हरिमोहन विश्वकर्मा
सचमुच लोकतंत्र में लोक यानी प्रजा यानि देशवासी ठगने के लिए ही जन्मे हैं. राजशाही का तो ठगने के मामले में जनता पर पहला अधिकार है ही अगर उसके बाद किसी को आसानी से ये अधिकार प्राप्त है तो वे हैं इस देश के नटवरलाल, फिर चाहे वे चिटफंड कम्पनियां बना कर लूटें या बुद्दू बना कर.
जैसे लोकतंत्र में जनता को लूटने वाले नेताओं से सुरक्षा प्राप्त है फिर भी वह लुटती है और बार -बार लुटती है , जान बूझकर लुटती है, मानो उसे लूटा जाना ही उसकी नियति है वैसे ही बातों के मायाजाल में फांस कर इसी जनता को लूटने वालों से भी बचाने के लिए कानून है लेकिन फिर भी जनता लुटती है, क्योंकि कानून को ऐसे नटवरलाल जेब में रख कर चलते हैं.
अब सेबी को ही लीजिये, अब सब साधनों से संपन्न है ताकि जनता को नटवरलालों से लुटने से रोक सके. लेकिन फिर भी इतनी मजबूर है कि ५८ फर्जी कम्पनियों पर रोक लगाने के बावजूद वे जनता को लुटे चली जा रहीं है
और सेबी बेचारी बयानबाजी कर रही है कि हमने तो रोक लगा दी फिर भी कम्पनियां लोगों को उल्लू बनाने वाली योजनायें चला कर लूटे चली जा रहीं हैं. सी बी आई हमारे देश की सबसे ताकतवर इन्वेस्टीगेशन संस्था है लेकिन उसकी जांच है कि ४ साल में भी पूरी नहीं हो पा रही है. हो भी कैसे जब मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और सांसद से लेकर विधायक तक सीधे -सीधे या दायें -बाएं से लूट में शामिल हों, नेताओं से लेकर खिलाड़ी तक इसमें साझीदार हों तो कौन इस गोरखधंधे में हाथ डाले फिर वह सी बी आई ही क्यों न हो. रोज कानून बन रहे है या बनाये जाने के आश्वासन हों लेकिन सब कानून चिटफंड के इन होनहारों से हलके सिद्ध हों तो कैसे बचेगी जनता लुटने से.
इन चिटफंडवालों पर सब कुछ है, नेता से लेकर अभिनेता तक, कानून से लेकर कचहरी तक, पुलिस से लेकर प्रशासन तक और गुंडों से लेकर पत्रकारों तक, बल्कि पत्रकारों को तो अपनी चेरी बनाने का शगल हो गया है इनका, हर चिटफंडिया कोई न कोई चैनल या अखबार निकाले जा रहा है, फिर कौन आवाज उठाये इन पर.
लेकिन आवाज तो उठ रही है, नहीं उठ रही होती तो सहारा जेल में न होते, भंगु फरार न होते, तमाम चिटफंड वाले जेल की यात्रा न कर आये होते और कितने जाने की तैयारी न कर रहे होते.
सिर्फ इतना हो जाए कि जो भी कार्यवाहियां चल रहीं हैं अगर वे पटरी पर तेजी से चल जाएँ, तो वे गरीब और अशिक्षित लोग लुटने से बच जाएँ जो पढ़े -लिखे नहीं हैं जो बड़ी मुश्किलों से अपना पेट काटकर इस उम्मीद में कि चार पैसे बच जाएँ और फिर डबल भी हो जाएँ तो आड़े वक़्त में उनके काम आयें. उन मासूमों को क्या पता कि जिस पैसे को वे आड़े वक़्त के लिए बचा रहे है, नटवरलालों की उस पर बुरी नजर है, थी और रहेगी. जो इन नटवरलालों के पसंदीदा शिकार हमेशा रहे हैं और रहेंगे.
काश सरकार शारदा के सुदीप्तो, सहारा के सुब्रतो और पर्ल्स के भंगुओं टाइप लोगों को एक अपराधी की ही तरह माने और कानून उन्हें भटका हुआ न मान कर उनके साथ रियायत न बरते तो ………….