बेशर्म सरकारों का आप कोई इलाज नहीं कर सकते – उमेश कुमार,एडिटर-इन-चीफ,समाचार प्लस

मीडिया खबर डॉट कॉम के संपादक 'पुष्कर पुष्प' से समाचार प्लस के एडिटर-इन-चीफ 'उमेश कुमार' की बातचीत

उमेश कुमार,एडिटर-इन-चीफ,समाचार प्लस
उमेश कुमार,एडिटर-इन-चीफ,समाचार प्लस

इंटरव्यू : उमेश कुमार,एडिटर-इन-चीफ,समाचार प्लस

umesh kumar, editor-in-chief, samachar plus
उमेश कुमार,एडिटर-इन-चीफ,समाचार प्लस

उत्तराखंड के राजनीतिक उथल-पुथल वाले माहौल में ‘समाचार प्लस’ चैनल के स्टिंग ने पिछले दिनों भूचाल खड़ा कर दिया. पहली बार लोगों ने टीवी पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का नज़ारा देखा. इस स्टिंग को समाचार प्लस के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ ‘उमेश कुमार’ ने किया. कई महीने बीत जाने के बावजूद स्टिंग की गूँज अब तक बरक़रार है. स्टिंग के असर से मुख्यमंत्री हरीश रावत को सीबीआई जांच का सामना कर पड़ रहा है तो समाचार प्लस को उत्तराखंड में आए दिन ब्लैकआउट का.

स्टिंग और उससे जुड़े पूरे घटनाक्रम पर मीडिया खबर.कॉम के संपादक पुष्कर पुष्प ने समाचार प्लस के एडिटर-इन-चीफ उमेश कुमार से बातचीत की.बातचीत में स्टिंग के अलावा समाचार प्लस के आगे की योजनाओं और सोशल मीडिया के बारे में भी विस्तार से चर्चा हुई.पेश है साक्षात्कार के मुख्य अंश – (साक्षात्कार का लहजा जहाँ तो हो सके,बातचीत की शैली में ही रखने की कोशिश की गयी है)

पुष्कर पुष्प – उमेश जी स्टिंग के लिए आपको बधाई. सवाल बहुत सारे हैं,लेकिन सबसे पहले एक टीवी न्यूज़ वाला सवाल. ख़बरें करते-करते आप खुद खबर बन गए.तमाम चैनलों ने आपको और आपकी खबर को कवर किया. कैसा लग रहा है?
उमेश कुमार – (मुस्कुराते हुए) देखिए पुष्कर जब दूसरे की खबर होती है तो हमें एहसास नहीं हों पाता कि उसको कैसा लग रहा होगा? लेकिन खबर में आने के बाद असलियत से सामना होता है. कई तरह के खट्टे-मीठे अनुभव होते हैं. पत्रकारिता में कई लोग आपके खिलाफ हों जाते हैं और गुटबाजी खुलकर सामने आ जाती है.सबसे मजबूत मानी जाने वाली कौम का सबसे कमजोर चेहरा सामने आता है.मीडिया संस्थान को ऐसी कोई भी लड़ाई अकेले ही लड़नी पड़ती है. हर संस्थान सोंचता है कि हम क्यों सरकार से लड़े? दूसरे चैनल आपकी खबर को नहीं दिखाते.

पुष्कर पुष्प – लेकिन समाचार प्लस के स्टिंग को तमाम चैनलों ने दिखाया. राष्ट्रीय चैनलों पर पूरी कवरेज मिली.
उमेश कुमार – देखिए वो तो बड़ी खबर थी और उसको तो चलना ही था. ऐसी ख़बरें जब भी आती है तो हम हों या हमारा कोई प्रतिद्वंदी चैनल खबर तो दिखानी ही पड़ती है.अभी समाचार प्लस को उत्तराखंड में ब्लैकआउट कर दिया गया तो हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, एबीपी और भी एक दो चैनलों ने खबर चलाई.

