नदीम एस अख्तर
तो दिल्ली का दंगल कौन जीत रहा है. किरण बेदी प्लस नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी या अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी या फिर अजय माकन प्लस राहुल गांधी की तथाकथित अगुवाई में कांग्रेस ??!!!
सबके अपने-अपने तर्क और आंकड़े होंगे. लेकिन मैं यहां आंकड़ों की बात नहीं करूंगा. फिलवक्त सारांश ये है कि इस बार चुनाव में टक्कर सीधे बीजेपी और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच ही है. कांग्रेस कहीं भी सीन में नजर नहीं आ रही. और आखिरी के एक-दो दिनों में जिनके कार्यकर्ता बूूथ मैंनेजमेंट अच्छा कर ले जाएंगे (साम-दाम-दंड-भेद-धोखा-लालच-स्टिंग-शक्ति प्रदर्शन आदि-आदि करके), उसकी सीटें ज्यादा आएंगी.
दूसरी महत्वपूर्ण बात. व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि इस बार भी विधानसभा में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने वाला. शायद फिर HUNG ASSEMBLY ही देखने को मिले लेकिन अबकी दफा जिसकी भी सीटें ज्यादा आएंगी, बहुमत का आंकड़ा उससे बहुत दूर नहीं होगा. यानी थोड़ा इधर-उधर करके सरकार बना ली जाएगी. ऐसा इसलिए कि इस दफा जनता भी बीजेपी और आप को पूर्ण बहुमत देने में जोर लगाएगी और इसी कारण फिर दोनों में से कोई एक पार्टी बहुमत का आंकड़ा छूते-छूते रह जाएगी.
तीसरी बात. मेरा मानना है कि इस चुनाव में आप का पलड़ा हर तरफ से बीजेपी पर भारी है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सारी रणनीति यहां उल्टी पड़ रही है. वे जनता की नब्ज नहीं भांप पा रहे हैं.
इसका ताजातरीन उदाहरण ये है कि दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल को गणतंत्र दिवस परेड में आमंत्रित नहीं किया गया, जिसका केजरीवाल ने सार्वजनिक विरोध भी दर्ज कराया. अब सरकार जितने भी तकनीकि कारण गिना ले लेकिन दिल्ली की जनता को ये बहुत नागावार गुजरा है. ये बात आप लिख के रख लीजिए. सत्ता का मद नेताओं को जमीन से काट देता है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में इसकी शुरुआत हो चुकी है.
अगर आपमे सामान्य राजनीतिक शिष्टाचार भी नहीं है, अपने विरोधी को राष्ट्रीय पर्व पर राजपथ में आमंत्रित करने का साहस भी नहीं है तो समझ लीजिए कि जनता ने आपके पतन का दरवाजा खोल दिया. -अश्वमेध यज्ञ- का आपका घोड़ा इस बार रोक लिया जाएगा. इस देश की पब्लिक बहुत समझदार है और वह वक्त आने पर बटन दबाकर राजनेताओं को औकात दिखाती रही है.
और कोढ़ में खाज ये कि बीजेपी की सीएम उम्मीदवार किरण बेदी टीवी पर आकर बयान दे रही हैं कि अगर अरविंद को भी गणतंत्र दिवस पर न्योता चाहिए तो बीजेपी में शामिल हो जाएं…अपना-अपना नसीब है…और ये कहकर वो जिस तरह हंसती हैं, आप जानिए कि लोकतंत्र के लिए ये शर्मनाक है. यानी राष्ट्रीय पर्व को भी आपने बीजेपी का निजी त्योहार बना दिया !!!
