अर्णब गोस्वामी की एंकरिंग और न्यूज़ आवर में उनके एजेंडे पर एक दर्शक के नाते देवेन्द्र सुरजन की टिप्पणी : अर्णब का टाइम्स ग्रुप एक तरफ अमन की आशा प्रोग्राम चला कर भारत-पाक संबंधों में शान्ति सौहार्द्र और सीमा पार व्यापार की वकालत करता है तो दूसरी तरफ टाइम्स नाव पर भारत – पाक के सेवानिवृत फौजी अधिकारियों में जंग चलवाता है जिससे ”अमन की आशा” – ”अमन का तमाशा” में परिवर्तित होते लगने लगता है.
अर्णब भी कोशिश करते हैं कि अपनी बात मेहमान टिप्पणीकारों के मुंह से कहलवा डालें, नहीं तो उनकी टोका-टाकी झेले. कई पाकिस्तानी पूर्व सैन्य अधिकारी उनका प्रोग्राम अधबीच छोड कर जा चुके हैं जबकि भारतीय सैन्य अधिकारी एक विशेष खेमे और विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते दिखाई देते हैं. यही स्थिति भाजपा – कांग्रेस के बीच उन्होंने बना रखी है.
भाजपा प्रवक्ताओं को वे बेलौस अपनी बात कहने का मौका और वक्त दोनों देते हैं लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता को उनकी छेड़छाड़ विवशतः झेलना पडती है.
अर्णब वैसे अच्छी रिसर्च के साथ न्यूज आवर प्रस्तुत करते हैं लेकिन इतनी उग्रता के साथ कि जैसे घर में कोहराम मच गया हो. यह बात बरखा दत्त या राजदीप में नहीं है और बिना ब्लड प्रेशर बढाए उनका न्यूज प्रोग्राम देखने में सुकून और सहजता का अनुभव होता है.
अर्णब का चीख – चीख के बात करना / रखना ऐसा आयाम प्रस्तुत करता है जैसे वे भी भाजपा के छद्म प्रवक्ता या पैरवीकार हो. बेहतर हो वे टाइम्स नाव के बैक ग्राउन्ड साउंड को मद्धम रखें और खुद भी सामान्य रहकर प्रस्तुति देवें.
मैं स्वयं एक सप्ताह से अन्य चैनेलों पर अंग्रेज़ी न्यूज देख रहा हूँ और महसूस कर रहा हूँ कि न्यूज आवर उतना जरूरी नहीं जो उसे मैं पिछले करीब पांच साल से नियमित देख रहा था. हर बात में सरकार को दोषी ठहराना और कठघरे में खड़ा करना बहुत हो चुका.
एंटी इस्टेब्लिशमेंट होना अलग बात है लेकिन सजेस्टीव होकर प्रामाणिकता पाई जा सकती है. चुनाव आ रहे हैं और अर्णब ने शैली न बदली तो दर्शक उनसे छिटकेंगे और बिदकेंगे. यह उन्हें जल्दी समझ आ जाना चाहिए, चाहे तो इसके लिए वे गुप्त सर्वेक्षण भी करा सकते हैं.
(लेखक देशबंधु ग्रुप के पूर्व डायरेक्टर हैं)