NDTV पर एक दिन के सरकारी बैन की घोषणा हुई नहीं कि आपातकाल पर घमासान मच गया.पक्ष-विपक्ष में तलवारें खींच गयी. इसी मुद्दे पर ज़ी न्यूज़ के मशहूर एंकर रोहित सरदाना ने सोशल मीडिया पर लिखा है और कांग्रेस के राज में लगे आपातकाल की याद दिलाते हुए उसे परिभाषित करने की कोशिश की है. पढ़िए उनका पूरा लेख –
कांग्रेस पार्टी ने एनडीटीवी पर लगे एक दिन के बैन* की तुलना इमरजेंसी से की है. इस देश का एक बड़ा तबका, युवाओं का है, जिनकी उम्र 25 से 30 साल के बीच है. उन्होंने केवल सुना भर है कि इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई थी, इमरजेंसी होती क्या है, इसका अहसास उन्हें नहीं है. और शायद यही वजह है कि कांग्रेस, एक दिन के बैन को इमरजेंसी बता कर उन्हें बेवकूफ़ बना रही है.
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक, देश में इमरजेंसी लगी थी. संविधान में दिए गए लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे. सेंसरशिप लग गई थी. लोगों को बिना आरोप हिरासत में ले कर जेलों में ठूंस दिया गया था. यहां तक कि लोगो की ज़बरदस्ती नसबंदी कराने की योजना सरकार ने शुरू कर दी थी.
विपक्ष के बड़े बड़े नेता मोरार जी देसाई, चरण सिंह, जे पी नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, राज नारायण, लाल कृष्ण आडवाणी – जेलों में डाल दिए गए थे. विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव टाल दिए गए थे.
मीडिया की आज़ादी छोड़िए, मूलभूत चीज़ें छीन ली गई थी. आपातकाल लगाए जाने की आधी रात को बिजली काट दी गई थी, ताकि अगले दिन कोई अखबार लोगों को इसकी हकीकत न बता सके. दो दिन बाद बिजली चालू की गई थी. खबरों को सेंसर करने के लिए सरकार के लोग अखबारों के दफ्तरों में तैनात रहते थे. कार्टून और तस्वीरें भी सरकार का विरोध या उससे सवाल नहीं कर सकती थीं.
उस दौरान 250 पत्रकार गिरफ्तार किए गए थे. 51 विदेशी संवाददाताओं के एक्रेडिटेशन छीन लिए गए थे. 30 के करीब पत्रकार ऐसे थे जिन्हें देश में घुसने की इजाज़त ही नहीं दी गई थी.
आंधी और किस्सा कुर्सी का, फिल्में बैन कर दी गई थीं. यहां तक कि फिल्मी सितारों को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था.
और ये सब देश की सुरक्षा के लिए नहीं हुआ था, इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की सुरक्षा के लिए हुआ था.
अब आप खुद तय कीजिए, एक चैनल पर एक दिन का बैन* इमरजेंसी है या कि देश पर दो साल के लिए जो थोपा गया, वो इमरजेंसी थी ?
*ताज़ा समाचार के मुताबिक़ सरकार ने फिलहाल एनडीटीवी पर बैन को ‘होल्ड’ कर लिया है.