करुण बंसल
नए चैनलों के सामने पहचान का संकट है. अब यह पहचान कैसे बने? इसके लिए कई हथकंडे हैं और उन हथकंडो को अपनाकर कई नए चैनल अपने लिए रास्ता बनाने की कोशिश करते हैं. फिर कुछ भी क्यों न दिखाना पड़े. न्यूज चैनल को एमटीवी में क्यों न बदलना पड़ जाए? या फिर बहस और न्यूज़ के नाम पर पिछले दरवाजे से अश्लीलता का प्रदर्शन ही क्यों न करना पड़े? टीआरपी के लिए कुछ भी करेगा.
वरिष्ठ पत्रकार शैलेश के नेतृत्व में लॉन्च चैनल ‘न्यूज़ नेशन’ पर भी आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है. एंकर अजय कुमार एंकरिंग कर रहे थे. ‘कॉलेज में लव की पढाई’ विषय पर बहस चल रही थी. बहस में एक अभिनेत्री को भी शामिल किया गया था. लेकिन उस अभिनेत्री के कपड़े … तौबा !
ऊपर से कैमरा एंगल ऐसा कि बहस की बजाए वे दर्शकों को क्या दिखाना चाहते थे. साफ़ – साफ़ समझ में आ रहा था. इस मामले में न्यूज नेशन ने वह शालीनता नहीं दिखाई जिसकी एक न्यूज़ चैनल से अपेक्षा की जाती है. यदि एमटीवी या चैनल वी पर ऐसा होता तो किसी को भला क्या ऐतराज हो सकता है?
लेकिन न्यूज़ चैनल पर कपड़ों के मामले में थोड़ी सी शालीनता दिखाई ही जा सकती है? न्यूज़ और पोर्नोग्राफी में कुछ अंतर तो होना ही चाहिए. क्यों अजय कुमार, आप क्या कहते हैं?
(न्यूज़ नेशन के एक दर्शक की चिठ्ठी)
सच में ये बेहद शर्मनाक है …शेलैश जी और उनके लोगों ने जिस तरह चैनल शुरू करते समय जिस तरह की बातें की थीं, लगता है अब उनसे उनका ही मोह भंग हो गया है, साल भर बीत गया है चैनल क्षेत्रीय चैनलों में ही पहचान नहीं बना पा रहा – नेशन वाली कोई बात दिखती भी नहीं