आपकी तरह मैं भी टीवी न्यूज एंकर सुप्रीत कौर की प्रोफेशनिज्म को सलाम करता हूं. मेरे लिए ये कल्पना करना ही खुद की पीठ पर कोडे मारकर लहूलुहान करने जैसा है कि अपने ही पार्टनर की मौत की खबर को कोई किस हालत में पढ सकेगा ? सुप्रीत ऐसा कर पायी क्योंकि पार्टनर को खो देने के वाबजूद खबर के स्तर पर खुद को मरने नहीं दिया. दूरदर्शन के दिनों को याद करते हुए इंदिरा गांधी की मौत की खबर और दूरदर्शन की न्यूज प्रेजेंटर सलमा सुल्तान की प्रोफेशनलिज्म को याद किया जाता है. सल्मा सुल्तान की इस मुद्दे पर दर्जनभर बाईट है कि उस वक्त उन्हें कैसा महसूस हो रहा था. दूरदर्शन इस स्तर की प्रोफेशनलिज्म के बावजूद कभी पेशेवर पत्रकारिता का उदाहरण नहीं बन सका. हां सल्मा सुल्तान एक बेहतरीन टीवी प्रेजेंटर के साथ-साथ इस बात के लिए अलग से भी जरुर याद की जाती हैं कि उन्हें इतनी बड़ी खबर पढ़ी है. लेकिन हम सुप्रीत कौर के अपने ही पति की मौत की खबर को पढ़े जाने को लेकर क्या सिर्फ इस सिरे से सोचकर रह सकते हैं कि सुप्रीत अपने काम के प्रति कितनी ईमानदार कि जीवन के सबसे कठोरतम क्षण में भी पेशे का साथ दिया. वो भी ऐसे दौर में जबकि व्यक्ति के मरने के पहले खबर के स्तर पर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जा रहा हो. क्या हमारे जेहन में इस सिरे से कोई सवाल नहीं आता कि क्या इस चैनल में इस बात की कहीं कोई संभावना नहीं थी कि उनके बजाय कोई दूसरा न्यूज एंकर इस खबर को पढ़े ? जिस वक्त की बुलेटिन में ये खबर आयी, स्टैंड बाय में कोई ऐसा न्यूज एंकर नहीं था कि उन्हें इस भयानक इमोशनल क्राइसिस के समय में साथ किया जाता ?
न्यूज चैनलों की मेरी अपनी जितनी समझ है और जितना मैंने काम किया है, रनडाउन पर बैठे लोगों को इस बात की ठीक-ठीक जानकारी होती है कि किस खबर की क्या एंगिल है, कहां की खबर है, मामला क्या है ? आप जिसे लाइव खबर कहते हैं, उस वक्त भी थोड़े सेकण्ड का फासला होता है. यदि चैनल के न्यूजरुम को यह सब कुछ भी पता नहीं था तो आप समझिए कि खबर की किस दुनिया में आप कैसे जी रहे हैं ? और अगर पता था तो समझिए कि किस क्रूर माहौल में हमारे टीवी एंकर काम करते हैं. ये दोनों ही स्थिति कितनी खतरनाक है, आप अंदाजा लगा सकते हैं.
पिछले दिनों मीडियाखबर वेबसाइट ने एक पोस्ट प्रकाशित की जिसके अनुसार आजतक चैनल के स्टार एंकर सईद अंसारी को बुलेटिन के बीच में वॉशरुम जाना पड़ा. बुलेटिन के दौरान टैप से पानी की थोड़ी देर के लिए आवाज भी आयी. वजह ये कि सईद अंसारी कान से ईपी निकालकर जा नहीं सकते थे. जितनी देर वो वॉशरुम में रहे, खबरों के पैकेज चलते रहे.
आप सईद अंसारी, सुप्रीत कौर इनके जैसे देश के दर्जनों न्यूज एंकर की प्रोफेशनलिज्म को सलाम कर सकते हैं, करना भी चाहिए. लेकिन क्या आप ये महसूस नहीं करते कि न्यूजरूम की शक्ल कितनी क्रूर है कि इंसान अपनी मानवीय संवेदना सहेजने, वॉशरुम जाने जैसे बुनियादी काम ठीक से नहीं कर पाता. एंकरों की फौज के बीच आखिर ऐसी क्या मजबूरी होती है कि एक एंकर इस स्तर पर एकदम अलग और अकेला पड़ जाता है.
न्यूजरुम में खबरें मरतीं हैं, मार दी जाती हैं, ये हम सब जानते हैं लेकिन सांकेतिक तौर पर खुद इंसान को मारने का काम होता है, ये कितना डरावना है, इसका अंदाजा आप तभी लगी सकते हैं जब सीसीटीवी कैमरे की खौफ से आप रो तक नहीं सकते, चिल्ला नहीं सकते.
हम सुप्रीत कौर की इस प्रोफेशनलिज्म के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त करते हैं. मेरी दुआएं उनके दुख को कम करने में शायद थोड़ी मदद करे लेकिन इसकी आड़ में हम न्यूजरूम के उस क्रूर चेहरे को भला कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं जो उन्हें इस बात तक मौका नहीं देता कि पहले एक बार वो इत्मिनान से रनडाउन पढ़ ले या फिर वहां के मौजूद लोग कह सकें- सुप्रीत, आज तुमने बुलेटिन पढ़ी तो हम सब थोड़े-थोड़े मर जाएंगे.