सीरिया के किसी बर्बाद क़स्बे जैसी दिखने वाली ये तस्वीर हमारी ही सरहद के पास के एक गाँव की हैं ..बारूद से जली कार , गोलों से उजड़ा हुआ मकाँ , जमीदोंज छत , और राख हुई चौखट जंग की विभीषिका के एक ट्रेलर की तरह है …3 अक्तूबर को दुश्मनों के चंद गोलों ने सरहद क्या लांघी , सीमा के पास बसे गाँवों के दर्जनों घर यूँ ही नेस्तनाबूद हो गए …तिनका तिनका जोड़कर लोगों ने जो आशियाना बनाया था , वो बारूद की भेंट चढ़ गया ..ऐसे धरों में रहने वाले कई लोग खुशकिस्मत थे कि अस्पताल पहुँच गए और ज़िंदगी की डोर थामे रह गए ..लेकिन हर बार क़िस्मत साथ नहीं होती .. कई बार सीमा पार आने वाले गोलों पर बेक़सूर बच्चों/बुज़ुर्गों /महिलाओं का नाम लिखा होता है …आधी रात को घर की छत पर अचानक बारूद की बारिश होती है और पूरा परिवार झुलस जाता है …कोई बचता है ..कोई मरता है लेकिन तनातनी के हर दौर में ये सिलसिला चलता रहता है …
हम लोग सीमा पर बरसने वाले इन गोलों और गोलियों की भयावहता को महसूस किए बग़ैर जंग की वकालत करते रहते हैं …सरहद पर मामूली तनातनी का अंजाम जो लोग भुगतते हैं , उनसे पूछिए कि चंद गोलों से उनकी जिंदगी कितनी बेज़ार हो जाती है …पाँच दिन पहले ऐसे ही गाँव में हमारे संवाददाता मनीष प्रसाद भी गए थे ..उनकी भेजी तस्वीरें देखकर ऐसा लग रहा था कि हम अलप्पो की तस्वीरें देख रहे हों …
मौक़ा मिले तो आज के एक्सप्रेस में सरहद के पास रहने वालों के बारे मे। पढ़िए …
फोटो -एक्सप्रेस
(अजीत अंजुम के वॉल से)