पुष्कर पुष्प – ये दूसरा मौका है जब आप उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के निशाने पर हैं? आपके पीछे उत्तराखंड के सीएम ही क्यों पीछे पड़ते हैं?
उमेश कुमार – मैं ख़बरें ही उत्तराखंड की करता हूँ तो निशाने पर आना लाजमी ही है. देखिए हमारी किसी से कोई निजी दुश्मनी तो है नहीं. हमलोगों की कई ख़बरों से उत्तराखंड सरकार की साख पर बट्टा लगा और सत्ता प्रतिष्ठान को कार्रवाई करने पर मजबूर होना पड़ा. इसलिए राज्य सरकारें पीछे पड़ती है. आगे जब हम राष्ट्रीय स्तर की ख़बरें करेंगे तो हो सकता है देश की सरकार भी हमारे पीछे पड़े.

पुष्कर पुष्प – लेकिन जब पूरी राज्य सरकार आपके पीछे पड़ जाए तो ऐसे में अपना अस्तित्व बचाना बड़ा कठिन काम है?
उमेश कुमार – हाँ आप ठीक कह रहे हैं. किसी भी चैनल के लिए ऐसा समय बड़ा कठिन होता है.आपने देखा ही कि उत्तराखंड सरकार ने कैसे दो मिनट में हमारे चैनल को ब्लैकआउट करवा दिया. सारे विज्ञापन बंद कर दिए गए. चैनल को नेस्तनाबूद करने की तमाम कोशिशें की जा रही है. लेकिन उसके बावजूद हम झुके नहीं और दिख भी रहे हैं.

UMESH-KUMAR-FINAL
उमेश कुमार, एडिटर-इन-चीफ,समाचार प्लस

पुष्कर पुष्प – ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी चैनल को ब्लैकआउट कर दिया गया. नेताओं की ये फितरत रही है. खबर मैनेज न हो तो अखबार को गायब करा दो और चैनल को ब्लैकआउट कर दो. नेताओं की इस मानसिकता के पीछे क्या सोंच होती है?
उमेश कुमारनेताओं को लगता है कि मानसिक दवाब बनाकर वे ख़बरों को दबाने के अलावा खबरनवीस पर दवाब भी बना सकते हैं. यदि आपका चैनल एक बार ब्लैकआउट कर दिया जाए तो फिर से उसे दिखने में लगभग एक हफ्ते का समय लग जाता है. इसलिए ऐसा किया जाता है ताकि चैनल समझौते की मुद्रा में आ जाए.

पुष्कर पुष्प – लेकिन आपको लगता है कि सोशल मीडिया के ज़माने में ब्लैकआउट जैसे हथकंडे कारगर हैं?
उमेश कुमार – पहले ये तरीके कारगर थे. लेकिन सोशल मीडिया के आने के बाद अब ये हथकंडे पुराने हो गए हैं. यदि आप भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं तो वो लोग भी आपके साथ आ खड़े होते हैं जिन्हें आप जानते भी नहीं और आपकी लड़ाई का दायरा बड़ा हो जाता है. बस लोगों को ये पता होना चाहिए कि आप सही हैं.

