नदीम एस.अख्तर
1. करीब 7000 साल पहले भारतवर्ष में 40 इंजन वाले हवाई जहाज थे, जो सिर्फ पृथ्वी पर ही नहीं उड़ते थे, अंतरिक्ष में भी जाते थे. मुमकिन है उस दौर में ही हम भारतवर्ष के लोग दूसरे ग्रहों पर सैर करने को जाते हों.
2. उस वक्त हमारे पास अपना उन्नत राडार सिस्टम भी था. यह इतना उन्नत था कि इस राडार सिस्टम से उड़ने वाले हवाई जहाज का shape पता चल जाता था. मौजूदा आधुनिक राडार सिस्टम की तरह नहीं कि स्क्रीन पर कोई बिंदु blink कर रहा है और बता रहा है कि वहां कोई चीज हवा में है.
3. हम हजारों साल पहले इतने उन्नत थे कि ऑपरेशन के लिए 101 तरह के औजार डिवेलप कर लिए थे.
4. केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने तो मंच से ही कह दिया कि विश्वप्रसिद्ध पाइथागोरस थियोरम हमने ही ईजाद किया था लेकिन क्रेडिट दूसरों को ले लेने दिया.
ऐसे कई मनोरंजक और ज्ञान से ओतप्रोत रहस्योद्घाटन 102 साल पुरानी भारतीय साइंस कॉग्रेस में हुए. वो भी केंद्रीय मंत्रियों की मौजूदगी में. हालांकि देश के प्रधानसेवक और पीएम नरेंद्र मोदी जी संयमित दिखे और अपनी कही पुरानी बात नहीं दोहराई कि हम भारतीयों को प्लास्टिक सर्जरी का ज्ञान अनंत काल से है. AIIMS के एक समारोह में मोदी ने कहा था कि भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाना ये बताता है कि सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी में भारत का ज्ञान प्राचीनतम है.
खैर, साइंस कांग्रेस में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने पीएम ने लाज रख ली, वरना मुझे लग रहा था कि अबकी बार वो बोलेंगे कि गंगा शिव की जटा से निकलती है और चंद्रमा वहां विराजमान है. इसका मतलब ये हुआ कि अगली दफा जब भारत का चंद्रयान चांद पर जाएगा तो उसकी धरती पर हम पैर नहीं रखेंगे क्योंकि यह तो भगवान शिव की जटा पर विराजमान है और शिव जी के मस्तक पर हम पैर कैसे रख सकते हैं? और ये भी खोज होनी चाहिए कि गंगा, शिवजी की जटा से और चांद के इतने नजदीक से निकलकर अंतरिक्ष में इतनी दूरी तय करके पृथ्वीलोक पर कैसे आ जाती है?? वगैरह-वगैरह..
मैं किसी भी धर्म या mythology पर नहीं लिखना चाहता क्योंकि वहां लिखी बातों की व्याख्या करने का अधिकार हम-आप जैसे अल्पज्ञान वालों को कतई नहीं हो सकता. पर जब देश के प्रधानमंत्री और दूसरे केंद्रीय मंत्री एम्स के डॉक्टरों और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के सामने माइथोलॉजी और आधुनिक विज्ञान का घालमेल करते हैं तो शर्म आती है. सोचता हूं कि क्या ये वही मोदी हैं, जो विदेश जाकर वहां बसे भारतीयों और वहां के वैज्ञानिकों से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भारत को सहयोग करने की अपील करते हैं. देश में Made in India नहीं, MAKE IN INDIA का नारा देते हैं, बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और फिर मंच पर खड़े होकर विज्ञान का मजाक उड़ाते हैं. ये लोग इतना भी नहीं जानते कि ऐसा करके भारतीय वैज्ञानिकों और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने ये देश की कैसी और क्या छवि पेश कर रहे हैं!!!
देश के केंद्रीय मंत्री और कई -पगलाए तथाकथित वैज्ञानिक- इस दफा साइंस कांग्रेस में जब ये बता रहे थे कि यहां 7000 साल पहले हम 40 इंजन वाले विमान पर उड़ते थे तो इन ऊलजलूल बातों पर अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय ने कठोर प्रतिक्रिया जताई. भारतीय मूल के ही एक वैज्ञानिक डॉ रामप्रसाद गांधीरमन, जो अमेरिका के कैलिफोर्निया में नासा के साथ काम कर रहे हैं, उन्होंने इस तरह की बातों पर गहरा क्षोभ जताते हुए ऑनलाइन पेटिशन दाखिल की और कहा कि भारतीय साइंस कांग्रेस के इस सेशन को कैंसल कर देना चाहिए क्योंकि यहां MYTHOLOGY और SCIENCE का घालमेल किया जा रहा है. डॉ रामप्रसाद ने कहा कि इस तरह के छद्म विज्ञान से हम अपनी भावी नस्लों के साथ मजाक कर रहे हैं और इसकी भर्त्सना की जानी चाहिए.
अब आप अंदाजा लगा लीजिए कि भारतीय साइंस कांग्रेस में देश के नेताओं और कुछ चमचाटाइप तथाकथित वैज्ञानिकों ने जो कहा या जो भी रिसर्च पेपर पढ़े, उसका अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में किस कदर मजाक उड़ाया जा रहा होगा? आज जब देश के वैज्ञानिक अपने दम पर मंगल ग्रह पर अंतरिक्षयान भेज रहे हैं, उस समय हम ऐसी बचकानी बातें करके देश के टैलेंटेड वैज्ञनिकों और साइंस के स्टूडेंट्स को क्या संदेश दे रहे हैं ??
