अखिलेश यादव को सुन रहा था, इशारों में बातें करना सीख गए हैं. कई नेता साठ साल की उम्र तक नहीं सीख पाते. #SamajwadiParty का घोषणापत्र जारी करते समय कह रहे थे-अगर मैं “दाएं हाथ की तरफ देखूं…और अगर मैं बाएं हाथ की तरफ देखूं”..जितने भी साथी हैं..दाएं-बाएं और आगे..एक बात साफ है कि हम समाजवादी सरकार बनाने जा रहे हैं.
यहां दायां और बायां खास अर्थ लिए हुए है. डॉ लोहिया को जिसने भी थोड़ा बहुत पढ़ा होगा समझ में आएगा कि मध्यमार्ग की राजनीति किसे कहते हैं जो वाम और दक्षिण के अतिरेक से अलग भी होती है और उसके कुछ गुणों को साथ भी लिए हुए है.
इससे पहले जब पिता से अखिलेश का राजनीतिक मतभेद शुरू ही हुआ था..तो उन्होंने कहा था कि मेरे पिता के बनवाए लोहिया पार्क में लोग आराम करने आते थे..मैं उनको आह्वान करता हूं कि वे जनेश्वर मिश्र पार्क में आए, उनको हरा-भरा वातावरण और ताजगी मिलेगी!
मोदी ने पीएम बनने के बाद बीजेपी संसदीय दल की बैठक में कुछ ऐसा ही कहा था. उन्होंने कहा कि लोगों को लगता होगा कि मोदी इतना बड़ा नेता बन गया है..जबकि हकीकत ये है कि पूरी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मोदी को अपने कंधे पर बिठा रखा है, इसीलिए मोदी इतना बड़ा दिखता है!
अब अर्थ लगाने वाले लगाते रहें कि ये मोदी की विनम्रता थी या असलियत का बखान!कहते हैं एक बार बसपा के संस्थापक कांशीराम से किसी ने पूछा था कि आपका चुनाव चिह्न हाथी क्यों है और झंडे का रंग नीला क्यों है? कांशीराम ने कहा कि हाथी हमारे समाज की विशालता का सूचक है, साथ ही ये भी कि हमारा समाज हाथी की तरह मंद भी है. उसमें तेजी लानी है. नीला रंग आसमान का प्रतीक है और हम दलित समाज को आसमान की ऊंचाइयों तक ले जाएंगे.
इस तरह की प्रतीकात्मकता आपको राहुल गांधी के भाषण में नहीं मिलेगी. न ही मायावती के भाषण में. आप जल्द ही बोर हो जाएंगे. आप सहमत हों या न हों, नीतीश कुमार भी कुछ-कुछ भविष्य की बातें करते हैं.