किरण बेदी ने वर्षों की मेहनत से अपनी जो सार्वजनिक इमेज बनाई थी, अपने बड़बोले बयानों और हाल के उनके अकड़ू रवैये से धराशायी हो रहा है. जनता इसे पसंद नहीं कर रही. दरअसल बीजेपी दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपने ही चक्रव्यूह में घिरती जा रही है. एक तरफ तो वो किरण बेदी के बयानों और पार्टी में अन्य लोगों के साथ उनकी केमिस्ट्री को लेकर वह परेशान है, वहीं दूसरी तरफ उसे दिल्ली बीजेपी के नेताओं से भितरघात का भी खतरा है. पार्टी के स्थानीय बड़े नेताओं को मोदी-शाह की जोड़ी ने जिस तरह ठिकाने लगाकर किरण बेदी की पैराशूट लैंडिंग कराई है, वह पार्टी को बहुत भारी पड़ने वाला है. किरण बेदी ये समझ ही नहीं पा रही हैं कि ये पुलिस की नौकरी नहीं है, जहां उनके अर्दली चाहे-अनचाहे उन्हें सैल्यूट ठोंकने को विवश रहते हैं. ये तो राजनीति है, जहां सबको मिलाकर-दुलारकर-पुचकार कर अपना उल्लू सीधा करने की कला आनी चाहिए. नरेंद्र मोदी में ये कला थी, तभी वो राजनाथ सिंह और अपने विरोधियों को साधकर पीएम बन सके.
इस चुनाव की एक और खासियत है, एफएम रेडियो पर बीजेपी और आप का प्रचार. पहले तो केजरीवाल हमलावर हुए और आम लोगों को रेडियो पर लाकर उनके मुंह से कहलवाया कि यहां स्कूल-कॉलेज, महिला सुरक्षा जैसी चीजें नदारद है. फिर अपनी आवाज में ये सफाई भी दी कि मुझे इस बार पांच साल दे दो, पिछली बार वाली गलती नहीं करूंगा. तब तक बीजेपी चुप थी. लेकिन अचानक से आम आदमी पार्टी का एफएम रेडियो प्रचार गायब हो गया और बीजेपी गाजे-बाजे के साथ वहां सुनाई देने लगी. धोखा दे गया-धोखा दे गया…वाली एक वृद्ध महिला की आवाज ने सबको चौंकाया. फिर नयापन लाते हुए मोदी के भाषण सुनाए गए. फिर कहा गया कि ड्राइवर जब नया हो तो गाड़ी ठुकेगी ही…बात करता है…और ये कहते-कहते बीजेपी एफएम रेडियो पर केजरीवाल के गढ़ झुग्गी-झोपड़िंयों तक पहुंच गई. अब एक झुग्गीवासी बीजेपी की तरफदारी में कह रही है कि सस्ती बिजली तो उनको मिली, जिनके पास मीटर थे…हमारे पास तो वो भी नहीं…सो अब धोखा नहीं खाएंगे..यानी कि बीजेपी को वोट देंगे…
और कांग्रेस तो एफएम पर अपनी भद्द ही पिटवा रही है. उसके किसी नेता की रेडियो पर आवाज नहीं सुनाई देती. पैसे देकर बनवाए गए उसके विज्ञापन उतने ही थोथले हैं. एक लड़की कहती है कि मेट्रो से लेकर फ्लाईओवर तक सब कांग्रेस ने दिया, सो आप विकास चुनिए और कांग्रेस को वोट दीजिए. मुझे लगता है कि इस बनावटी विज्ञापन को सुनकर कांग्रेस के परम्परागत वोटर भी उससे कन्नी काट लेंगे कि जो पार्टी अपना प्रचार तक ढंग से नहीं कर पा रही, वो दिल्ली क्या चलाएगी??!!
लेकिन इस पूरे परिदृश्य में एक स्ट्रैटेजी के तहत (ऐसा मुझे लगता है) आम आदमी पार्टी गायब है. एफएम पर उसके ऐड ना के बराबर सुनाई दे रहे हैं. रेडियो पर पैसा खर्च करने की बजाय पार्टी जमीन पर लोगों से मेलजोल बढ़ाने में अपनी ऊर्जा लगा रही है. लेकिन ये कितना कारगर होगा, निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि आप मानें या ना मानें, दिल्ली जैसे महानगर में एफएम रेडियो बहुत कम खर्चे में एक बड़ी आबादी तक सीधे पहुंचने का बहुत आसान और बड़ा जरिया है.
