लेख सार्वजनिक जानकारी और संसदीय पैनल की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया है।

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