30 जनवरी 2013 को यूपी के वरिष्ठ मंत्री आज़म खां द्वारा समाजवादी पार्टी मुख्यालय में कथित रूप से सरकारी अफसरों द्वारा डंडे की भाषा समझने और उन पर चाबुक चलाने की बात कही गयी जो अगले दिन विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई, लेकिन उसके अगले दिन उन्होंने आधिकारिक बयान दे कर इससे इनकार किया और इसे भ्रामक और उनकी छवि खराब करने की साजिश बताया.
मीडिया की विश्वसनीयता से जुड़ा मामला होने के कारण सामाजिक कार्यकर्त्ता डॉ नूतन ठाकुर ने प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया से इस आज़म के दोनों बयानों की सच्चाई की जांच की मांग की थी.
प्रेस कौंसिल ने इस बारे में तमाम समाचारपत्र के संपादकों से उनका पक्ष बताने को निर्देशित किया था जिस पर एक (हिंदुस्तान) ने कौंसिल को अपना जवाब देते हुए कहा है कि आज़म के बयान पूरी तरह सही तथ्यों पर आधारित थे.
अख़बार ने अपने जवाब में कहा कि यह एक मीटिंग में मंत्री द्वारा दिया गया सार्वजनिक बयान था जो कई अन्य अखबारों में भी प्रकाशित हुआ था. यह भी कहा गया है कि खबर के तथ्य इतने स्पष्ट थे कि कोई भी समझ सकता है यह बयान उत्तर प्रदेश के अफसरों के लिए था. जवाब में कहा गया है कि आज़म खान ने वास्तव में काफी लोगों के सामने कहा था कि “डंडे की भाषा समझते हैं अफसर” और अतः यह खबर पूरी तरह सही है.