अरविंद के.सिंह
सबकी नहीं लेकिन कई टीवी चैनलों में गेस्टों की दुनिया अलग है…अज्ञानियों से लेकर प्रकांड विद्वानों तक…पहले अखबारों मे छपास के कई रोगी होते थे..आज दिखास रोगी हैं…पहले उनमें बड़े नेता तक शामिल थे…सुबह अखबारों में नाम और फोटो न छपे तो खाना न हजम हो..वही हालत चैनलों के कई गेस्टों की है..गेस्टों की कतार में सबसे आगे हैं दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू..कई अच्छे और और कई अज्ञानी…नाम नहीं लेगें मानहानि का मुकदमा कर सकते हैं…लेकिन दर्शक सब जानता है..
पत्रकारों में भी विषय विशेषज्ञों के नाम पर तमाम शोभा की वस्तुएं स्टूडियो में बिठा दी जाती है, दोस्ती निभायी जाती है..और अब एनडीटीवी जैसा चैनल भी अपवाद नहीं रहा जो क्वालिटी में औरों से बेहतर रहा है…इसकी एक वजह ये है कि गेस्टों के चयन का कोई ठोस पैमाना नही है…अगर चार चैनलो पर कोई गधा पांच दिन लगातार बैठ जाये तो वो कई जगहों पर गेस्ट बनने की योग्यता हासिल कर लेगा…
यूपी के चुनाव में हमने कई स्वमामधन्य लोगों के भाषण सुने…लेकिन मुझे सबसे अच्छा और ज्ञानवर्धक लगा श्री हेमंत तिवारी का चैनलों पर चुनावी ज्ञान..श्री संजय शर्मा और श्री सिद्धार्थ कलहंस भी यूपी की राजनीति को करीब से देख रहे हैं अच्छा बोले…सिद्धार्थ की यूपी की अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त पकड़ है…
दिल्ली में श्री अमिताभ अग्निहोत्री और श्री विनोद अग्निहोत्री जैसे वरिष्ठ पत्रकारों को देख कर लगता है कि इनमें कितना ज्ञान है…हमारे मित्र श्री अवधेश कुमार जी तो ज्ञान के भंडार ही हैं…कई विषयों पर उऩके पास इतना जानकारी है कि उनके टक्कर में कोई खड़ा नहीं हो सकता..बैठते हैं तो विशेषज्ञ बगलें झांकने लगते हैं..लेकिन तथाकथित मुख्यधारा के वो चैनल जो यारी दोस्ती और रिश्तेदारी निभाते हैं उऩका तो पैमाना ही अलग है..इसी नाते शायद स्तर लगातार गिर रहा है और दिखास रोगियों की संख्या बढ़ रही है…
(स्रोत-एफबी)