विनीत कुमार
- लीजिये मीडिया के कद्रदान..अब हाफ़िज़ सईद और आत्ममुग्ध पत्रकार वेद प्रताप वैदिक की मुलाकात रियलिटी शो में कन्वर्ट हो गयी..mtv rodies, बिग बॉस, splitvillaz जैसे शो से लौटे प्रतिभागी की तरह वैदिक लाइव बता रहे हैं कि कैसे-कैसे क्या-क्या हुआ और कैसे मिले..लोग दूसरे की तारीफ़ में कसीदे पड़ते हैं, साबजी तो स्वरचित वैदिक चालीसा पाठ करने में लगे हैं. पंक्ति दर पंक्ति अपनी हिम्मत, चतुरता, साख और वैराग्य वृत्ति का बखान..कल होते-होते ये शख्स लोहे जुटाकर अपनी मूर्ति निर्माण की मांग न कर बैठे.
- वेद प्रताप वैदिक यदि अपने माद्दे से वर्ल्ड मोस्ट वांटेड हाफिज सईद से मिल आये और उनकी मुलाकात में सरकार की ओर से कोई मदद या भूमिका नहीं रही है तो मैं मीडिया मंडी के इस मसीहा को सलाम करता हूँ. नहीं तो यहाँ तो आलम ये है कि फील्ड की रिपोर्टिंग तो छोडिये, एडिटिंग मशीन पर संतान पैदा करने में एक दर्जन स्पांसर्स के बिना काम नहीं चलता..वेद प्रताप वैदिक ने ऐसे समय में घनघोर महान काम किया है जबकि बाकी के मीडिया महंत और जिनमे वो खुद भी शामिल हैं, छोटे-छोटे घरेलू मुद्दे पर न केवल चुप मार जाते हैं बल्कि सिस्टम के आगे लोटने लग जाते हैं.
रही बात वैदिक की विश्वसनीयता की तो इस तरह की पत्रकारिता का पहले कभी न तो उनका रिकॉर्ड रहा है और न ही जोखिम पत्रकारिता का कोई नमूना ही सामने है. अचानक तितर के हाथ बटेर लगने की स्थिति में सवाल उठना स्वाभाविक है.
इन सबके बीच bea के महासचिव एन.के.सिंह का ये कहना कि जो भी वैदिक का विरोध कर रहे हैं, वो संकीर्ण पत्रकारिता का नमूना पेश कर रहे हैं, वो हैरान नहीं करता बल्कि ये साबित करता है कि महत्वपूर्ण मुद्दे पर चुप्पी के बाद का प्रलाप ऐसा ही होता है. रही बात स्वयं वैदिक के तर्क कि हमने जब इंदिरा गाँधी के लिये ये सब नहीं किया तो अब क्यों करेंगें, इसका मतलब कि पत्रकारिता के स्तर पर उनके पास कोई ठोस तर्क नहीं है..ये सही है कि आतंकवादी से मिलकर कोई आतंकवादी नहीं हो जाता लेकिन ये भी हम अपने ही देश में देखते आये हैं कि नक्सली पर लिखने और उनसे मिलनेवाले लेखक, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता नक्सली करार दे दिये जाते हैं..कुछ नहीं तो वैदिक जी को लोगों की नहीं तो सरकार की भावना का सम्मान तो करना ही चाहिये..
(स्रोत-एफबी)