खैर, बात चुनाव परिणामों की हो रही थी. कुछ लोग और सर्वे बीजेपी को बहुमत दिला रहे हैं और कुछ आप को. मुझे लगता है कि टक्कर बड़ी जबरदस्त है. बीजेपी के पास दो बड़े योद्धा हैं- नरेंद्र मोदी और किरण बेदी. साथ ही तरह-तरह के मंत्रियों-सांसदों-विधायकों-संघ कार्यकर्ताओं से सजी उनकी सेना किसी के भी दांत खट्टे करने के लिए काफी हैं. लेकिन आम आदमी पार्टी के पास सिर्फ और सिर्फ एक ही लड़ाकू है- अरविंद केजरीवाल. और उसी के सहारे पार्टी चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत में है. यानी एक तरह से देखें तो इस चुनाव में मुद्दों पर व्यक्तित्व हावी है.
और शायद यही कारण है कि बीजेपी अब तक अपना चुनावी घोषणापत्र नहीं जारी कर पाई है. उसे इसकी जरूरत नहीं लगती शायद. वो जनता को ये बताने से बच-डर रही है कि उनके क्या मुद्दे हैं और उन्हें किस लिए जनता वोट करे ??!! सत्ता में आने के बाद वो क्या करेगी??? पार्टी को लग रहा है कि मोदी मैजिक और किरण मैजिक के बल पर ही वो चुनाव जीत जाएंगे. और यहीं से बीजेपी के कदम लड़खड़ाते दिखते हैं.
अगर एक बड़ी, स्थापित और राष्ट्रीय पार्टी यानी बीजेपी देश के दिल यानी दिल्ली के चुनाव में अपना घोषणापत्र नहीं जारी कर रही है (जबकि पीएम और पार्टी के अनुसार देशभर में उनकी लहर चल रही है), और चुनाव के कुछेक दिन ही बचे हैं, तो इसके गहरे राजनीतिक संकेत हैं. मतलब कि बीजेपी दिल्ली चुनाव में दिशाहीन होती जा रही है. उसे समझ नहीं आ रहा कि वे कौन-कौन से मुद्दे चुने और शायद डर रही है कि अगर चुनेगी तो पता नहीं, किस मुद्दे को हाईजैक करके या फिर उसे लाइमलाइट में लाकर केजरीवाल उन्हें चारों खाने चित कर दें.
इसमें दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देना और दिल्ली पुलिस को सीधे दिल्ली के सीएम के अधीन लाना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और जिसके लिए दिल्ली की जनता काफी इमोशनल होकर सोचती है. केजरीवाल पिछली बार सत्ता में आने पर इसके लिए लड़ाई लड़ चुके हैं लेकिन बीजेपी की परेशानी ये है कि वो केंद्र में सत्ता में है और इन मुद्दों से कन्नी काटना चाहती है. यानी अगर उसने घोषणापत्र जारी किया तो क्या करे, पार्टी को समझ नहीं आ रहा. सो बीजेपी की हालत -भई गति सांप छछूंदर केरी- वाली हो गई है यानी ना निगलते बन रहा है और ना उगलते. वैसे किरण बेदी को भी आप पार्टी के लिए इसी स्थिति में रख सकते हैं क्योंकि सीएम पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद किरण बेदी के बयानों और मीडिया से उनके इंटरएक्शन ने पार्टी को असहज ही किया है.
