
चुनाव नजदीक है सो राजनीति चरम पर है. राजनीतिक दलों के बीच घमासान मचा हुआ है और इसका असर अब मीडिया पर भी पड़ने लगा है. नेताओं की तरह पत्रकार भी अब बयान जारी करने लग गए हैं. मामला वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ और एनडीटीवी के मालिक डॉ. प्रणॉय रॉय के बीच है.
विनोद दुआ ने ट्वीट के जरिए कई गंभीर आरोप डॉ. प्रणॉय रॉय पर लगाये हैं और यहाँ तक कह डाला कि डॉ. प्रणॉय ने राजनीतिक पत्रकारिता के उनके करियर को खत्म करने की कोशिश की.
विनोद दुआ का कहना है कि उनके साथ धोखा हुआ है और डॉ. प्रणॉय रॉय ने अपना वादा पूरा नहीं किया. वीकेंड पॉलिटिकल प्रोग्राम के लिए उनसे वादा किया था जो पूरा नहीं किया गया. इसलिए पब्लिक डोमेन में उन्हें ये सारी चीजें लानी पड़ी.
विनोद दुआ अब डॉ. प्रणॉय रॉय से दो – दो हाथ करने के मूड में दिख रहे हैं. वे लिखते हैं – अभी देखना, इस देशी अंग्रेजी दून वाले की मैं हिन्दुस्तान का प्राउड मीडिल क्लास बच्चा कैसे लेता हूँ.
वह पूरा ट्वीट नीचे प्रकशित कर रहे हैं. लेकिन उसके पहले विनोद दुआ के बीबीसी को दिए इंटरव्यू का वह हिस्सा जिसमें वे प्रणॉय रॉय को अपने सबसे नजदीक बताते हैं. विनोद दुआ बीबीसी से बातचीत में कहते हैं.
“दो लोग मेरे दिल के बहुत नज़दीक हैं. एक हैं प्रणॉय रॉय और दूसरे एमजे अकबर. मैंने उनके साथ न्यूज़ लाइन शुरू किया था. 1985 में ये पहला ग़ैर सरकारी प्रोग्राम था. उस प्रोग्राम को मैंने प्रोड्यूस किया था और एमजे अकबर उसके एंकर थे. वो दौर था जब मेरी शादी हो चुकी थी, मेरी बेटी दो-तीन महीने की थी. मुझे अपना करियर बनाना था. ये ख़बरों की दुनिया में मेरा पहला बड़ा प्रोग्राम था. ये प्रोग्राम बहुत कामयाब रहा.
उससे पहले 1984 के चुनाव में मुझसे कहा गया कि चुनाव विश्लेषण में जो प्रणॉय रॉय और अशोक लाहिरी कहेंगे, मैं उसका अनुवाद करूँगा. मैंने इससे पहले कभी अनुवाद नहीं किया था. लेकिन क्योंकि तालीम अंग्रेजी में हासिल की थी और परवरिश हिंदी में तो दोनों भाषाओं की समझ थी. जब ये कार्यक्रम शुरू हुआ तो जैसे ही प्रणॉय अपना वाक्य खत्म करते थे, मुझे बहुत जल्द इसका अनुवाद करना था.
लेकिन इस दौरान जो दिल के रिश्ते बने उसके बारे में ये कहूँगा कि आज भी मैं अक्सर शाम की कॉफ़ी प्रणॉय के साथ पीता हूँ. प्रणॉय और राधिका रॉय और एमजे अकबर जैसे लोगों का साथ विरले ही मिलता है.
एमजे अकबर की बात करें तो सही तर्कों के साथ अपने विचारों को रखना हमने उनसे सीखा. दूसरा 24 में से 18 घंटे काम कैसे किया जाता है, ये भी मैंने उनसे सीखा है. मुझे याद है कि टेलीग्राफ में उनका लगभग 80-100 लोगों का स्टाफ था और उनमें वो सबसे अधिक काम करते थे.
मजे़ की बात ये है कि 1991-2007 तक हम एक-दूसरे से नहीं बोले. किसी बात को लेकर हमारे बीच नाराज़गी थी. 16 साल हम नहीं मिले, लेकिन जब मिले तो 16 मिनट भी नहीं लगे. रही बात प्रणॉय-राधिका की तो इन दोनों से मैंने ये सीखा है कि अपनी सीमाओं को आप फैलाते रहें और हर समय अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करें.”
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विनोद दुआ के ट्विट पर सोशल मीडिया में लिखा – पढ़ी :
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