सुशांत झा
इस चुनाव में कुछ हो या न हो.. ‘काशी का अस्सी’ का सेल जरूर बढ़ गया है। कल ही मेरी एक मित्र उसका जिक्र कर रही थी, आज कुछ वरिष्टों ने भी वैसा ही पोस्ट किया है। सुना है कुछ लोग उसका अंग्रेजी अनुवाद खोज रहे हैं!
गुप्त खबर है कि एक गुजराती एनजीओ ने इकट्ठे 25 हजार कॉपी का ऑर्डर दे दिया है। लेकिन यकीन मानिये काशीनाथ सिंह को रॉयल्टी में प्रकाशक देगा-बाबाजी का ठुल्लू।
वैसे जिस तरह से बनारस का मतलब टीवी और फेस वालों के लिए सिर्फ काशीनाथ सिंह होता जा रहा है- चतुर सुजान केजरी को उन पर पहले से आंखे गड़ानी चाहिए थी। खुद की शहादत से बढ़िया था एक हिंदी साहित्यकार को शहीद करने की कोशिश करते।
फिर तो बाबा काशीनाथ वैसा बयान भी नहीं देते जैसा बयान उनके मुखारबिंद से फिसल चुका है। वैसे बाबा को चाहिए कि काशी पर बाईट देने से पहले मात्र 10 हजार रुपया चार्ज करें। हिंदी साहित्यकारों को ऐसा सुनहरा मौका जीवन में एकाध बार मिलता है।(चुनावी चुटकी)
(स्रोत-एफबी)