संजय तिवारी,वरिष्ठ पत्रकार
जिस दिन से भारत में आइसिस के होने का अंदेशा बढ़ा है सबसे ज्यादा सक्रियता एटीएस उत्तर प्रदेश की ही बढ़ी है। केरल और तेलंगाना पुलिस की सूचनाओं पर अब तक करीब डेढ़ दर्जन नौजवानों को आइसिस के चंगुल से बाहर निकाला गया है। इसके लिए एटीएस दिमाग की सफाई का सहारा लेती है। वह दिमाग जो आइसिस के जिहादियों के कब्जे में चला जाता है उसे धो पोछकर साफ किया जाता है ताकि वो सामान्य जिन्दगी में वापस लौट सकें।
सैफुल्लाह के साथ भी आखिरी वक्त तक एटीएस इसी का सहारा लेती रही। घर परिवार के लोगों को शामिल किया गया। बाप, भाई, बचपन के दोस्त सबको बुलाया गया और यही कोशिश की गयी कि किसी तरह वह समर्पण करने को तैयार हो जाए, लेकिन सैफुल्ला पर किसी का असर नहीं हुआ। न बाप के आंसुओं का, न भाई के प्यार का, न दोस्तों की मनुहार का। पैगंबर मोहम्मद का वास्ता भी उसे वापस न ला पाया। वह जन्नत जाने के लिए घर से निकला था और किसी भी कीमत पर रुकने के लिए तैयार नहीं हुआ।
आखिरकार एटीएस को सैफुल्ला को खत्म करना ही पड़ा। लेकिन सैफुल्ला की मौत के बाद सैफुल्ला के पिता ने उसका शरीर दफनाने से मना कर दिया। उनकी नजर में वह देशद्रोही था, और जो देश का नहीं है, वह उनका भी नहीं है। सैफुल्ला के पिता, वानी के पिता नहीं हैं। उन्हें बेटे के जन्नत जाने की जिद और कारनामा दोनों अच्छा नहीं लगा। यही उम्मीद की वह रोशनी है जो व्यक्ति, घर परिवार, समाज और देश सभी को बचाएगी।