हिंदी अखबारों का अंग्रेजी प्रेम

श्रीप्रकाश दीक्षित

newspaper-दस-पंद्रह बरस पुरानी बात है। देश के एक बड़े अखबार घराने ने अपने हिंदी दैनिक की सुस्त रफ्तार से पस्त होकर उसे अपने अंगरेजी दैनिक के शीर्षक से प्रकाशित करना शुरू कर दिया था। इस अजीबोगरीब प्रयोग की खूब खिल्ली उड़ी और अखबार की लोकप्रियता में चार चांद भी नहीं लगे। इस पर प्रबंधन को अपना कदम वापस खींचना पड़ा और कभी हिंदी के राष्ट्रीय दैनिक का दावा करने वाला वह अखबार दिल्ली और इक्का-दुक्का सूबों तक सिमट कर रह गया। भोपाल के हिंदी अखबार भी इन दिनों अंगरेजी प्रेम में डूबे हैं, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के प्रमुख अखबार अंगरेजी पर फिदा हैं। भोपाल से प्रकाशित होने वाले प्रमुख अखबारों के संस्करण प्रदेश के प्रमुख नगरों से भी प्रकाशित होते हैं। जाहिर है, अंगरेजी का भूत सभी संस्करणों पर एक जैसा सवार दिखाई देता है। अंगरेजी के इस्तेमाल का फूहड़ सिलसिला तेजी से बढ़ते एक दैनिक ने शुरू किया, जिसका अनुसरण अन्य दैनिक भी पूरी निष्ठा से कर रहे हैं!

इस मानसिकता का नेतृत्व करने वाले अखबार ने शहर की खबरों के लिए तय पृष्ठ को नाम दिया है- सिटी फ्रंट पेज। इस पृष्ठ के स्थायी उप-शीर्षक हैं- पब्लिक ट्रांसपोर्ट, ट्रैफिक अलर्ट, डे प्लानर और न्यूज इनबॉक्स। चुनाव का माहौल है, इसलिए इलेक्शन एक्सप्रेस, इलेक्शन ब्रीफ, इलेक्शन गाइड, लाइव रिपोर्ट, कैंपेन कलर्स, ट्विटर ट्रेंड, पॉजिटिव और नेगेटिव कमेंट्स और फोटो का शीर्षक पॉलिटिकल स्नैप! अखबार को मतदान के स्थान पर वोटिंग शब्द ज्यादा भाता है। आज कौन-सा दिन है इसकी सूचना रविवार के अंक में रोमन में संडे लिख कर दी जाती है। इस दिन के कुछ शीर्षक हैं- संडे सरप्राइज, संडे स्नैप आदि। इस दिन प्रकाशित होने वाले महिलाओं के पृष्ठ के शीर्षक हैं- फैशन कॉलम, गुड रिलेशन, लर्निंग और सायकोलॉजी।

संपादकीय पेज पर अमूमन ज्वलंत और सामयिक विषयों पर संपादकीय, एक दो लेख और संपादक के नाम पत्र आदि प्रकाशित किए जाते हैं। इस अखबार ने पाठकों से जुड़ाव और संवाद के इकलौते स्तंभ संपादक के नाम पत्र को बंद ही कर दिया है। आधा संपादकीय पृष्ठ अंगरेजी शीर्षक वाली विदेशी खबरों से पटा रहता है। करंट अफेयर्स, मोस्ट फेवरेट, फैक्ट, हिस्ट्री, इंट्रेस्टिंग फैक्ट, सीक्रेट, कोट्स आॅफ दि डे और हॉट ऑन वेब शीर्षक पढ़े जा सकते हैं। दिलचस्प छायाचित्रों का प्रकाशन बिहाइंड द सीन के अंर्तगत किया जाता है।

