अजीत अंजुम सर के केबिन के पास से गुजरता हूं तो खाली केबिन देखकर बहुत मायूसी होती है

धर्मेन्द्र द्विवेदी

2004 में करीब 10 साल पहले अजीत सर से पहली मुलाकात हुई थी। उन्होंने इंटर्नशिप दी, फिर पहली नौकरी भी उन्होंने दी। हमेशा कुछ न कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करते थे। डांटते भी थे लेकिन बाद में प्यार से समझाते थे।

जब मैं पैकेजिंग में था, तो लिखने के लिए कहा करते थे। अजीत सर ही डेस्क पर लेकर आए, तब से लेकर आज तक टीवी के बारे में जो कुछ सीखा सब अजीत सर से सीखा। लेकिन आज जब वो न्यूज 24 छोड़कर गए तो बहुत दुख हुआ। अब न्यूज रूम में जब भी सर के केबिन के पास से गुजरता हूं तो खाली केबिन देखकर बहुत मायूसी होती है।

पहले जब भी मैं कोई बुलेटिन प्रोड्यूस करता था, तो बुलेटिन ऑन एयर होते ही ये सोचता रहता था कि अभी टॉक बैक पर अजीत सर की आवाज आएगी, किसका बुलेटिन है। रनडाउन प्रोड्यूसर बोलेगा धर्मेंद्र का। आवाज आती थी धर्मेंद्र द्विवेदी को भेजो। केबिन के अंदर कभी वो डांटते भी थे, तो कभी समझाते थे, लेकिन जो भी कहते थे टीवी के लिहाज से 100 फीसदी सच कहते थे।

मगर अब टॉक बैक पर कोई आवाज नहीं देगा। करीब 2 महीने पहले की बात है, सांसदों की कुछ बाइट पर एस्टन नहीं लगा था, अजीत सर ने मुझे बीच न्यूज रूम में बहुत जोर से डांटा। लेकिन बमुश्किल 5 मिनट बीते होंगे उन्होंने मुझे खुद मेरी सीट पर आकर सॉरी बोला। एक बार नहीं तीन बार बोला, भला ऐसा संपादक कहां मिलेगा जो एक प्रोड्यूस से माफी मांगे। लेकिन अब ये सब बीत चुका है, अजीत सर आज यहां से चले गए, आज बहुत मासूय सा महसूस कर रहा हूं।

विकल्प (Zypsy’s Story’s status)

जब से पता चला है कि Ajit Anjum सर ने न्यूज़24 छोड़ दिया, मैं कल्पना ही नहीं कर पाता अपने उस पुराने न्यूज़ रूम की…. सर ने हमको क्लास में स्टोरी को बनाने से लेकर इन्वेस्टिगेशंस तक की क्लासेस दी… हमे पत्रकार बनाने के लिए एक पूरा हैक्टिक वीक रचा गया था.. हर दिन हमारा टेस्ट हुआ करता था.. सर का ऐसा ख़ौफ़ था कि पूछो नहीं .. बहुत सारे बच्चे उन्हे देखकर भाग जाया करते थे कि ना जाने कौन सा सवाल रास्ते में ही पूछ डालें … लिफ़्ट में मिल गए तो सांसे रोक कर खड़े हो जाया करते थे… ऐसा नहीं कि वो खौफ़ पैदा करते थे बल्कि ऐसा जहां वो खड़े होते थे वहां बस उन्ही की presence होती थी… बोलने का बेहद शौक .. पूरे टाइम टीवी पर निगाहें… और चलते चलते उनसे पूछ लीजिए सर फलाने साल में वो नेता कहां से सांसद था.. तो जवाब कितनी वोटों से जीता था के साथ मिलता था.. गज़ब की याददाश्त है उनकी…बखिया उखेड़ देते हैं तो प्यार भी बहुत करते हैं… और अपने ही अंदाज़ में पूछा करते थे क्यों त्यागी .. कमियां बता मेरे शो की.. और मैं सहम जाया करता था…. वो न्यूज़ रुम में एंटर करते थे और हर तरफ बस शांति पसर जाती थी हर कोई कंप्यूटर में मुंह सटाकर बैठा सा…. कभी कभी उस न्यूज़ रूम में एक कुर्सी पर ऐसे बैठते थे जैसे परिवार का मुखिया किसी गांव में बैठा हो और देख रहा हो कि आख़िर चल क्या रहा है……अजित सर मिस द टाइम स्पैंट विद यू… और आपका प्रोग्रामिंग सेंस का क़ायल हूं मैं…. आप हमेशा कहते थे कि डोंट बी संतुष्ट तो मुझे पता है कि आपने कुछ करने के लिए ये बड़ा फैसला लिया होगा
(स्रोत-एफबी)

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