पुष्कर पुष्प – आप सोशल मीडिया/ऑनलाइन पर काफी जोर दे रहे हैं. लेकिन शुरूआत में मेनस्ट्रीम मीडिया के लोगों ने ऑनलाइन माध्यम को नकारा. वेबसाईट के माध्यम से ऑनलाइन प्रयोग कर रहे हम जैसे लोगों को ऑनलाइन का गुंडा तक कहा गया. लेकिन अब पूरा मामला उलट गया है. आपका क्या नजरिया है?
उमेश कुमार – नयी चीजों के प्रति शुरुआत में लोगों का ऐसा ही नजरिया होता है. मैंने भी जब पहली बार NNI के माध्यम से एसएमएस के जरिए मोबाईल पर ख़बरें पहुँचाने की शुरुआत की तो ऐसी ही प्रतिक्रिया मिली थी लेकिन बाद में इसी खबर से पूरे सिस्टम में हड़कंप मच जाता था. देखिए आने वाला समय ऑनलाइन का है और अब इसे कोई दरकिनार नहीं कर सकता. लोगों ने अपने मोबाईल में एप्स डाउनलोड कर रखे हैं और उन्हीं एप्स के जरिए वे ख़बरों से रूबरू होते रहते हैं. समय के अभाव में टीवी और अखबार छूट सकता है लेकिन मोबाईल के जरिए आप कभी भी ऑनलाइन एक्सेस करके ख़बरें देख सकते हैं. अब लोग टीवी कम और ऑनलाइन वीडियो ज्यादा देखते हैं. यही वजह है कि अब तमाम चैनल ऑनलाइन माध्यम में मौजूद हैं और यूट्यूब से लेकर फेसबुक तक अपनी स्थिति को मजबूत करने में लगे हुए हैं.

पुष्कर पुष्प – ऐसे में क्या आप ऑनलाइन को टीवी के लिए खतरा मानते हैं?
उमेश कुमार – नहीं ऐसा नहीं है. हरेक माध्यम की अपनी एक अलग जगह होती है.ऑनलाइन टीवी के दायरे को और विस्तृत कर रहा है.

पुष्कर पुष्प – अच्छा उत्तराखंड के राजनीतिक उठापटक के बीच आपको स्टिंग का आईडिया कैसे आया और हरीश रावत बातचीत के लिए कैसे तैयार हुए?
उमेश कुमार – हॉर्स ट्रेडिंग (Horse Trading) के बारे में अबतक हम सुनते आए हैं कि किसी एक नेता दूसरे नेता को खरीदता है. लेकिन दर्शकों ने कभी देखा नहीं था. पहली बार लोगों ने समाचार प्लस पर देखा. वैसे बड़ा रोचक मामला था. अचानक किसी के माध्यम से हरीश रावत का संदेश आया कि उमेश तुम्हारी तो नेताओं से अच्छी जान-पहचान है.बात करके देखो कि कुछ हो सकता है क्या? तभी मेरे दिमाग में स्टिंग का विचार आया और बाकी आपके सामने है.

पुष्कर पुष्पसमाचार प्लस को लॉन्च हुए तकरीबन चार साल हो चुके हैं.इस दौरान दर्जनों क्षेत्रीय चैनल आए और बंद हो गए. क्या वजह मानते हैं?
उमेश कुमार – देखिए ज्यादातर चैनल लाने वाले या तो बिज़नेसमैन होते हैं या फिर कोई ऐसा घराना होता है जिसकी मीडिया में दिलचस्पी होती है.लेकिन चैनल चलाने के बारे में उन्हें उतनी जानकारी नहीं होती और उनके जो माध्यम होते हैं उनकी स्ट्रेटजी कहीं-न-कहीं फेल हो जाती है जिसकी वजह से चैनल चल नहीं पाता.फिर पहले दिन से ही छा जाने की प्रवृति भी बाद में घातक सिद्ध होती है. जनता के बीच अभी पकड़ बनी नहीं और ये डिश टीवी,टाटा स्काय, एयरटेल आदि प्लेटफॉर्म पर दिखने लगते हैं. यानि शुरुआत में ही सारे अस्त्र-शस्त्र इस्तेमाल हो जाता है. कहने का मतलब है इन चैनलों के बंद होने की सबसे बड़ी वजह शुरूआत में ही सारे संशाधन और धन लगा देना रहा जिसका ठीक से इस्तेमाल तक नहीं हो पाता.चैनल की आमदनी एक करोड़ है और खर्चा आपने दस करोड़ की बना दी तो आप कैसे सर्वाइव करेंगे.

