टेलीविजन चैनलों पर बहस के दौरान आजकल गर्मागर्मी की वजह से उल – जुलूल बातें खूब हो रही है. खासकर यदि दीपक चौरसिया या अर्णब गोस्वामी जैसे मशहूर एंकर हो तो इस तरह की घटनाएं ज्यादा घटती है. दीपक चौरसिया की राजीव शुक्ला, जस्टिस काटजू समेत कितने नेताओं और हस्तियों से पहले भी गर्मागर्मी की वजह से व्यक्तिगत आक्षेप से गुजरना पड़ा है. हाल ही में हद तब हो गयी जब आसाराम की प्रवक्ता नीलम दूबे ने उन्हें दलाल तक ऑनस्क्रीन कह डाला. ऐसा ही कुछ अभी टाइम्स नाउ के अर्णब गोस्वामी के साथ हुआ जब एक नेता उन्हें उनकी हैसियत बताने लगा. आशीष अंशु की एक टिप्पणी :
आशीष अंशु :
अभी कुछ दिनों पहले टेलीविजन डीबेट में आशाराम की प्रवक्ता नीलम दुबे ने दीपक चौरसिया को दलाल पत्रकार बोल दिया था। कल ‘टाइम्स नाउ’ पर बीजेपी के नेता कैलाश विजयवर्गीय ने अर्नब गोस्वामी से कहा – ‘तुम्हारे जैसे चैनल ना पांच वोट बढ़ा सकते हैं, ना पांच वोट घटा सकते हैं। तुम्हारी यह हैसियत नहीं।’
पत्रकारों का समाज में हमेशा सम्मान रहा है, अब पिछले एक सप्ताह के अन्दर पत्रकारिता के दो आयकन के साथ हुए इस अभद्रता के लिए कौन जिम्मेवार है? यह किसके पतन का नतीजा है, सामाजिक मूल्यों का या फिर पत्रकारिता के मूल्यों का?
(एफबी)