इतिहास के झरोखे में सासाराम
अमरेन्द्र कुमार/ प्रो. अलाउद्दीन अजीजी
पटनाः इतिहास के पन्ने में झांके तो बिहार के सासाराम का महत्व शेरशाह सूरी के दौर से शुरू होता है।लेकिन आजादी आजादी लड़ाई और उस दौर की पत्रकारिता में भी इस शहर ने अपनी पहचान को नये सिरे से स्थापित किया। भाषाई पत्रकारिता के इतिहास में यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है कि बिहार में पहला प्रिंटिंग प्रेस पटना में न होकर एक छोटे -से स्थान सासाराम में था। आरा से प्रकाशित होने वाले एक उर्दू अखबार यही से छप कर जाता था। यह बात एक शोध पर आधारित पुस्तक में आई है। पुस्तक का नाम है–बिहार में पत्रकारिता का इतिहास।
वरिष्ठ पत्रकार अमरेन्द्र कुमार एवं प्रो. अलाउद्दीन अजीजी ने उक्त किताब के हवाले से बताया है कि अंगरेजी को छोड़कर भाषाई पत्रकारिता के क्षेत्र में पहली दस्तक उर्दू अखबार ने दी थी, जो आरा से प्रकाशित होता था। अखबार का नाम था-नूर-अल- अलवर और उसे सैयद मोहम्मद हासिल प्रकाशित करते थे। अखबार की शुरुआत 1953 में हुई थी। उसकी छपाई सासाराम में होती थी,क्योंकि सासाराम में 1950 में ही प्रिंटिग प्रेस की स्थापना शाह कबीरुद्दीन अहमद ने की थी।
उनहोंने किताब के आधार पर यह भी बताया कि उस समय किताबें कोलकाता और बंबई के साथ-साथ सासाराम से छप कर दूसरे जगहों पर जाती थी। शैक्षणिक दृष्टिकोण से भी सासाराम का अपना अलग पहचान कायम है। मदरसा खानख्वाह कबीरिया स्कूल यहाँ पर मौजूद है और इसका इतिहास नालंदा विश्वविद्यालय जितना पुराना है।