ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार-
एग्ज़िट पोल कि चर्चाओं के बीच दिल्ली सरकार के बजट पर चर्चा कही खोकर रह गई। मैं भी टीवी चैनलों और अन्य व्यस्तता में कुछ लिख नहीं पाया। जबकि कहना चाहिए था यह अच्छा बजट रहा। 48000 करोड़ के बजट में 11000 करोड़ से ऊपर शिक्षा के लिए और कोई 6000 करोड स्वास्थ्य के खाते में रखना सरकार की प्राथमिकता ज़ाहिर करता है।
दोनों क्षेत्रों में अच्छा काम हुआ है। मोहल्ला क्लीनिक की तारीफ़ दबे स्वर में विरोधी भी करते हैं। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शिक्षा के काम में निजी तौर पर बहुत दिलचस्पी ले रहे हैं। पिछले साल के मुक़ाबले बजट में लगभग एक चौथाई बढ़ोतरी निजी दख़ल के बग़ैर सम्भव न होती। इससे सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने का उनका लक्ष्य कुछ पूरा होगा। युवा वर्ग में पढ़ने की प्रति रुचि घट रही है, इस तथ्य के मद्देनज़र 1000 करोड़ रुपए का प्रावधान नए पुस्तकालयों के लिए करना भी बड़ी बात है।
कहा गया है कि पहली बार कोई ‘आउटकम बजट’ पेश हुआ है। यानी हर तिमाही हर बड़े आवंटन के उपयोग/अनुपयोग/दुरुपयोग की ख़बर ली जाएगी। सबसे निराली बात मुझे यह लगी कि अपने आप को बाक़ी राजनीति से अलग रखने का सिलसिला निभाते हुए मनीष बजट के काग़ज़ात बड़े बाबुओं वाले ब्रीफ़केस में नहीं, खादी भंडार वाले झोले में टाँग कर विधानसभा पहुँचे।
और राजधानी में 6000 शौचालय और बनाए जाएँगे। क्या उम्मीद करें कि कम-से-कम दिल्ली में अब कोई दीवार से गंदगी बढ़ाता हुआ नहीं मिलेगा?