अरनब जिस खबर से रिपब्लिक को अगले दिन की नेशनल न्यूज बनाना चाहते थे, वह लगभग गिर चुकी है. यह कोई स्टिंग नहीं है. एक साल पुराना ऑडियो क्लिप था, जो कई लोगों के पास रहा होगा. प्रकाश भाई ने उसे एक्सक्लूसिव कह कर अरनब को चिपका दिया और अरनब ने उसे सुपर एक्सक्लूसिव कह कर चला गया.
बहरहाल नतीजा यह हुआ कि तथाकथित इंटरनेशनल चैनल कही जाने वाली रिपब्लिक पहले ही दिन हिंदी चैनल में बदल गयी है और भोजपुरी होते-होते बची है. क्योंकि अरनब अब यह भी नहीं कह सकते कि ये बातें शहाबुद्दीन के जेल में रहते ही रिकार्ड हुई है. अगर यह कहा जाये कि जब शहाबुद्दीन जमानत पर थे तब की है तो कैसे प्रूव करेंगे.
इसी तरह एक और खबर बिहार के कई पत्रकारों के पास है कि कैसे एक सनकी मंत्री ने एक कथित दंबग एसपी को घर बुलाकर थप्पड़ रसीद कर दिया. बड़े अखबार छाप नहीं सकते. छोटे अखबार या पोर्टल इसलिए नहीं छाप रहे कि इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है और इसे स्टैब्लिश करना भी मुश्किल है.
इस पूरे मामले को रिपब्लिक अगर अब भी बचाना चाहता है तो पहले यह पता करे कि लालू जी को ऐसी कौन सी जमानत मिल गयी है कि चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं और कार्यकारिणी को भी संबोधित कर रहे हैं. यह कैसी सजा है कि दोषी सालों से बाहर है और जमानत में जज साहब ने जो शर्तें डाली थीं वे कितनी बार कहां-कहां टूटी. उससे कुछ नतीजा निकल सकता है, हो सकता है जमानत भी टूट जाये. बांकी राजद से नैतिकता की उम्मीद करना और उसे नैतिकता के कटघड़े में खड़ा करना बेवकूफी है.