यह अखबार अपने पाठकों को सप्ताह में छह दिन आकार और अंदाज में विलायत के बदनाम टेबलाइडों की तर्ज पर बारह पृष्ठ का निशुल्क अखबार उपलब्ध कराता है। इसमें स्थानीय किस्म की निपटाने वाली खबरों के अलावा पूरे दो पृष्ठ अंगरेजी में लंदन के एक प्रमुख अखबार की पेज थ्री मार्का खबरों को समर्पित रहते हैं। अंदर के पन्नों पर क्या छपा है, इसकी जानकारी पहले पृष्ठ पर अंगरेजी में इनसाइड कालम में रहती है। इसी के नीचे एक स्तंभ है- बिटवीन द लाईन्स। बाकी के हिंदी पन्नों के स्तंभ हैं- आफबीट, यू आस्क अस, माई फूड, इन डेप्थ, माई हेल्थ, पजल्स, सेलेब वाच, फनी, माई ट्रेवल, एक्स्ट्रा शूट और यहां तक की राशिफल भी- सारे रोमन लिपि में! अखबार की प्रिंटलाइन में संपादकों के पदनाम हिंदी में लिखे रहते हैं, लेकिन जब उनका लेख प्रकाशित होता है तो अंत में पदनाम रोबदाब वाली अंगरेजी में यों लिखा जाता है- लेखक अखबार के नेशनल सैटेलाइट एडिटर, एडिटोरियल एडवाइजर या फिर स्टेट एडिटर हैं।

इस अखबार का प्रतिद्वंद्वी माना जाने वाला दैनिक भी अंगरेजी के मामले में थोड़ी कम रफ्तार से इसी के नक्शे-कदम पर चल रहा है! केवल राजधानी में बिकने वाले इसके पुलआउट में अखबार का नाम हिंदी में और दूसरा शीर्षक ‘प्लस’ रोमन में शोभायमान है। शनिवार को इस पुलआउट का आठ कॉलम में बड़े-बड़े रोमन अक्षरों में शीर्षक होता है- वीकेंड। अन्य शीर्षकों में, प्लस सर्वे, इवेंट टुडे, इवेंट नेक्स्ट, न्यूज एलर्ट, सेलेब बाईट, समर स्पेशल, प्लस कैंपेन, सिटी लाईव प्लस, शोबिज प्लस और सक्सेस मंत्र आदि शामिल हैं। खबरों के शीर्षकों की बानगी देखिए- शापिंग में एक्स्पो बेस्ट, शापिंग विद राक बैंड, राकिंग ईव में जम कर नाचे यूथ आदि।

पहले वाले अखबार की देखादेखी यह अखबार भी सप्ताह में छह दिन पर्दाफाश मार्का अंगेजी शीर्षक से बारह पृष्ठों का टेबलाइड प्रकाशित करने लगा है। यहां भी अंगरेजी शब्दों का बोलबाला है। बानगी देखें- सिटी इन्वेस्टिगेशन, संडे साफ्ट, फिटनेस, हेल्थ अपडेट, ब्रेन स्टार्मिंग और रीडर्स डाईजेस्ट। इसका भी एक पन्ना अंगरेजी को समर्पित है। अखबार के चार रविवारी पृष्ठ स्वास्थ्य पर केंद्रित हैं। इसके हर पन्ने पर अंकित अंगरेजी का लोगो है- बाडी माइंड सोल। सभी पन्नों पर अंगरेजी शब्दों की भरमार है, जैसे केयर योरसेल्फ, सालिड रिसर्च, स्पेशल स्टडीज, न्यू रिसर्च, एक्सपर्ट एडवाइज, हैल्थ एलर्ट, हैल्थ क्विज, आइस ट्रीटमेंंट, मिल्क इफेक्ट, रिसर्च ऐट ए ग्लैंस और लाफ्टर थैरेपी यानी चुटकुले। इन सभी शीर्षकों के अंतर्गत प्रकाशित सामग्री खालिस हिंदी में है!

भोपाल के ही एक कमजोर-से अखबार ने चुनाव की खबरों वाले पन्ने को शीर्षक दिया है पीपुल्स वाइस आफ डेमोक्रेसी। इसके शहर में बिकने वाले पुलआउट का शीर्षक सगर्व ऐलान करता है- आइ एम भोपाल। इसके कुछ स्तंभों के शीर्षक हैं- संडे मूड, लिटरेचर ऐंड आर्ट, टाइम पास, पास्ट ब्लास्ट और टुडेज इंवेट आदि! इंदौर के एक अखबार के शहर में बिकने वाले चार पन्नों का शीर्षक है सिटी लाइव- रोमन लिपि में। खबरों के शीर्षक अंगरेजी के, पर लिपि देवनागरी, जैसे कोल्ड कॉफी विद क्रश्ड आइस।

और तो और, शाम को निकलने वाले दैनिक भी अंगरेजी प्रेम में पीछे नहीं रहना चाहते हैं। इसके मनपसंद शीर्षकों में करंट डिस्कशन, बिग प्वाइंट, टेली टाक, पावर थिंकिंग, टाइम पास, सिटी इनसाइड, आर्ट ऐंड कल्चर, फुल स्क्रीन, बुक आफ द वीक, फैक्ट आॅफ द डे, और टू द एडीटर यानी संपादक के नाम पत्र शाामिल हैं! शाम के एक अखबार ने वरिष्ठ संपादक का ओहदा चीफ एडिटोरियल डायरेक्टर देकर मानो यह ऐलान किया है कि अंगरेजी के रोब में आने वालों में हम भी किसी से कम नहीं!

