स्मृति ईरानी ने ज्योतिष को हाथ दिखा दिया, तो ये बवाल!

स्मृति ईरानी ने ज्योतिष को हाथ दिखा दिया, तो ये बवाल!
स्मृति ईरानी ने ज्योतिष को हाथ दिखा दिया, तो ये बवाल!

निमिष कुमार

स्मृति ईरानी ने ज्योतिष को हाथ दिखा दिया, तो ये बवाल!
स्मृति ईरानी ने ज्योतिष को हाथ दिखा दिया, तो ये बवाल!
भारत की केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने एक ज्योतिष को अपना हाथ दिखाने की जुर्रत की। डाउन डाउन। आजादी के बाद से देश की ऐसी-तैसी हुई पड़ी है, तब कोई ना बोला। मालूम नहीं क्या घोटाला कर पूरे देश के बच्चों को ज़बरदस्ती जर्मन पेल दी, कोई कुछ ना बोला। इतने साल से देश में इंजीनियरिंग कॉलेज, पब्लिक स्कूल कुकरमुत्तों की तरह फैल गए, कोई कुछ ना बोला। देश की सारी यूनिवर्सिटीज़ अपने साले-बहनोई और अब रखैलों को नौकरी देने का जरिया बन गई, कोई कुछ नहीं बोला। नकारी औलादें प्रोफेसर बनती गई, कोई कुछ ना बोला। स्कूल में सड़क पर चलने की तमीज, बैंक -बचत के बारे में नहीं पढ़ाया, कोई कुछ ना बोला। बेहतर स्वास्थ्य आदतें, सफाई को लेकर पाठ नहीं पढ़ाए गए, कोई कुछ ना बोला। इतिहास अपनी मर्जी से लिखा गया, पढ़ाया गया, कोई कुछ ना बोला। स्मृति ईरानी ने ज्योतिष को हाथ दिखा दिया, तो बवाल। यार ये तो ज़बरदस्ती बवाल पेलने की आदत है। प्लीज़। खजुए कुत्ते समान भौंकना बंद करो यारों। इस देश के एजुकेशन सिस्टम की जिन जिन ने इतने सालों में रेड़ मारी है, उनको अब सरेआम बेइज्जत करो, मर गए है तो उनके रिश्तेदारों को। है हिम्मत। अब सांप सूंध जाएगा। आयं बायं बकने लगोगे। come on buddies, stop these all non-sense..फिर कहोगे खाकी निकर वाले हो, या मोदी समर्थक हो या ब्ला ब्ला ब्ला। ज्योतिष भारतीय संस्क़ृति का एक हिस्सा है, और इसका कोई सम्मान करे तो क्या हर्ज। स्मृति ईरानी ने देश के स्कूलो में ज्योतिष पढ़ाने का आदेश नहीं दिया है…grow-up man, grow-up…

जर्मन-संस्कृत विवाद पर सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने वाले खुद को बुध्दिजीवी समझने वाले मूर्खों से कुछ सवाल। उल्लू के पठ्ठों, जिस देश में नगरनिगम का सफाईवाला नाली साफ करने के लिए 10-20 रुपये की रिश्वत मांग लेता है, वहां केंद्र सरकार की सबसे बड़ी स्कूली चेन में किसी एक लैंग्वेज को फिक्स कराने के लिए क्या लेन-देन नहीं हुआ होगा? किसने किया था ये फैसला कि देश की सबसे बड़ी स्कूल प्रणाली में एक खास विदेशी भाषा ही पढा़ई जाए? क्या फैसला लेने वाले नेता और अधिकारियों के बच्चों या रिश्तेदारों का जर्मनी में कोई हित सध रहा था? क्या ये सही है कि जर्मन भाषा को प्रमोट करने वाली संस्था ने तत्कालीन भारत सरकार से इसे लेकर कोई समझौता किया था? यदि हां, तो तब क्यों नहीं देश से पूछा? फिर जर्मन क्यों, जिसका अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर उतना व्यवसायिक महत्व नहीं है, जितना फ्रैंच, अरबी, चीनी या दूसरी भाषा का? क्या विरोध करने वाले मूर्ख ये नहीं जानते कि पहले भाषा, फिर व्यापार, फिर संस्कृति, यही तरीका होता है अपना साम्राज्य फैलाने का? तो क्या अब अंग्रेजोंं के बाद अगली पीढ़ी जर्मनों की गुलाम हो? फिर क्यों जर्मनी भारतीयों को अब जाकर अपनी भाषा सीखाना चाहता है? क्योंकि उसे अपनी भाषा समझने वाला सस्ता लेबर चाहिए। मूर्खो, जागो। बस ये नहीं कि विरोध के नाम पर, मोदी को गरियाने के नाम पर, जो आए, आयं-बायं बकने लगो। जय हिंद।

@fb

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.