पुष्कर पुष्प – क्षेत्रीय चैनल के लिहाज से समाचार प्लस बेहद सफल रहा. क्या स्ट्रेटजी रही?
उमेश कुमार – देखिए हमने अपने संशाधनों का बखूबी इस्तेमाल किया और धूम-धड़ाके की बजाए योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़े और उसमें सफल भी रहे. शुरुआत में हम किसी डीटीएच प्लेटफॉर्म पर मौजूद नहीं थे. हमारी मौजूदगी सिर्फ केबल तक सीमित थी. एक भी ओबी वैन नहीं थी. फिर भी हम यूपी और उत्तराखंड में नंबर एक की पायदान तक पहुँचे. फिर हमारा टीम वर्क बहुत सॉलिड है.

पुष्कर पुष्प – समाचार प्लस का सेटअप किसी राष्ट्रीय स्तर के न्यूज़ चैनल से कम नहीं है. लेकिन नेशनल चैनल की बजाए आप क्षेत्रीय चैनल लेकर क्यों आए?
उमेश कुमार – आपने देखा ही है कि नेशनल चैनल के पीछे लोगों ने कितने पैसों की बर्बादी की.लेकिन अंत में ये बंद हुए. सीएनईबी से लेकर वायस ऑफ इंडिया जैसे दर्जनों ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं.आज भी कई चैनल पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं लेकिन टॉप के चार चैनल में भी जगह नहीं बना पा रहे. तो जिस रेस में साल का 200 करोड़ रूपये खर्च हो रहा हो उस रेस में मैं क्यों शामिल होऊं. मुझे रीजनल मार्केट में कब्ज़ा करना था सो मैंने किया. यूपी-उत्तराखंड और राजस्थान में हमें लीडर की तरह देखा जाता है. कई और राज्यों पर भी हमारी नज़र है. तो धीरे-धीरे ही नेशनल वाला काम हम रीजनल के जरिए कर रहे हैं.

पुष्कर पुष्प – क्षेत्रीय चैनलों का किस तरह का भविष्य आप देखते हैं? एक वक्त पर अंधाधुंध चैनल लॉन्च हुए.लेकिन अब वो दौर थम चुका है.
उमेश कुमार – हाँ ये सही है. उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में तो अब कोई रीजनल चैनल चलाने के बारे में सोंचता तक नहीं. मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड आदि कुछ राज्यों में रीजनल चैनल खोलने को लेकर लोगों में रुझान अब भी है. मौसमी चैनलों को अब लोग गंभीरता से नहीं लेते, लेकिन समाचार और सरोकार वाले क्षेत्रीय चैनल का भविष्य अब भी उज्जवल है.

पुष्कर पुष्प – समाचार प्लस को लेकर आगे की क्या योजनाये हैं? रीजनल लेवल पर नेशनल चैनल बनने की कवायद में समाचार प्लस के टारगेट पर अगला राज्य कौन सा होगा?
उमेश कुमार – (हँसते हुए) ये तो ऊपर वाला ही जानता है. योजनाये तो बनती-बिगड़ती रहती है. मैं तो नियति पर यकीन करता हूँ. वैसे हमारा यूपी-उत्तराखंड चैनल अच्छा चल गया है. यूपी विधानसभा चुनाव के बाद दो-तीन राज्यों में मैं और जाऊँगा.

पुष्कर पुष्प – हमारे पाठकों के लिए क्या उन राज्यों का नाम बता सकते हैं?
उमेश कुमार – (मुस्कुराते हुए) नियति जहाँ ले जाए.

