शाद अहमद कबीर
न्यूज चैनल पर चर्चा (debate) का बड़ा अच्छा रिवाज़ हैै और होना भी चाहिये क्योंकि बातचीत से हर कुछ हल हो सकता हैI परन्तु इन चर्चाओं से कुछ हल निकले या समाधान के किसी स्तर पर भी पहुंचा जाए तो वह सराहनीय होगा.
लेकिन मुझे ऐसा लगता है यह मात्र टीआरपी (TRP) के लिए किया जाता है जिसका ना कोई मकसद होता और ना कोई वजूद सिर्फ दो चार मेहमान (guest) लगते हैं जो मानो हर वक्त लंगोट पहन कर तैयार ही रहते हों और चैनल वालों के फोन का इंतजा़र करते रहते हों कब वह मुफ्त की गाड़ी हमे लेने आए और हम रवाना हों और चर्चा बोले तो (debate) में शामिल होकर थोड़ा चीखें चिल्लाएं गरजें और सिर्फ खुद को बेहतर बताने की पुरज़ोर कोशिश करें वो भी सिर्फ गिनती के 8 या 10 मिनट ही तो मिलते हैं.
कुछ वक्त कमर्शियल ब्रेक में चला जाएगा और कुछ वक्त तो एंकर या कार्यक्रम संचालक यही चिल्लाते रहेंगे जल्दी कीजिये – जल्दी कीजिये हमारे पास वक्त बहुत कम है. अब रही बात किसी निष्कर्ष या परिणाम कि वो तो 20-30 मिनट में आने से रहा III शो समाप्त कल फिर हाज़िर एक नये अनंत मुद्दे के साथ.
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