इसका एक मतलब ये भी है कि जिस चौथे खम्बे पर हम लहालोट होते आये हैं, उसकी पेंदी में कार्टून ही बचा है जिस पर आपको गुमान हो सकता है.
अखबार से लेकर चैनलों के कार्टून कोने पर एक नज़र डालें, आपको अंदाजा लग जायेगा कि इन्हें बनानेवाले लोग उसी मीडिया संस्थान की चक्की का आटा खाते हैं जिसका कि फीचर एडिटर से लेकर एंकर, प्रोड्यूसर सबके सब लेकिन कार्टून और व्यंग्य से जुड़े मीडियाकर्मी के तेवर अलग होते हैं.
ये अलग बात है कि so sorry के प्रधान सेवक का कपार बाकियों से बड़ा हुआ करता है.
तो भी तमाम न्यूज़ चैनलों पर जो मीडिया पर हमला बताकर स्टोरी चल रही है और जी न्यूज़ खुद को चार्ली बताकर वाहवाही लूटने में लगा है,इस बहाने चार्ली हेब्दो को सबने सर्फ एक्सेल बनाकर अपने दाग छुड़ाने शुरू कर दिये हैं.
ज़रूरी है कि इस मीडिया के भीतर कार्टून को अलग से रेखांकित किया जाये..ये बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों के खबर,फीचर के स्तर पर मैनेज हो जाने के बीच बिकाऊ हो जाने की लेबल लग जाने से बचाता है.#charlieHebdo
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