हेमंत कुमार
हिन्दी दिवस पर सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए मन में आए कुछ विचार भी यहां दे रहा हूं—- अपने सभी गुरुओं,विश्वविद्यालयों,महाविद्यालयों में नियुक्त अपने सभी मित्रों, और हिन्दी के मठाधीशों से क्षमा याचना सहित।
00000 हिन्दी दिवस पर मैंने जो सोचा 000000
आज हिन्दी दिवस पूरे देश में मनाया जाएगा।और उसमें हिन्दी की दुर्दशा का रोना भी रोया जाएगा।लेकिन हिन्दी की आज ये दुर्दशा क्यों है इस पर कहीं कोई भी विमर्श नहीं होगा।
0 हिन्दी का सबसे ज्यादा नुक्सान किया है विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्षों,प्रोफ़ेसर्स,अध्यापकों और हिन्दी के मठाधीश साहित्यकारों ने।विश्वविद्यालयों के अध्यापकों का यह मानना कि हिन्दी का पूरा ज्ञान सिर्फ़ उन्हें ही है—बाकी मीडिया,पत्रकारिता या अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोग हिन्दी के बारे में कुछ जानते ही नहीं। इनकी यह सोच भी हिन्दी को इस हालत तक लाने की जिम्मेदार है।
विश्वविद्यालयों,महाविद्यालयों के हिन्दी विभागों को राजनीति,गुटबन्दी और उठापटक का अखाड़ा बना लिया गया है। इसका असर विश्वविद्यालयों की पढ़ाई,शोध,नियुक्तियों से लेकर वहां आयोजित होने वाले सेमिनारों,संगोष्ठियों में साफ़ देखा जा सकता है।
0 हिन्दी के मठाधीश साहित्यकारों के राजनैतिक पैंतरों का ये आलम है कि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन से लेकर बड़े प्रकाशकों के प्रकाशन समूहों तक ये काबिज हैं। बिना इनके खेमे मे शामिल हुये कोई भी नवोदित लेखक,साहित्यकार,लेखिका इन प्रकाशकों के यहां जगह नहीं पा सकते। ये मठाधीश जब चाहें,जिसको चाह आसमान पर पहुंचा दें और जिससे रूठ जायें उसे पाताल में भेज दें। चाहे हिन्दी से सम्बन्धित कोई संस्थान हो, पुरस्कार हो या कोई आयोजन हो हर जगह इनकी मठाधीशी देखी जा सकती है।
0 और इसकी बची खुची कसर आज के छपासे (स्वनाम धन्य साहित्यकारों) ने पूरी कर दी। उनको छपास की ऐसी भूख लगी है कि वो प्रकाशकों को पैसा दे-दे कर अपनी किताबें छपवा कर प्रकाशकों की आदत खराब कर रहे। भले ही उनकी किताबें कोई पढ़े या न पढ़े। इन छपासे साहित्यकारों की इस छपास का खामियाजा हिन्दी के वास्तविक लेखकों को तो भुगतना पड़ ही रहा—आने वाले भविष्य में हिन्दी भाषा पर भी पड़ेगा।
0 मुझे यह कहने में कोई भी एतराज नहीं कि हिन्दी का सबसे ज्यादा भला अगर किसी ने किया है तो वह हिन्दी फ़िल्म उद्योग ने। हिन्दी फ़िल्में देखकर बहुतों ने हिन्दी बोलना,पढ़ना और लिखना सीखा है। हिन्दी के कई उपन्यासों को लोगों ने टी वी सीरियल्स देखने के बाद खरीद कर पढ़ा है।
(हेमंत कुमार के फेसबुक वॉल से )