दिलनवाज़ पाशा
मैंने अपने पेशेवर पत्रकारिता करियर की पहली स्टोरी शशि थरूर पर ही की थी. सितंबर 2009 में थरूर के ‘कैटल क्लास’ कमेंट की आलोचना हो रही थी. थरूर अफ़्रीका में थे. ट्विटर पर नज़रे गढ़ाए मैं उनकी ट्वीट का इंतज़ार कर रहा था. थरूर की ट्वीट के तुरंत बाद मैंने उन्हें सवाल भेजे, उन्होंने जबाव दिया. मैंने फिर सवाल भेजे और वे जबाव देते रहे. उस वक़्त भारत में रात के करीब बारह बजे थे. थरूर ने अपने कैटल क्लास कमेंट के लिए माफ़ी भी माँगी. ये अफ़्रीका में मौजूद मंत्री का ट्विटर के ज़रिए किया गया सार्वजनिक साक्षात्कार था जो अगले दिन अख़बार के पहले पन्ने पर छपा था. और उस वक़्त मुझे नौकरी शुरू किए सिर्फ 18 दिन ही हुए थे. मेरे लिए यह कहना भी ग़लत नहीं होगा कि सोशल मीडिया (ट्विटर) की असली ताक़त का पाठ शशि थरूर ने ही हमें पढ़ाया!
(स्रोत-एफबी)