दिल्ली । हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार, भाषाविद्, शिक्षक और ‘व्यंग्ययात्रा’ के यशस्वी संपादक डॉ. प्रेम जनमेजय को उनकी उल्लेखनीय साहित्यिक सेवा के लिए ‘सृजनगाथा डॉट कॉम लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड’ से अलंकृत किया जायेगा । साहित्यिक वेब पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम द्वारा यह सम्मान विगत 7 वर्षों से हिंदी के किसी वरिष्ठतम् रचनाकार को उसके अप्रतिम रचनात्मक योगदान के लिए दिया जाता है ।
आधुनिक हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के समर्थ व्यंग्यकार श्री जनमेजय को 17 मई से 24 मई, 2015 तक होनेवाले 7 दिवसीय 10 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन (लमही से लुम्बिनी) में इस सम्मान से नवाज़ा जायेगा । मुख्य समारोह में उनके प्रसिद्ध व्यंग्य का पाठ भी होगा ।
राजधानी में गँवार, बेर्शममेव जयते, पुलिस ! पुलिस !, मैं नहिं माखन खायो, आत्मा महाठगिनी, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, शर्म मुझको मगर क्यों आती, डूबते सूरज का इश्क, कौन कुटिल खल कामी, ज्यों ज्यों बूड़ें श्याम रंग, लीला चालू आहे उनके प्रमुख व्यंग्य संकलन हैं । उनकी आलोचनात्मक कृतियाँ है- प्रसाद के नाटकों में हास्य-व्यंग्य, हिंदी व्यंग्य का समकालीन परिदृश्य, श्रीलाल शुक्ल : विचार, विश्लेषण और जीवन । उनका सुपरिचित नाटक है – सीता अपहरण केस । उन्होंने बाल साहित्य भी रचा है, ये पुस्तके हैं – शहद की चोरी, अगर ऐसा होता, नल्लुराम । उनकी अन्य कृतियाँ हैं – हुड़क, मोबाइल देवता । उन्होंने बींसवीं शताब्दी उत्कृष्ट साहित्य : व्यंग्य रचनाएँ, हिंदी हास्य-व्यंग्य संकलन (श्रीलाल शुक्ल के साथ सहयोगी संपादक), दिविक रमेश:आलोचना की दहलीज़ पर जैसे पुस्तकों का संपादन भी किया है । मेरे हिस्से के नरेंद्र कोहली उनकी संस्मरणात्मक कृति है ।
डॉ. प्रेम जनमेजय को अब तक व्यंग्यश्री सम्मान, कमला गोइन्का व्यंग्यभूषण सम्मान, संपादक रत्न सम्मान, साहित्यकार सम्मान, इंडो-रशियन लिटरेरी क्लब सम्मान, अवंतिका सहस्त्राब्दी सम्मान, हरिशंकर परसाई स्मृति पुरस्कार, प्रकाशवीर शास्त्री सम्मान, अट्टहास सम्मान, काका हाथरसी सम्मान, हिंदी अकादमी साहित्यकार सम्मान,पं. बृजलाल द्विवेदी अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान आदि कई सम्मानों और पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है ।
उन्होंने देश से बाहर वेस्टइंड़ीज़ विश्वविद्यालय में अतिथि आचार्य 4 वर्ष तक हिंदी की रचनात्मक सेवाएँ दी हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल स्टडीज़ में एशोसियेट प्रोफ़ेसर के पद से सेवानिवृत श्री जनमेजय ने इंडो रशियन लिटरेरी क्लब के महासचिव के रूप में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाने के साथ-साथ गगनांचल जैसी पत्रिका का संपादन-प्रकाशन कर नयी पीढ़ी के व्यंग्यकारों का मार्ग प्रशस्त किया है ।