पुष्कर पुष्प – समाचार प्लस की जब लॉन्चिंग हुई तो आपको उम्मीद थी कि इतनी दूर तक जा पायेंगे.आपके लिए भी चैनल चलाने का ये पहला अनुभव ही था.
उमेश कुमार – चैनल का मैकेनिज्म बड़ा टफ है. यदि आपका खुद का तजुर्बा ना हो तो आपको कोई भी बेवकूफ बना सकता है.लेकिन थोड़ी ईमानदारी और समझदारी से चले तो चीजें आपको खुद समझ में आने लग जाती है. हाँ ये सही है कि चैनल चलाने का मुझे भी कोई अनुभव नहीं है. लेकिन उसके बावजूद सफल रहा तो इसे ईश्वर की कृपा ही कहेंगे कि चीजें सही दिशा में अपने आप होती चली गई. अच्छे लोग मिलते चले गए. किसी भी चैनल में लोगों की आवाजाही का रेशियो 25% तक होता है लेकिन हमारे चैनल में ये रेशियो 2% भी नहीं है. नए लोगों की नियुक्ति भी बहुत कम होती है क्योंकि कोई चैनल छोड़ कर जाता नहीं, इसलिए जगह खाली ही नहीं होती. एचआर से लेकर इनपुट-आउटपुट, असाइमेंट सब जगह का ऐसा ही हाल है. इसके अलावा प्रवीण (मैनेजिंग एडिटर) जो मेरे भांजे भी हैं उनका भी चैनल की सफलता में बड़ा योगदान है. उनका चैनल में कोई निजी हित नहीं है.वे सुबह आकर बैठते हैं और रात को जाते हैं और पूरे समय चैनल के लिए काम करते हैं. साल में एकाध बार ही छुट्टी लेते हैं. उनका समाचार प्लस की सफलता में बहुत बड़ा योगदान है.

पुष्कर पुष्प – एक आखिरी सवाल. स्टिंग के बाद उत्तराखंड के सीएम हरीश रावत ने आप पर कई आरोप लगाए.आपकी संपत्ति का जिक्र किया. आपकी प्रतिक्रिया?
उमेश कुमार – देखिए यदि ऐसा है तो उन्हें मेरी संपत्तियों की जांच करवा लेनी चाहिए.ये संपत्तियां तो पैसों से ही खरीदी गयी होगी ना.चेक से पेमेंट किया गया होगा.यदि मेरी कोई बेनामी संपत्ति हो तो वो खोज कर लाइए, मै वो संपत्ति ही आपके नाम कर दूँगा. देखिए मैं नंबर 2 का धंधा नहीं करता,इसलिए ऐसे आरोपों की परवाह नहीं करता.मेरा जो भी है सब सामने है. यदि ऐसा नहीं होता तो मैं इतनी बड़ी लड़ाई नहीं लड़ सकता. अब सरकार अपनी पावर का इस्तेमाल कर झूठे मुक़दमे में फंसा दे तो उसका क्या कर सकते हैं, जैसा कि पूर्व की सरकार ने मेरे साथ किया भी था. बेशर्म सरकारों का आप कोई इलाज नहीं कर सकते. उनके पास संविधान की दी हुई ताकत है और वे कुछ भी कर सकते हैं. आप देखिए न कि हरीश रावत ने कितनी बेशर्मी से एसआईटी का गठन कर दिया. कैबिनेट बुलाकर अपने खिलाफ की रिकमंडेशन वापस ले ली.मतलब अपराधी कहेगा कि मेरी जांच मेरा भाई करेगा. आपकी स्टेट पुलिस की जांच आपका दारोगा कर सकता है.बॉस की जांच उसका स्टाफ थोड़े ही कर सकता है.सीबीआई जांच कर रही है तो आप कह कहते हैं कि एसआईटी जांच करे. वे एक तरह से संविधान का भी मजाक बना रहे हैं. हरीश रावत को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए. ओछेपन की राजनीति उन्हें छोड़ देनी चाहिए.

पुष्कर पुष्प – मीडिया खबर से बातचीत करने के लिए आपका धन्यवाद. उम्मीद करते हैं कि आगे भी ‘समाचार प्लस’ इसी धार के साथ समाचार देता रहेगा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.