यानी सीन क्लियर है दोस्तों. इन सारी परिस्थितियों में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल WIN WIN SITUATION में नजर आ रहे हैं. लेकिन जरा रुकिए. दिल्ली का किला फतह करना इतना आसान भी नहीं. इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली की जनता केजरीवाल में एक ईमानदार और साफसुथरे राजनेता को देखता है लेकिन वह मोदी मैजिक की गिरफ्त में भी है. सो चुनाव वही जीतेगा, जो ज्यादा से ज्यादा व्यक्तिगत स्तर पर जनता से सीधा संवाद स्थापित करेगा और इस मामले में केजरीवाल नरेंद्र मोदी पर भारी पड़ रहे हैं. किरण बेदी अपनी सभाओं में ना तो ढंग की भीड़ जुटा पा रही हैं और ना ही लुभावनी बातें बोल पा रही हैं. अपने प्रशासनिक अनुभव पर कही गई उनकी बातें कई बार तो जनता को लिए उबाऊ और सिर के ऊपर से जाने वाली होती हैं. लेकिन इस मामले में केजरीवाल मोदी को टक्कर देते नजर आते हैं. वह सीधी-सपाट बात बड़ी मासूमियत से जनता को कहते हैं और फिर तालियां बटोरते हैं. सीधे शब्दों में कहें तो वो जनता की नब्ज को छूते हैं और दिल्ली की बात करते हैं. यही उनकी यूएसपी है और यही आम आदमी पार्टी की जीत का एक बड़ा कारण बनेगा.
और जब नरेंद्र मोदी एफएम रेडियो पर बीजेपी के विज्ञापन में कहते हैं कि—जो देश का मूड है, वही दिल्ली का मूड है, जो देश चाहता है..वही दिल्ली चाहता है… तो मन में आता है कि उनसे कह दूं कि हे आदरणीय प्रधानमंत्री जी ! दिल्ली की जनता का मूड वो नहीं है, जो देश का मूड है. दिल्ली की जनता, देश की जनता से अलग है..वो अन्ना के उपवास में शामिल होती है, उनके जेल जाने पर तिहाड़ जेल के गेट को अपना घर बना लेती है…ये जनता निर्भया को लेकर सड़क पर उतर जाती है…ये वो जनता है जो एक नई नवेली पार्टी को पहली बार में ही इतनी सीटें दे देती है कि वो पार्टी सरकार बना लेती है… सो हे राजनीति के सूरमाओं और प्रबुद्धजनों !! रेडियो-टीवी-अखबार के विज्ञापन, चुनाव सर्वे, प्रचार अभियान और रोड शो जनता का मन नहीं बदल सकते. अगर बदल सकते तो प्रमोद महाजन के इंडिया शाइनिंग कैम्पेन के बाद वाजपेयी जी के नेतृत्व में बीजेपी हार नहीं जाती. उस वक्त सोनिया गांधी के रोड शो को गले से ना लगाया होता. और आप भी इसलिए जीते प्रधानमंत्री जी कि उस वक्त देश का मूड आपके पक्ष में था, कांग्रेस के नहीं. सो Plz plz plz….जनता को taken for granted मत लीजिए.
मेरा मानना है कि कम से कम दिल्ली की जनता का मूड बीजेपी के रणनीतिकारों की तरह नहीं सोच रहा. इसकी भनक पार्टी को भी होगी और यही कारण है कि इस दफा का चुनाव जीतने के लिए पार्टी एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. लेकिन आम आदमी पार्टी इस बार भी कमाल कर सकती है. हो सकता है कि दोनों पार्टियों को लगभग बराबर-बराबर सीटें आ जाए. दोनों के बीच एक या दो सीटों का फसला हो. या फिर केजरीवाल को बहुमत मिल जाए (ऐसा होगा तो ये चमत्कार ही होगा). लेकिन बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिल रहा है, ऐसा मैं नहीं मानता. उसकी हालत खराब है, और किसे कितनी सीटें आएंगी, ये आंकड़ा देने से बचना चाहिए. ऐसा करना हास्यास्पद सा लगता है.और जैसा मैंने ऊपर लिखा है कि अश्मेध यज्ञ का घोड़ा इस दफा दिल्ली में रोका जाने वाला है. और उसे कोई नहीं, आम आदमी ही रोकेगा क्योंकि उसी ने आपको इस घोड़े पर बिठाया था. @fb (लेखक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन में अध्यापन कार्य कर रहे हैं)