हिन्दुस्तान में हिंगलिश घुस आया है. लेकिन अमूमन पत्र-पत्रिकाओं से अपेक्षा होती है कि वे जिस भाषा में हैं उस भाषा के प्रति ईमानदारी बरतें और अंग्रेजी समेत दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं के अखबार,पत्र-पत्रिकाएं ऐसा करती भी हैं लेकिन हिंदी में अलग ही नज़ारा है. वे हिंगलिश से ग्रसित हैं. अबतक वे रिपोर्टिंग में ऐसा करती थी लेकिन अब तो अखबार का नाम भी अंग्रेजी में लिखकर उसे अंग्रेजी में लिखने का प्रचलन शुरू हो गया है. न्यूज़ फर्स्ट नाम के एक अखबार ने ऐसा ही कुछ किया है. पेश है उसी को लेकर सोशल मीडिया पर आयी कुछ टिप्पणियाँ –
पुष्कर पुष्प – हिंदी अखबारों के अंग्रेजी नाम पर हिंदी प्रेमी पहले आपत्ति जताते थे। लेकिन अब तो आलम ये है कि अंगेज़ी नाम लेकर और उसे अंग्रेजी में ही छापकर हिंदी अखबार प्रकाशित किया जा रहा है। मुझे समझ में नहीं आता कि आरएनआई इसकी इजाजत कैसे दे देता है!!
राहुल देव(वरिष्ठ पत्रकार)-क्योंकि कोई आपत्ति नहीं करता, मालिक, अधिकांश संपादक भी, अंग्रेज़ी आक्रांत, अनपढ़, विचार और भाषा बोध-हीन हैं। क्योंकि इसपर क़ानूनी रोक पर किसी ने शायद विचार ही नहीं किया है।
पुष्कर पुष्प-छोटे शहरों में हिंगलिश तेजी से पैर पसार रहा है।इस तरह के अखबार उसमें बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
राहुल देव -पर हमारे वरिष्ठ हिन्दी पत्रकारों को इसमें कोई समस्या नहीं दिखती, कुछ को छोड़ कर।
पुष्कर पुष्प -समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है. गाँव के दुकानों के नाम भी अब अंग्रेजी में होते हैं. निरक्षर लोग भी अंग्रेजी के दबाव में है.
पुष्कर पुष्प -दरअसल समस्या अंग्रेजी से नहीं, अपनी भाषा के प्रति लोगों के मोह भंग से है.
राहुल देव- नहीं। मोह भंग नहीं दूसरी भाषा के बढ़ते मोह की है।
Meena Prajapati – Hindi vale hi hindi ko kha rahe h