भारतीय पत्रकारिता दो खेमो में बंट चुकी है. दोनों खेमो का अपना अलग-अलग राजनीतिक नजरिया है. वे अपना नजरिया तो पेश करते ही हैं,राजनीतिक दल के नेताओं की तरह एक-दूसरे पर तंज कसने से भी पीछे नहीं हटते. EVM मशीन को लेकर पत्रकारिता जगत में कुछ ऐसी ही खेमेबाजी हो रही है. वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी इसे लेकर लगातार सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं और वोटिंग मशीन को सवालों के कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. इस संबंध में उन्होंने पूर्व में भाजपा नेताओं द्वारा वोटिंग मशीन पर उठाये सवालों का लिखित प्रमाण भी सोशल मीडिया पर शेयर.इसी को लेकर ज़ी न्यूज़ के मशहूर एंकर रोहित सरदाना ने बिना नाम लिए उनपर तंज कसा है. रोहित सोशल मीडिया पर लिखते हैं –
पत्रकारिता का ‘दास’ काल
एक दो ‘वरिष्ठ’ पत्रकार दो दिन से ‘EVM से छेड़छाड़ सम्भव’ के पुराने लेख तलाश कर पोस्ट कर रहे हैं. ‘भक्त’ नहीं इन्हें ‘दास’ कहना चाहिए!
जैसे हिन्दी साहित्य में भक्ति काल, रीति काल रहे हैं, वैसे पत्रकारिता में ‘दास’ काल रहा है. ये वो पत्रकार हैं, जो नौकरी पाने से ले कर, मकान खड़े करने, सम्पत्तियाँ जुगाड़ने, बच्चों को ‘सेट’ करने, अपने अखबारों/प्रकाशनों के लिए विज्ञापन जुटाने, एकाध दो पुरूस्कार बटोरने और किसी चर्चा/संगोष्ठी/सेमीनार में आने जाने का टिकट पा जाने के लिए पार्टी विशेष के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं, वो भी मेहनताने के तौर पे नहीं – ‘इनाम’ के तौर पे!
यही पत्रकार मौजूदा समय में ‘दास’ परंपरा के वाहक हैं. जनता का फैसला कुछ भी हो, उन्हें अपनी पार्टी को ही सही साबित करने के लिए जान लगानी है!