मोतिहारी : कस्बे की बात हो या मेट्रो सिटी की. वहां के मीडिया ग्रुप यदि संगठित होकर काम करें तो किसी भी लड़ाई को जीता जा सकता है. शिक्षक नियोजन में फर्जीवाड़े की खबर को लेकर कुछ ऐसी ही एकजूटता इन दिनों शहर के तमाम मीडिया बैनरों में दिख रही है. वह चाहें हिन्दुस्तान दैनिक हो, दैनिक जागरण व प्रभात खबर हों या फिर समय, ईटीवी,साधना (सभी बिहार-झारखण्ड ) सरीखे क्षेत्रीय न्यूज चैनल. अपडेट्स चलाने को लेकर सभी की पहल काबिले तारीफ है. इन खबरों से अखबार की मांग बढ़ती है. शिक्षकों से संबंधित खबर छापने को लेकर ही सूबे के एक अखबार ने पाठकों में धाक जमाई है.
गौरतलब है कि जिले के हरसिद्धि प्रखंड में पिछले दिनों जाली प्रशिक्षण प्रमाण पत्र पर बहाल 26 फर्जी शिक्षकों का खुलासा आरटीआई से मिली जानकारी से हुआ था. इस खबर को मात्र हिन्दुस्तान व देशवाणी पोर्टल ने छापा था. जबकि समय (बिहार-झारखण्ड) ने स्क्रालर में चलाया था. जिसके आधार पर इन शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की जांच होने तक सैलरी पर रोक लगा दी गई. बाद में दूसरे अखबारों ने भी इसका फौलो अप गंभीरता से छापना शुरु कर दिया. इसका सकारात्मक असर विभागीय कार्यशैली पर भी पड़ा. फिलहाल सभी 27 प्रखंडों के नियोजित प्रारंभिक शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की जांच की प्रकिया शुरु कर दी गई है.
डीपीओ, स्थापना भूषण कुमार बताते हैं कि हरसिद्धि के संदिग्ध 26 शिक्षकों के प्रशिक्षण प्रमाण पत्रों को जांच के लिए उतर प्रदेश, इलाहाबाद बोर्ड में भेजा गया है. बहुत जल्द इसकी रिपोर्ट मीडिया को दी जाएगी. जबकि उन्होंने अन्य शिक्षकों के प्रमाण पत्र का सत्यापन तय समय पर न कराने को लेकर सभी बीईओ के वेतन पर रोक लगा स्पष्टीकरण मांगा है. जाहिर सी बात है ये सब मीडिया के प्रयास से ही मुमकिन हुआ है. हालांकि भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबा शिक्षा विभाग क्या जांच का परिणाम निष्पक्ष तरीके से दे पाएगा? इसका बारे में कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी. और इसका अंजाम क्या होगा. इसका दारमोदार भी बहुत हद तक मीडिया की सक्रियता पर ही टिका हुआ है. क्योंकि असली पिक्चर अभी बाकी है. बताते चलें कि वर्ष 06-08 में हुई शिक्षकों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर फर्जी अंक व प्रमाण पत्रों का इस्तेमाल किया गया है.
एक पत्रकार की रिपोर्ट.