हर्ष रंजन,वरिष्ठ पत्रकार
केजरी से गुण आत हैं, AAP से गुण जात हैं?
मैं केजरीवाल विरोधी नहीं हूं। न ही मेरा किसी राजनीतिक दल से संबंध है। मैंने अपने पहले के पोस्ट में केजरी की तारीफ भी है। वो एक सधे हुए तर्कसंगत नेता के तौर पर बोलते थे।
मगर आज केजरी के बोल में कुतर्क दिखा। एक रिपोर्टर ने जब उनसे सवाल किया कि बीच का रास्ता क्या हो सकता है, तो उन्होंने असंगत जवाब दिया कि बीच का कोई रास्ता नहीं होता। रेप अगर पूरा हो रहा है तो हम बीच का रास्ता अख्तियार करते हुए क्या ये कहें कि रेप आधा ही होना चाहिये।
दरअसल मीडिया ये जनना चाहता था कि 26 जनवरी को देखते हुए केन्द्र के साथ दिल्ली सरकार का जो ये डेडलॉक चल रहा है, वो कैसे खत्म हो ताकि दोनो की साख बची रही। यहां बीच के रास्ते से मतलब एक दूसरे को एस्केप रूट देने से था। मगर रात के जगे केजरी शायद सवाल समझ नहीं पाये या वही बोला जो बोलना चाहते थे, लेकिन फटे मुंह से।
कुल मिलाकर केजरी की शुरुआती पहल सराहनीय कही जा सकती है। पूरी पार्टी में उनके अलावा तर्कसंगत बोलने वाला दूसरा नहीं था। मनीष सिसोदिया मेरे साथ ऑल इंडिया रेडियो में न्यूज रीडर रह चुके हैं। उनसे उम्मीद की जा सकती थी कि तथ्यों को छन्नी से छानकर और फिर उन्हें शब्दों बुनने के बाद तौलकर, पॉज़ का इस्तेमाल कर, कहां स्ट्रेस देना है, कहां वॉयस थ्रो करना है, कहां बेस बढ़ाना है, इत्यादि टूल्स का इस्तेमाल कर अपने वक्तव्य को प्रभावशाली बनाएंगे, लेकिन वो ऐसा कर नहीं पा रहे हैं। मुझसे गुस्सा हो जायेगें मगर कहना पड़ेगा कि कई बार हकला भी जा रहे हैं।
आशुतोष, आजतक चैनेल के लॉंच से पहले , लंबे समय तक एंकरिंग और पैनेल डिस्कशन की प्रैक्टिस करते रहे। कई दफा मॉक प्रैक्टिस में मैं भी उनके साथ बैठा। तब आजतक डीडी पर प्रोग्राम मात्र होता था। बाद में नकवी साहब के नेतृत्व में 10-तक जैसे पॉयोनियर न्यूज़ कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने वर्च्अल सेट पर स्टैंडिंग एंकरिंग सीखी। खड़े हो कर एंकरिंग करने की शुरुआत कराने का श्रेय आजतक को ही जाता है। आशुतोष की जानकारी काफी है, उसके सामने मैं कुछ भी नहीं। लेकिन उस जानकारी को आर्टिकुलेट कैसे करें , ये उन्हें अब भी सीखना है। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर गुस्सा हो रहे हैं, रूस जा रहे हैं कि अब बोलूंगा ही नहीं। अभिसार आवाज़ और पर्सनॉलिटी के दम पर लीड ले जा रहे हैं।
प्रवक्ताओं को FTTI Pune से एक्टिंग की ट्रेनिंग लेनी चाहिये कि डॉयलॉग जब दूसरा बोल रहा हो तो फेस का एक्सप्रेशन कैसे दें। आशुतोष तो बॉडी लैंगवेज़ और एक्सप्रेशन आधारित कई अंतर्राष्ट्रीय नेताओं पर रिपोर्टिंग कर चुके हैं। उन्हें बखूबी मालूम है कि फेस के एक्सप्रेशन का क्या महत्व है।
गोपाल राय के बारे में क्या कहूं। अन्ना से डांट खाने के बाद जिसको आंतरिक ग्लानि महसूस न हो, तो आप खुद तय कर लें कि ऐसे शख्स के बारे में बात करना कितना प्रासंगिक है। शाज़िया इल्मी के बारे में मीडिया जगत जानता ही है। गौर करने वाली बात है कि संजय सिंह थोड़ा संभल रहे हैं।
मगर केजरी आप तो ऐसे न थे। कहते हैं संगत से गुण आत हैं, संगत से गुण जात हैं। केजरी पर उनके आसपास के लोगों का गुण ऐसा छाने लगा है कि उनकी ही भाषा बदल गई है।
मेरे जैसे आम आदमी की उम्मीद यही है कि केजरी का पुराना रंग उनकी पार्टी के लोगों पर चढ़े न कि दूसरे अपना रंग केजरी पर चढ़ायें।