दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (डीजेए) ने पत्रकारों के उत्पीड़न के खिलाफ आज 19 सितंबर, 2013 को प्रेस क्लब के बाहर एक धरने का आयोजन किया. सुबह 11 बजे से शुरु होकर दोपहर एक बजे तक चले इस धरने में राजधानी के दर्जनों पत्रकारों ने हिस्सा लिया. इसके बाद प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंप कर उनसे इस संबंध में उचित कार्रवाई करने की मांग भी की गई. दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन लंबे समय से पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर जर्नलिस्ट प्रोटेक्शन एक्ट और आर्थिक सुरक्षा के लिए छंटनी पर रोक लगाने व बेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने की मांग करता आ रहा है. धरने में वरिष्ठ पत्रकार और नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (एनयूजे) के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र प्रभू, एनयूजे के पूर्व कोषाध्यक्ष मनोज मिश्र और मनोहर सिंह, डीजेए के पूर्व अध्यक्ष हेमंत विश्वोई, इंद्रप्रस्थ प्रेस क्लब के अध्यक्ष नरेंद्र भंडारी और महासचिव अंजलि भाटिया, प्रेस क्लब आफ इंडिया के महासचिव अनिल आनन्द, डीजेए के अध्यक्ष मनोज वर्मा और महासचिव अनिल पांडेय के अलावा वरिष्ठ पत्रकार सुभाष निगम, प्रमोद मजूमदार, अनिल वर्मा, अशोक प्रियदर्शी, प्रतिभा शुक्ला, अमलेश राजू भी मौजूद थे.
इस अवसर पर डीजेए ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंप कर उनसे विषम परिस्थितियों मसलन दंगा व हिंसा प्रभावित इलाकों में कवरेज करने वाले पत्रकारों को सुरक्षा और कवरेज के लिए सुविधाएं मुहैया कराने, श्रमजीवी पत्रकारों का 50-50 लाख रूपये का जीवन बीमा कराने, पत्रकारों की सुरक्षा और उनके उत्पीडन को रोकने के लिए जर्नलिस्ट प्रोटेक्शन एक्ट बनाने, पत्रकारों की छंटनी पर फौरन रोक लगाने और देश के सभी मीडिया संस्थानों में नए वेतन बोर्ड की सिफारिशों को अतिशीघ्र लागू कराने की मांग की.
पुलिस और प्रशासन की पोल खोलने वाले पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें दर्ज करा कर उनका उत्पीड़न किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उडीसा आदि राज्यों में ऐसे ढेर सारे मामले सामने आए हैं. डीजेए ने मांग की है कि सरकार एक जांच कमीशन का गठन करे, जो ऐसे पत्रकारों के मामलों की जांच कर छह महीने में अपनी रिपोर्ट जारी करे. जांच में दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. बड़े अखबारी घरानों की बजाए मछोले व छोटे अखबारों में कहीं ज्यादा पत्रकार कार्य करते हैं. यानी ये अखबार ज्यादा मीडियाकर्मियों को नौकरी देते हैं. लिहाजा डीजेए यह भी मांग करता है कि मझोले और छोटे अखबारों को ज्यादा सरकारी विज्ञापन जारी किया जाए ताकि ये अखबार आर्थिक रूप से मजबूत हो कर पत्रकारों को बेहतर वेतन दे सकें.
इस मौके पर राजेंद्र प्रभू ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि पत्रकारों की लगातार हत्याएं हो रही है. जिस पर तो कार्रवाई होनी ही चाहिए. लेकिन मेरा मानना है कि इस समय पत्रकारों को बाहर से ज्यादा खतरा संस्थान के भीतर से है. मीडिया संस्थानों के मालिक अपने मुनाफे की खातिर बेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू नहीं कर रहे हैं. मीडिया संस्थानों में लगातार छटनी हो रही है. इससे पत्रकार असुरक्षा की भावना में काम कर रहा है. हेमंत विशनोई ने कहा कि देश में पत्रकारों का उत्पीड़न बढ़ता ही जा रहा है. देशभर में पत्रकारों की लगातार हत्याएं हो रही है. हम लोग काफी समय से जर्नलिस्ट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग कर रहे हैं. अब सरकार को बिना देरी किए पत्रकारों की सुरक्षा के मद्देनजर कडा कानून बनना चाहिए. प्रमोद मजूमदार ने कहा कि अब हमें चुप नहीं रहना है. पत्रकारों के शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करनी है. इस संघर्ष को अंजाम तक पहुंचाना है.
अनिल पांडेय ने कहा कि मुजफ्फर नगर में दंगों के दौरान दो पत्रकारों की हत्या का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि हैदराबाद में जी न्यूज (तेलगू) के दो पत्रकारों को जेल भेज दिया गया तो, अंग्रेजी दैनिक द हिंदू के हैदराबाद के स्थानीय संपादक के खिलाफ भी पुलिस में मामला दर्ज हो गया है. पिछले पांच सालों में बड़ी संख्या में पत्रकारों की हत्या हुई है. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर के दंगे तो ताजा उदाहरण है. टीवी पत्रकार राजेश वर्मा और फोटो पत्रकार इसरार दंगों की भेट चढ़ गए. मनोज वर्मा ने कहा कि करीब महीने भर पहले इसी मुजफ्फर नगर में एक और पत्रकार जकाउल्ला की निर्मम हत्या कर लाश को बोरे में भर कर फेंक दिया गया था. खुर्जा के रहने वाले जकाउल्ला मुजफ्फर नगर से वारदात इंडिया नाम से एक साप्ताहिक अखबार निकाल रहे थे. नरेंद्र भंडारी ने कहा कि अपनी कलम से पुलिस और प्रशासन की पोल खोलने वाले पत्रकारों का जमकर उत्पीडन किया जा रहा है. जिलों और छोटे जगहों पर ऐसे पत्रकार फर्जी पुलिसिया कार्रवाई के शिकार हो रहे हैं.
और आखिर में पत्रकारों को संबोधित करते हुए मनोज मिश्रा ने कहा कि पत्रकारों के सामने अब रोजी रोटी का भी संकट आ गया है. देशभर में बड़े पैमाने पर पत्रकारों की छटनी की जा रही है. पिछले एक साल में देशभर में बड़े पैमाने पर मीडियाकर्मियों को नौकरी से निकाला गया है. साथ ही जो पत्रकार नौकरी पर हैं भी, उन्हें भारत सरकार के तय वेतनमान के अनुरूप तनख्वाह नहीं दी जा रही है.