दुनिया के लिए आप कितने ही बड़े क्यों न हो जाए, लेकिन माँ की नज़र में बच्चे-बच्चे ही होते हैं. माँ की यही ममता उसे तमाम रिश्तों से अलग और विशिष्ट बनाती है. इसी पर वरिष्ठ पत्रकार और इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम ने माँ के साथ अपनी तस्वीर साझा करते हुए भावुक अंदाज़ में लिखा –
अजीत अंजुम-
माँ के लिए आज भी मैं बुतरू हूँ …बुतरू ठेंठ बिहारी शब्द है , जिसका मतलब होता है बच्चा …माएँ छोटे बच्चे को प्यार से बुतरू कहती हैं …आज किसी बात पर माँ ने कहा – हमर बुतरू खैलकै कि नय ? मतलब मेरा बच्चा खाया या नहीं ?
पचास पार कर चुका हूँ लेकिन माँ के लिए आज भी बच्चा ही हूँ ..बहुत दिनों बाद बेगूसराय से दिल्ली आई है ….जब भी घर में होता हूँ , उसका पूरा ध्यान मुझपर होता है ..खाया कि नहीं ..क्या खाया ? इतना कम क्यों खाया ? रात में दूध क्यों नहीं पीया ?
रात को दफ़्तर से घर लौटने पर सो चुकी होती है लेकिन कॉल बेल पर उठती है और ममता भरी नज़रों से देखती है कि बेटा इतना थककर दफ़्तर से आया है ..कभी ज़िद कर देती है कि माथा में तेल लगा देती हूँ ..कभी पैर की मालिश करने की ज़िद कर देती है ..कभी बैठा होता हूँ और चुपके से तेल लेकर सीधे मेरे माथे में डालकर मालिश करने लगती है …तों चुपचाप बैठें न ..करै दे मालिश ..माथा म तेल लगइला स आराम मिलतौ….भीतर से इच्छा होते हुए भी मैं मना करता हूँ लेकिन फिर हथियार डाल देता हूँ कि उसे ख़ुशी तभी मिलेगी , जब वो मेरे सिर में तेल लगा देगी ..
जो काम मुझे करना चाहिए , वो काम वो करने लगती है ..खाते समय उसकी नज़र मेरी प्लेट पर रहती है ..इतना कम क्यों खाते हो ? दूध -दही लो …एक रोटी और लो …ये सब्ज़ी और लो …एक दम ऐसे जैसे मैं छोटा बच्चा हूँ …
माँ आख़िर माँ होती है …
आप की माँ …
माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,
माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है,
माँ बिना इस सृष्टी की कलप्ना अधूरी है,
अजीत अंजुम जी की ‘माँ’ का बेटा बेहतरीन एंकर है उन्हें उनकी जन्म दिन की बधाई