तारकेश कुमार ओझा
सचमुच पीछे मुड़ कर न देखना शायद इसी को कहेंगे। रेलवे की सामान्य नौकरी और संघर्षशील क्रिकेटर का जीवन जीते हुए टीम इंडिया के सफलतम कप्तान महेन्द्र सिंह धौनी की जीवन शैली में शुरूआत से ही राजसी अंदाज नजर आते थे। आखिरकार टेस्ट क्रिकेट से विदाई भी उन्होंने इसी अंदाज में ली। धौनी के लिए यह संन्यास लेने का सही वक्त था या नहीं, अथवा उनके अचानक संन्यास लेने के पीछे क्या कारण थे, इस बहस में पड़ना अब फिजूल ही माना जाएगा। क्योंकि जो होना था वह तो हो ही चुका। लेकिन इतना तय है कि धौनी ने अचानक संन्यास लेकर न सिर्फ सभी को चौंका दिया, बल्कि सचिन तेंदुलकर , सुनील गावस्कर , कपिल देव व अन्य महान क्रिकेटरों के विपरीत टेस्ट क्रिकेट से अपनी विदाई को उन्होंने भावुक अथवा नाटकीय कतई नहीं होने दिया। इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि इस अंदाज में करियर के शिखर पर होते हुए अचानक इस तरह से संन्यास की घोषणा अतीत में आस्ट्रेलिया के महानतम बल्लेबाज ग्रैग चैपल ने ही की थी।
दरअसल मैं पश्चिम बंगाल के जिस खड़गपुर शहर में रहता हूं , वहां एक सामान्य व स्वपनिल नवयुवक के तौर पर महेन्द्र सिंह धौनी 1999 से 2000 के बीच रेलवे की नौकरी करने आए थे। यहां उन्होंने अपने संघर्ष के करीब पांच साल गुजारे। स्पोटर्स कोटे के तहत रेलवे से मिली टिकट चेकर की नौकरी को प्लेटफार्म की तरह उपयोग करते हुए धौनी भारतीय टीम में चुने जाने के लिए अथक प्रयास करते रहे। टीम में चुने जाने से कुछ पहले तक छुट्टियां व अन्य सुविधाओं को लेकर धौनी कुछ तनावग्रस्त और परेशान जरूर हुए। लेकिन इस काल अवधि में उनके द्वारा यहां गुजारा गया वक्त पूरी तरह से राजसी ठाठ – बाट से भरपूर रहा। मानो यहां आने से पहले ही उन्हें पता था कि विधि ने उनके लिए क्या रच रखा है औऱ वे एक व्यक्ति से परिघटना बनने जा रहे हैं।
2005 में टीम इंडिया केे लिए चुने जाते ही वे कस्बाई से राष्ट्रीय तो हो ही चुके थे। पाकिस्तान के खिफाल खेली गई श्रंखला में कमाल दिखाने औऱ अपने लंबे बालों के लिए तत्कालीन पाकिस्तानी शासक जनरल परवेज मुशर्रफ की प्रशंसा पाकर उनकी शख्सियत देखते ही देखते अंतर राष्ट्रीय हो गई। फिर कमाई व दूसरी अन्य उपलब्धियों के लिए फोर्ब्स समेत तमाम अंतर – राष्ट्रीय पत्रिकाओं की शख्सियत के तौर पर चुने जाते रहने से वे क्रिकेट की दुनिया के जगमगाते सितारे बन गए। खड़गपुर जैसे एक छोटे से शहर में धौनी जितने दिन रहे , उनके बिंदासपन और जिंदादिली का हर कोई कायल रहा। कई – कई महीने के लंबे प्रशिक्षण के बाद शहर वापसी पर कई महीने का वेतन एक साथ लेना और फिर दोस्तों के साथ सैर – सपाटा व मस्ती उनकी आदतों में शामिल रहा। उन्हें कभी फिक्रमंद नहीं देखा जाता था। करियर के शिखर पर रहने के दौरान वे जैसे दिखाई देते थे , लगभग वैसा ही यहां रहने के दौरान भी नजर आते थे। उनमें गजब का आत्मविश्वास शुरू से ही था । उनके साथ खासा लम्हा गुजार चुके उनके दोस्त गवाह है कि क्लबों की ओर क्रिकेट खेलने के लिए उनके दूसरे खिलाड़ी साथी जहां ससम्मान दिया जाने वाला मानदेय का लिफाफा रख लेते थे। लेकिन सामान्य सी नौकरी करते हुए भी धौनी ने यह कभी स्वीकार नहीं किया। माही की कर्मस्थली में चाउमिन का ठेला लगा कर गुजारा करने औऱ महीनों धौनी को यह खिलाने वाले कमल बहादुर ने धौनी के रिटायरमेंट पर बड़ी सधी हुई टिप्पणी की। कमल के मुताबिक धौनी हर फैसला सही समय पर ठंडे दिमाग से करते हैं। वे देश के लिए खेलते हैं। इसलिए उन्हें जब लगा कि वे टीम के लिए खास उपयोगी साबित नहीं हो रहे तो उन्होंने रिटायरमेंट का फैसला कर लिया। हालांकि उन्हें उम्मीद है कि धौनी वनडे और 20-20 मैचों में पहले की तरह अपना कमाल दिखाते रहेंगे।
(लेखक दैनिक जागरण में कार्यरत हैं)
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