मीडिया ने कहा- कौवा कान ले गया और आप दौड़ पड़े कौवे के पीछे. एक बार सुन तो लीजिए कि कहा क्या गया है.यही बयान हैं न शरद यादव का – “वोट की इज्जत बेटी की इज्जत से बड़ी होती है। बेटी की इज्जत जाएगी तो गांव और मोहल्ले की इज्जत जाएगी। वोट एक बार बिक गया तो देश की इज्जत और आने वाला सपना पूरा नहीं हो सकता है।”
वोट, संसद, लोकतंत्र, संविधान, राष्ट्र इनसे बड़ी भी कोई चीज होती है क्या?
वैसे भी बेटी की इज्जत क्या होती है? ये चली कैसे जाती है? अगर इशारा बलात्कार की ओर है, तो इज्जत अपराधी की गई या पीड़ित की? जिसके साथ जुल्म हुआ, उसकी इज्जत कैसे चली जाती है?
इस इज्जत के नाम पर ‘यत्र नार्यस्तु पुज्यंते’ के पाखंड में औरतों के साथ भारत में सबसे ज्यादा जुल्म हुआ है. महिला विकास के मानदंडों पर दुनिया के सबसे फिसड्डी देशों में हैं हम. हां, हम कहने को औरतों की इज्जत बहुत करते हैं.
JNU के दिलीप यादव के संघर्ष की अनदेखी करने वाला मीडिया, TV चैनल आज रात तक शरद यादव के इस बयान को लेकर पक्का पैनल डिस्कशन करा देगा. देख लेना.
हम, आप, और ख़ासकर संपादकों और एंकरों को मालूम है कि शरद यादव लोगों से गुजारिश कर रहे हैं कि लोकतंत्र में वोट का महत्व समझें। वोट न बेचें। बेटी महत्वपूर्ण है और वोट भी।
संपादक इतने गधे भी नहीं हैं कि इतनी सी बात समझ न पा रहे हों।
बेटी के साथ इज़्ज़त की अवधारणा जुड़ी है तो यह शरद यादव की नहीं, पूरे भारतीय समाज की समस्या है। औरत और इज़्ज़त को जोड़ कर देखना अपने आप में भारतीय समाज की समस्या है।वैसे, हम भी समझते हैं कि शरद यादव से मीडिया की खुन्नस किस वजह से है। आप भी जानते ही होंगे।
दिलीप मंडल,वरिष्ठ पत्रकार–