भइया, एक बात बताइए. हम अभी जो हैं, उसे वैदिक सभ्यता का वंशज मानते हैं यानी कि वैदिक सभ्यता से शुरु हुई भारतीय मानव श्रंखला. उससे पहले यहां हड़प्पा की सभ्यता थी, जोकि एक पूरी नगरीय सभ्यता थी. फिर अज्ञात कारणों से हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई और उसके बाद जो वैदिक सभ्यता आई, वह पूरी तरह ग्रामीण थी. कहने का मतलब ये है कि एक पूरी तरह विकसित नागरीय सभ्यता के नष्ट होने के बाद ग्रामीण वैदिक सभ्यता आई और इस सभ्यता के लोगों को ये पता तक नहीं था कि उनसे पहले यहां हड़प्पा की एक ऐसी सभ्यता थी, जिन्हें धातुओं, भवन निर्माण आदि का ऐसा ज्ञान था, जिनका उन्हें भान तक नहीं है.
और ये हो भी नहीं सकता क्योंकि हड़प्पा सभ्यता के पूरी तरह नष्ट होने के बाद उनकी सारी तकनीक और विकास उन्हीं के साथ जमीन में दफन हो गए. लेकिन जब वैदिक सभ्यता के बाद के काल में यानी दावों के अनुसार आज से 7000 साल पहले हमारे पास (हम वैदिक सभ्यता ही हैं) 40 इंजन वाले प्लेन, राडार और शल्य चिकित्सा की आधुनिक प्रणाली-पद्धति थी तब तो हमें उसे विकसित करके आज पूरी दुनिया पर राज करना चाहिए था !! हमारी सभ्यता नष्ट तो हुई नहीं, तो फिर जो ज्ञान हमारे पास था, वो बाद की पीढ़ियों के पास क्यों नहीं पहुंचा??!! अगर सात हजार साल पहले हम अंतरिक्ष में उड़कर पहुंच जाते थे तो आज तो हमें उड़कर दूसरी आकाश गंगाओं तक पहुंच जाना चाहिए था ना भाई ! लेकिन अभी तक तो हम भारतीय अपने यान से चांद पर भी नहीं उतर पाए हैं. और जब हजारों साल पहले हम चिकित्सा विज्ञान में इतने आगे थे, तब तो डीएनए को सजाने से लेकर क्लोनिंग और सारे वैक्सीन का इजाद हमें ही करना चाहिए था ना. यूरोप और अमेरिका तो पानी भरते भारत के आगे !! इबोला और एड्स तो छोड़ दीजिए, हम तो पोलियो वैक्सीन तक नहीं बना पाए !!
फिर ये सारा ज्ञान गया कहां ??!! क्या अपने अंतरिक्षयान पर बैठकर हम उसे किसी और ग्रह पर तो नहीं छोड़ आए??!! और अगर नहीं तो फिर आज सिर्फ जबानी जमा खर्च करने के अलावा हमारे पास है क्या ?? आज जब हर तीन महीने में एक नया अपग्रेडेड स्मार्टफोन-कम्प्यूटर-टैबलेट-ऐप बाजार में आ रहे हैं, पुराने वाले से बेहतर, तो फिर जो ज्ञान और हवाई जहाज-उड़नतश्तरी हमारे पास थे, 7000 साल पहले, वो कहां गए??!! आज जो आधुनिकतम हवाई जहाज हैं, वो चार इंजन से ज्यादा वाले शायद नहीं होते. बाकी में अलग तरह की तकनीक है लेकिन हमारे पास 40 इंजन वाला जहाज था अगर तो आज हमारे पास ऐसी तकनीक होनी चाहिए थी कि (कम से कम 1000 इंजन वाला या एटमी इंजन) पूरे के पूरे शहर को हम एक साथ उठाकर किसी दूसरी जगह एक ही बार में ले जा सकते !!
बेहतर तो ये होता कि नरेंद्र मोदी सरकार माइथोलॉजी और आधुनिक विज्ञान को मिक्स करने की बजाय देश में अनुसंधान को बढ़ावा देती. उसके लिए अलग से बजट दिया जाता. चिकित्सा विज्ञान से लेकर सूचना-क्रांति, रक्षा और अंतरिक्ष विज्ञान, हर क्षेत्र में हमें टैलेंट और अनुसंधान की जरूरत है. इतना बड़ा देश आज भी इजरायल जैसे देश से अगर तकनीक खरीदता है तो ये हमारे लिए शर्म की बात होनी चाहिए. सो नेता और उनके चमचे तथाकथित साइंसदां अगर थोथी बात करने की बजाय एक्शन पर ध्यान दें और ईमानदारी से देश में रिसर्च को बढ़ावा दें तो आने वाले समय में शायद हमारे पास भी दिखाने लायक कोई आविष्कार हो. वरना कहते रहिए 40 इंजन वाला एयरोप्लेन, मैं तो कहता हूं कि 40 क्या, 200 इंजन वाला प्लेन कहिए, किसे फर्क पड़ता है?? जगहंसाई करानी हो तो खुद की कराइए, कम से कम देश को और यहां के सम्मान को बख्श दीजिए साहेब !!!