संतोष त्रिवेदी
इंदिरा गाँधी भी कभी यही चाहती थीं कि सारे अखबार और पत्रकार उनके चारण और भाट बनें।उसकी परिणति आपातकाल के रूप में सामने आई और उनका ऐतिहासिक पतन हुआ।
तब के लोकतन्त्र के समर्थक अब सत्ता पर हैं और उनके भक्त वर्तमान सरकार के विरोधी पत्रकारों के विरुद्ध संगठित रूप से सोशल मीडिया में अशालीन अभियान चलाए हुए हैं। उनका स्पष्ट संकेत है कि या तो लहर-इफेक्ट से शरणागत हो जाओ नहीं तो परिणाम भुगतने को तैयार रहो।
कई वीर बहादुर पत्रकारों ने कलम की धार कुंद कर ली,कुछ ने आत्मसमर्पण कर दिया है फिर भी कुछ अभी भी पत्रकारिता को शर्मसार करने से बचाए हुए हैं।
समय दोनों का इतिहास लिखेगा।
(स्रोत-एफबी)