कुछ पत्रकार मित्र आपरेशन दंगा पार्ट 1-2 से बेहद खफा है. उनका मानना है की ये आपरेशन प्रायोजित है. उन्हें शक नही पक्का यकीं है कि स्टिंग के पीछे नरेन्द्र मोदी हैं. उन्हें यकीन है की इस आपरेशन के ज़रिये मै और पुण्य प्रसून या मेरे चैनल के कुछ वरिष्ठ साथी अपनी महत्वाकांक्षा करना चाहते हैं. कुछ खास मित्रों ने विरोध और आवेश में लिखा और कुछ मित्रों ने अपनी वेबसाइट पर छापा भी. पारदर्शिता इसी को कहते हैं. समाज में पारदर्शिता होनी ज़रूरी है.
यह भी आरोप लगाया गया है कि स्टिंग आपरेशन में दम नही था. पूरे जिले के राजपत्रित और मुख्य पुलिस अधिकारीयों के खुलासे कैमरे पर रिकार्ड हुए पर कुछ दोस्तों को हलके नज़र आये.
मित्रों स्टिंग आपरेशन हल्का था भारी था इसे मैंने किसी तराजू में तौला नही पर स्टिंग में दम था या नही इसका अहसास दंगा कराने वालों को होगा.
मित्रों आलोचनाओं का स्वागत है. आपके आरोप ही कमियों और खामियों का एहसास दिलाते हैं. ये सौभाग्य है कि मेरे अपने मित्र ही आरोप लगा रहे है कि स्टिंग फर्जी है. कोई पराया ऐसे आरोप लगाता तो तकलीफ होती.
मेरे सेकुलर मित्रों का कहना है की मोदी साहब को हम प्रधानमंत्री बनवाना चाहते हैं. मित्रों इतना बड़ा कद और इतना एहतराम ना बक्शें. मेरी हैसियत पंकज पचौरी जैसी नही है. मै उस उच्चतम श्रेणी का पत्रकार नही हूँ.
मै अपने आलोचक मित्रों से सिर्फ इतना कहूँगा की गुजरात के गोधरा दंगो में मैंने गुजरात सरकार के खिलाफ एक स्टिंग आपरेशन के आधार पर गवाही दी. ये गवाही दंगो में मारे गए मुसलमानों के पक्ष में ही गयी हालांकि मकसद तथ्यों को सामने रखना था ना कि किसी समुदाय के पक्ष विपक्ष में बयान देने का.
मित्रों कितने सेकुलर पत्रकार कितने बीजेपी भक्षक कितने मोदी मारक पत्रकार हैं जिहोने गुजरात दंगों में मारे गए निर्दोषों के खिलाफ अदालत में गवाही दी.
मित्रों जिगर और जज्बा चाहिए स्टिंग करने मै ….वेबसाइट पर किसी खबर को हल्का कहना या गाली देना बहुत आसान है. बुरा मत मानियेगा हमारे समाज में गाली सबसे ज्यादा किन्नर देते है.
(स्रोत – एफबी )
आखिर एक पत्रकार के काम को ही हर बार किसी पक्ष या विपक्ष के तराजू में ही क्यों टोला जाता है …..क्या केवल उसके काम के की तारीफ़ नहीं की जा सकती … में ये मानता हूँ की हमारा पेशा ही ऐसा हे की इसमें हर खबर किसी के फायदे की तो वही खबर किसी के नुक्सान की हो जाती है …. फिर भी हमारा काम तो आखिर में सच बताना प्रथम है ,वाही किया दीपक जी ने…. फीर तरीको पर भले ही बहस की जा सकती है परन्तु काम के आगे पीछे के उद्देश्य को ढूँढना लाजमी नहीं होगा ….क्युकी एक निष्पक्ष पत्रकार केवल अपना काम करता है और अपनी स्वतंत्रता का उपयोग अपने काम के लिए करता है …………
इस देश मैं क्या हिन्दू इन्स्सन नहीं है किस्त्वार दंगो पे कोई नेता नहीं गया। मनमोहन और सोनिया धर्म बिसेष के लोगो से मिलते है क्या सिर्फ ओहिलोगो का नुक्सान हुआ।
सच तो ये ही है की हिन्दू अपने हि देश मैं दोयेम दर्जे का नागरिक हैं।
ठीक कहा.