ऐसा भी नहीं कि इन अखबारों के पाठकों में अंगरेजीदां लोगों की संख्या बढ़ी है। दूसरे, भोपाल और इंदौर आदि शहरों से दिल्ली के दो प्रमुख अंगरेजी अखबारों के संस्करण निकल रहे हैं, जो अंगरेजी पाठकों और देश भर के बाजार से जुड़ने की युवा पीढ़ी की जरूरत पूरी करते हैं। बावजूद इसके विदेशी अखबारों की पांच सितारा खबरें परोसी जा रही हैं, जो आम पाठक का जायका खराब कर रहीं हैं और इनसे विरक्त भी। इन अखबारों में बाजार ही बाजार छाया है, पत्रकारिता लुप्तप्राय है!

असल में इन अखबारों की कमान संभाल रहे मालिकों के वारिसों की मानसिकता उस अंगरेजी अखबार जैसी होती जा रही है, जो अपने हिंदी दैनिक को अंगरेजी अखबार के नाम से छापने की हिमाकत कर सकता है। मालिकों की नाक का बाल बनते जा रहे अखबारों के मैनेजमेंट गुरुओं के कारण भी अंगरेजी का चलन बढ़ रहा है। इन्हें अंगरेजी और बाजार के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता है। संपादकों और संवाददाताओं की तुलना में इन्हें मोटी तनख्वाहें मिल रहीं हैं। पहले बड़े अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर कोई छोटा-सा विज्ञापन ही छापने की परंपरा थी। अब गले-गले तक विज्ञापन नजर आते हैं, खबरें गायब होती जा रहीं हैं।

ये अखबार अपने शहर, प्रदेश और आसपास के सरोकारों से किस प्रकार कटे हुए हैं यह सुनीलजी के निधन से पता चलता है। एक संन्यासी-सा जीवन बिताने वाले प्रखर समाजवादी सुनीलजी का हाल ही में निधन हो गया। वे मध्यप्रदेश के एक छोटे-से गांव में रह कर पिछले तीस बरस से आदिवासियों के बीच काम कर रहे थे। यह गांव राजधानी भोपाल से सटे होशंगाबाद जिले के आदिवासी बहुल केसला खंड में स्थित है।

सुनीलजी की मृत्यु पर दिल्ली के अखबारों ने लेख छाप कर उन्हें याद किया। होना तो यह चाहिए था कि भोपाल के अखबार अपने संवाददाताओं को केसला के उस गांव भेज कर सुनीलजी द्वारा किए गए कार्यों को सामने लाकर उन्हें स्मरण करते। इसके बरक्स उन्होंने मृत्यु की चार पंक्ति की खबर छाप कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। इन दिनों चल रहा अरबों-खरबों रुपयों का चुनाव अखबारों की कमाई का मौसम है। इस दौर में सुनीलजी भला कैसे याद रहते! इसे इन अखबारों की पत्रकारिता और पाठकों के साथ दगाबाजी नहीं, तो क्या कहें?

दो-तीन दशक पहले मीडिया की चमक-दमक और पत्रकारों का रुतबा देख कर ठेकेदारों, नेताओं आदि ने इस क्षेत्र में घुसना शुरू किया। अब यह गंगा दोनों तरफ से बराबर बह रही है। पत्रकारिता के दम पर अमीर हुए मालिकों ने अपने रसूख का बेजा इस्तेमाल कर कारोबार के विभिन्न क्षेत्रों में पांव पसारना शुरू कर दिया है। वे नमक-तेल, मकान-मॉल बना रहे हैं, विद्यालय और विश्वविद्यालय चला रहे हैं, डांडिया नचा और व्यापारिक मेलों का आयोजन कर रहे हैं। बस नहीं कर रहे हैं, तो पत्रकारिता, जिसने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया है! इतने कारोबारों में फंसे होने के कारण निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता करने की अब उनमें हिम्मत ही नहीं बची है।

(स्रोत-जनसत्ता)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.