मुकेश विकास
हिंदुस्तान,मोतिहारी प्रसार संख्या में जबर्दस्त उछाल होने से जिले के दूसरे अखबारों में हडकंप मच गया है. बिहार की राजधानी पटना के बाद आबादी की लिहाज से 27 प्रखंडों के साथ पूर्वी चंपारण दूसरा सबसे बड़ा जिला है. फिलहाल जिले में अख़बार का सर्कुलेशन 27000 के आंकड़े को पार कर गया है. एक ग्रामीण इलाके में इतनी बड़ी प्रसार संख्या खुद में एक रिकॉर्ड ही है.
इसके मुकाबले प्रतिद्वंदी अख़बारों दैनिक जागरण, प्रभात खबर, राष्ट्रीय सहारा आदि की कुल प्रसारण संख्या जोड़ भी दी जाए तो बराबरी नहीं कर पाएंगे. यहीं वजह है कि इन सभी बैनरों के संपादकों ने प्रसारण बढ़ाने के लिए यहां का दौरा लगाना शुरू कर दिया है. दूसरी तरफ दैनिक भास्कर प्रबंधन भी हिंदुस्तान टीम को तोड़कर खुद में जोड़ने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहा है. इसके लिए कई तरह के लुभावने ऑफर देकर डोरे डाले जा रहे हैं. क्योंकि लोक सभा चुनाव के पहले यह अख़बार भी सूबे में दस्तक दे देगा.
जिले के अनुभवी खबरचियों की मानें तो कार्यालय में कुछ पुराने घाघ रिपोर्टरों की घिनौनी साजिश के कारण यहां की स्थिति हमेशा उठापटक की रही है. इसीके तहत कुछ वर्ष पहले यहाँ के प्रभारी संजय उपाध्याय षडयंत्र का शिकार हुए और उनका तबादला कर दिया गया.. इसका असर अख़बार में छपे कंटेंट पर भी पड़ा. और अखबार की स्थिति पर्चा-पोस्टर की बन गई. तत्कालीन मॉडेम प्रभारी सच्चितानंद सत्यार्थी की ओर से संपादक को भी गलत रिपोर्ट दिया जाता रहा. उन्होंने अपने तीन वर्षों के कार्यकाल में जमकर अख़बार का दोहन किया. नतीजन अख़बार का कबाड़ा निकल गया.
लेकिन जैसा कि हर बुराई का अंत होता है. स्थानीय युवा संपादक संजय कटियार ने इस अनियमितता को संज्ञान में लिया. गंभीर आरोपों के सही साबित होने पर बतौर कार्रवाई सत्यार्थी को अखबार से निकाल दिया गया. इसी बीच मुजफ्फरपुर यूनिट से सुमित सुमन व बेतिया के हरफन मौला पत्रकार अमिताभ रंजन को भेजा गया. इनके आने के बाद हालात कुछ सुधरे भी. पर व्यक्तिगत कारणों से इनके जाते ही स्थिति जस की तस हो गई.
फिर डैमेज कंट्रोल के लिए यूनिट से मनीष सिंह को भेजा गया. इसमें कोई शक नहीं कि उनमें संपादन की प्रतिभा थी. लेकिन स्वभाव से दब्बू होने व आपसी राजनीति के चलते कार्यालय कर्मियों पर इनका नियंत्रण ना के बराबर रह गया था. कार्यालय के चुनिंदा रिपोर्टरों की मनमर्जी के कारण अखबार में प्रायोजित ख़बरों व फोटो को जगह मिलने लगी. और सरोकारी ख़बरें गायब ही हो गई.
इधर दो वर्षों तक खरामा-खरामा चलने के बाद अख़बार ने बेहतरीन कंटेंट की बदौलत फिर से पाठकों में धाक जमानी शुरू कर दी है. सूत्रों की मानें तो अख़बार को इस नए मुकाम तक लाने में नए प्रभारी मनीष भारतीय का योगदान सराहनीय है. उन्होंने आते ही कुशल प्रशासकीय क्षमता की बदौलत सारी लॉबी ध्वस्त कर दी. अन्दुरूनी राजनीति की शिकार मुफसिल व ग्रामीण संवाददाताओं की टीम को पॉजिटिव कर नए सिरे से कसा. सरल भाषा व रोचक शैली में लिखी गई ख़बरों की उम्दा पैकेजिंग पर विशेष ध्यान दिया. अख़बार में कर्रेंट के साथ समस्यामूलक खबरों को भी विशेष तरजीह दी जाने लगी.
और आखिरकार टीम की यह मेहनत रंग लाइ. फिलहाल अख़बार की पंच लाइन ‘तरक्की को चाहिए नया नजरिया’ की तर्ज पर सकारात्मक व सरोकारी खबरों का फ्लो साफ-साफ दिखने लगा है. खासकर सिटी पेज का लुक मेट्रो स्तर का दिख रहा है. इसको लेकर पाठकों के भी अच्छे फीड बैक मिल रहे हैं.
मोतिहारी से स्वतंत्र पत्रकार मुकेश विकास की रिपोर्ट.