आजतक न्यूज़ चैनल के एग्जीक्यूटिव एडिटर संजय सिन्हा की फेसबुक पर लिखी एक सीरीज पर जब पुस्तक आई, तो उसका प्रकाशन करने वाली कंपनी का नाम सुनकर चौका। दिल्ली का दशकों पुराना प्रभात प्रकाशन संजय सिन्हा की किताब के प्रकाशन के लिए आगे आया। खुद प्रभात प्रकाशन के मालिक प्रभात कुमार ने माना कि उन्होंने टीवी जर्नलिस्ट संजय सिन्हा की फेसबुक स्टेट्स पर लिखी किताब रिश्ते के प्रकाशन का फैसला लेने में एक मिनट की देरी नही लगाई थी। वहीं बात अलग से खुद संजय सिन्हा ने स्वीकारी। बकौल सिन्हा, वे पहले किसी और पब्लिशिंग कंपनी के पास गए थे। वो कंपनी प्रकाशन का फैसला लेने में देर करने लगी, तो संजय सिन्हा ने प्रभात प्रकाशन से बात की। बात बनी, और आनन-फानन किताब बाजार में आ गई। दिल्ली के कनॉट प्लेस के ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर में सिंघम स्टाइल अजय देवगन ने विमोचन किया। लेकिन सवाल ज्यों का त्यों। हमेशा संघ की विचारधारा से मेल खाती पुस्तकों का प्रकाशन करने के लिए जाना जाता प्रभात प्रकाशन क्या बदल गया? सवाल सीधे प्रभात कुमार से किया। प्रभात कुमार भी बिना घबराए मोदी स्टाइल में बोले- जो किताबें युवाओं को फिर किताबों की दुनिया से जोड़ रही है, ऐसी किताबों के प्रकाशन से हमें परहेज नहीं। लेकिन सवाल और भी थे। क्या प्रभात प्रकाशन भी अब संघ के वैचारिक सिध्दांतों को मोदी स्टाइल में व्यवसायिक भाषा में बोल रहा है? ऐसे में प्रभात कुमार खुद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उदाहरण के साथ सामने आए। बोले- विचारों को ना छोड़ा जाए, लेकिन अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए रास्तों को समय के अनुरुप ढाला जाए तो बुराई क्या है।
ये सवाल दरअसल इसीलिए खड़े हुए कि संघ और संघ से जुड़े लोग कभी भी एक नियत रास्तों से अलग होकर नहीं चले। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कई कदमों को लेकर उनके विरोधी हमेशा आरोप लगाते रहे कि मोदी संघ की शिक्षा भूल गए। प्रभात प्रकाशन भी संघ की विचारधारा को पोषित करने वाली किताबों का प्रकाशन करने के लिए जाना जाता है, ऐसे में वो यदि फेसबुक, रिश्तों, समाज की कड़वी सच्चाई पर लिखी किसी पत्रकार की किताब को प्रकाशित करता है, तो सवाल खड़ा होता ही है कि क्या अब संघ को मानने वाले भी अपने वैचारिक सिध्दांतों की मोदी की तरह व्याख्या करेंगे? प्रभात प्रकाशन के पीयूष मानते है कि ये एक कठिन फैसला था। क्योंकि हमारी दुनिया में हमारी एक इमेज बन गई है, लेकिन अब वक्त उस इमेज को तोड़ने का आया है, जैसे मोदीजी बीजेपी और बीजेपी की सत्ता की इमेज को बदलने की कोशिश कर रहें हैं।
तर्क कुछ भी हो, लेकिन संजय सिन्हा की फेसबुकी किताब रिश्ते ने ये तो बता दिया कि समय अब बदल रहा है। लेखक फेसबुक से भी बना जा सकता है। प्रभात प्रकाशन के प्रभात कुमार और पीयूष कुमार ने ये तो माना कि अब समय बदल रहा है, और जरुरत समय के साथ बदलने की है।
मतलब अब मोदी इम्पेक्ट यहां भी हैं। वैसे भी बदलाव अच्छा ही होता है।