टीआरपी की अंधी दौड़ में खखुआए प्रोड्यूसर !

ये टेलीविजन का चेहरा है.ये ऑडियो-विजुअल माध्यम की ताकत के बेजा इस्तेमाल है.ये टीआरपी की अंधी दौड़ में खखुआए प्रोड्यूसरों का मानसिक दिवालियापन है.ये हर घटना का नाट्य रुपांतरण करके मजेदार-चटाखेदार-मसालेदार-‘दमदार’ बनाने की अनवरत भेड़चाल है.मामला अहमदाबाद में खूंखार आतंकवादियों द्वारा खोदी गई कई फीट लंबी सुरंग का है. इतने संवेदनशील मुद्दे को भी हर छोटा-बड़ा नैशनल हिंदी न्यूज चैनल इतने मजे लेकर दिखा रहा है कि मत पूछिए….प्रोग्राम की शुरुआत में ही फिल्म शोले में अंग्रेजों के जमाने वाले जेलर के दृश्य दिखाए जा रहे हैं…असरानी की मसखरी दिखाई जा रही है…इतनी गंभीर घटना को खट्टी-मीठी गोली के रूप में दर्शकों के सामने परोसा जा रहा है….आखिर कहां जा रहे हैं हम???


सबसे अफसोसनाक बात तो ये है कि आतंकवादियों ने सुरंग खोदकर भागने के इतने खतरनाक मंसूबों को लगभग अंजाम दे दिया था, लेकिन खबरो में- रपट में जेल प्रशासन से लेकर जेल मंत्री तक, किसी को जिम्मेदार नहीं बताया जा रहा….सवाल नहीं पूछे जा रहे…पूरा फोकस बस मामले के ‘टीआरपी दोहन’ पर है.

इससे भी शर्मनाक ये है कि जो मीडिया कल तक नरेंद्र मोदी के विकास और सुशासन का गुणगान कर रहा था, पूरे मामले पर किसी भी चैनल के ‘वीर-पत्रकार’ ने इस मामले पर मोदी का वर्जन लेने का साहस नहीं दिखाया…या यूं कहें कि मोदी ने उनको भाव ही नहीं दिया, बाइट नहीं दी, टाइम नहीं दिया…अगर ऐसा है, तो कम से कम खबर में ये ही बता देते कि मोदी ने इस मामले पर कुछ भी बोलने से, मुंह खोलने से इनकार कर दिया है…कम से कम पीएम इन वेटिंग की पोल पट्टी तो खुलती…पूरे मामले पर मीडिया इतना मासूम बना हुआ है कि बस जेल अधिकारी जो बोल रहे हैं, वो बाइट दिखाकर, ड्रामा किएट करके दर्शकों के सामने परोस दे रहे हैं… कोई तीखे सवाल नहीं…ये कोई नहीं बता रहा कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे इस देश में क्या जेल प्रशासन कि मिलीभगत से इनकार किया जा सकता है…क्या वर्दीवाले ही आतंकवादियों की मदद तो नहीं कर रहे थे…ऐसा सवाल, इस एंगल से खोजपड़ताल कम से कम मुझे तो किसी चैनल की खबर में नहीं दिखी….सब ड्यूटी पूरी कर रहे हैं….बस.

(पत्रकार नदीम एस.अख्तर के एफबी वॉल से)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.