पत्रकारिता से जुड़े सारे दोस्तों से आग्रह है कि इस ख़बर पर ग़ौर करें… दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल की मौत प्रदर्शनकारियों के हमले से नहीं बल्कि किन्हीं और ही कारणों से हुई है। इसका खुलासा आज घटनास्थल पर मौजूद उस गवाह ने किया जिसने सुभाष तोमर को अस्पताल तक पहुँचाया था। आज एनडीटीवी इंडिया के कार्यक्रम ‘प्राइम शो’ में रवीश कुमार और ‘न्यूज़ प्वाइंट‘ में अभिज्ञान प्रकाश ने अंबेडकर कॉलेज़ के पत्रकारिता के छात्र योगेंद्र को आमंत्रित किया। पुलिस सिपाही सुभाष तोमर के सड़क पर गिरने के बाद योगेंद्र ने अपने साथियों के साथ मिलकर उन्हें अस्पताल तक पहुँचाया था। योगेंद्र ने सुभाष तोमर की “हत्या”/मौत की एक बिल्कुल जुदा कहानी बयान की है। दोनों ही कार्यक्रमों के पैनल में दिल्ली पुलिस के भी नुमाइंदे बैठे थे। अभिज्ञान और रवीश ने कई बार ये कहा कि योगेंद्र के बयान के बाद दिल्ली पुलिस उन्हें परेशान न करे, क्योंकि दिल्ली पुलिस के कमिश्नर ने सुभाष तोमर की “हत्या” के बारे में जो प्रेस नोट ज़ारी किया था उसमें और योगेंद्र के बयान में काफ़ी फ़र्क़ है। योगेंद्र ने ये भी बताया कि राममनोहर लोहिया अस्पताल के डॉक्टरों ने कैसे सुभाष तोमर को भरती करने के आधे घंटे बाद ही उन्हें मृत घोषित कर दिया था, लेकिन बाद में वरिष्ठ डॉक्टरों ने कहा कि उनकी सांस चल रही है, और सुभाष तोमर को वेंटिलेटर पर रख दिया।
योगेंद्र ने ‘न्यूज़ प्वाइंट’ में सारे घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया। योगेंद्र के बताया कि तोमर प्रदर्शन-स्थल की कुछ दूरी पर, चलते-चलते अचानक गिर गए थे। प्रदर्शन स्थल पर पुलिस प्रदर्शनकारियों पर लाठी-चार्ज़ कर रही थी। जिससे भीड़, उसी दिशा में भाग रही थी, जिधर सुभाष तोमर गिर पड़े थे। योगेंद्र ने अपने एक साथी और पुलिस के दो-तीन नौजवानों के साथ मिलकर सुभाष तोमर को उठाया और उन्हें भगदड़ के चलते कुचले जाने से बचाने के लिए पच्चीस-तीस मीटर की सुरक्षित जगह पर ले गए, जहाँ से उन्होंने सिपाही को अस्पताल पहुँचाया। थाने में जाकर घटना की जानकारी दी। अपना फ़ोन-नंबर और पता तक दर्ज़ कराया। दूसरे दिन थाने से एक सब-इंस्पेक्टर ने योगेंद्र को फ़ोन कर घटना की जानकारी भी ली।
दिल्ली में गैंगरेप के ख़िलाफ़ हो रहे तीव्र विरोध-प्रदर्शनों को बदनाम करने के लिए हमारे हुक्मरानों और पुलिस ने मिलकर ये झूठ रचा कि सुभाष की मौत के ज़िम्मेदार प्रदर्शनकारी हैं। और इसी क्रम में आठ निर्दोष लोगों पर झूठा मुक़दमा लाद दिया है। मौत चाहे किसी की हो, अवांछित है। प्रदर्शनों में हिंसा को कोई वैधानिक तौर पर जायज़ नहीं ठहरा सकता। चाहे वह किसी पुलिसवाले की ही, क्यों न हो। लेकिन प्रदर्शकरियों को जिस तरह से फंसाया जा रहा है, निंदनीय है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात कि सिपाही सुभाष तोमर की मौत की सच्चाई राष्ट्र के सामने लाने के लिए योगेंद्र का हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए। निश्चित ही, यह काफ़ी हिम्मतभरा और चुनौतीपूर्ण काम है। योगेंद्र चूंकि पत्रकारिता के विद्यार्थी भी हैं, अतः हमें उनका साथ देना होगा ताकि उन्हें सच बयान करने की कोई अवांछित क़ीमत न चुकानी पड़े।
यह काफ़ी गंभीर मामला है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि इस समूचे घटनाक्रम के चश्मदीद होने के कारण योगेंद्र को पुलिस द्वारा कभी तंग न किया जाए। पत्रकारिता के जुड़े लोगों को योगेंद्र को हर-हाल में समर्थन और सहयोग देना चाहिए।
(अनिल मिश्र के फेसबुक वॉल से )